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भगवान की प्रत्येक बात में स्यादवाद होता है । छोटी से छोटी हिंसा को अस्वीकार किया परंतु न्याय-नीति-धर्म के प्रश्न में हिंसा का विचार नहीं करना, ऐसा कहा है । मंदिर लूटने आएगा तो उनके सामने अहिंसा का विचार नहीं करना । कालिकाचार्य को साध्वीजी की रक्षा के (शील की) लिए युद्ध लड़ना पड़ा । इसमें अधर्म नहीं कहा गया ।
उबाला हुआ पानी :- कच्चा पानी विकारी है, उबाला हुआ पानी निर्विकारी होता है । सजीव को मुंह में डालो तो कैसे भाव होते हैं ? निर्जिव है या निर्जिव करके मुंह में डालो तो भाव में अंतर आ जाता है । पाप प्रवृत्ति से ही बंधते हैं ऐसा नहीं । पाप करने का भाव बना वहाँ पाप का बंध हो गया । उबला हुआ पानी पीने का पच्चक्खाण लिए हों तो अपकाय के जीवों को अभयदान मिलता है ।
ज्ञान से ही मोक्ष होता है या क्रिया से ही मोक्ष होता है यह वाक्य दुर्नय है, एकांत मान्यता है । ज्ञान से मोक्ष होता है या क्रिया से मोक्ष होता है, यह एकांत दृष्टि नहीं ।
जड़ चेतन का भेदज्ञान
पू. चित्रभानुविजयजी
अजीव :- जीव के संसर्ग से जीवंत बनता है । इन्द्रियाँ आत्मा बिना जड़ हो जाती हैं । आत्मा और पदार्थ (अजीव ) का भेद समझने की आवश्यकता ज्ञानियों ने बताई है ।
सूक्ष्म से सूक्ष्म जड़ पदार्थ वह परमाणु, अधिक परमाणु इकट्ठे हो जाए वह अणु । अधिक अणु इकट्ठे हो जाए वह स्कंध, स्कंध का देश और प्रदेश एकत्रित हो जाए ऐसा दिखता है ।
अणु जड़ शक्ति है, इसका मिलना - बिछुड़ना स्वभाव है । सतत गति और स्थिति के बीच झूलता रहता है । और आपस में टकराते हैं जिससे स्पंदन होता है ।
आत्मा और जड़ का मिलना = संसार । पूर्व की संस्कृति आत्मा का रहस्य ढूंढती है । पश्चिम की संस्कृति पदार्थ का रहस्य ढूंढती है ।
अणु से आगे जो नहीं देख सकता वह सिर्फ भौतिक सिद्धियों के लिए पुरुषार्थ करते हैं।
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