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अशुभ विचार, लब्धि मन की गंदगी की उत्पत्ति है । अभवि जीव मोक्ष नहीं जाता है, ये
इसकी मान्यता' ही गलत है, इसलिए मोक्ष नहीं जाता। * अनंता भवों की मान्यता' दृढ़ हो गई है । 'विषय कषाय में ही सुख है' लब्धि मन
(अंत:स्थल को) पढ़ता ही नहीं है । उपयोग मन (समतल) को देखकर स्थूल कषाय, विषय में रमण करता है । पदार्थ को अंत से पहिचानो, उसकी प्रारंभिकता से नहीं। * मान्यता बदलने की क्रिया अपुन बंधक अवस्था से प्रारंभ हो जाती है । कषाय आग होते
हुए भी जीव उसका आलिंगन करने दौड़ता है। * मन का स्वरुप :- रुचि और अरुचित के साथ 'मान्यता' बनाई गई है। रुचि-अरुचि
के कारण पाप-पुण्य के अनुबंध चलते ही रहते हैं। * परिणति :- लब्धिमन का प्रथम भाग ‘मान्यता' और दूसरा ‘परिणति' । मनुष्य की
प्रकृति में बनाए गए शुभाशुभ भाव ही परिणति है । उपयोग मन में एक साथ दो विरोधी विचार नहीं हो सकते । लब्धि मन में अनेक विरोधी भाव एक साथ संग्रहित होकर पड़े
रहते हैं। * गंदगी, भूख, प्यास, थकान की प्रक्रिया देह, इन्द्रिय और मन में अनवरत चलती रहती
है । भोग : नारक में तीव्र, पशु में इससे कम, मनुष्य में इससे कम, देवों में इससे भी कम। सबसे अधिक भूख प्यास, थकान, गंदगी दुर्गति में है। जड़ जगत का वेधक सत्य :- भौतिक जगत में दूसरी कोई सुख नाम की चीज नहीं है।
शरीर :- 24 घंटे - भूख, प्यास, थकान, गंदगी। इन्द्रिय :- शरीर से हजारों, लाखों गुना अधिक भूख-प्यास आदि। मन :- 24 घंटे उगलते ज्वालामुखी जैसी भूख-प्यास आदि। जहां तक मोह के परिणाम हैं तब तक मन की भूख है।
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