Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ 0 कल्याण कल्याण ध्रुव तत्व शुद्धातम हूँ मैं, इसका ज्ञान श्रद्धान किया। त्रिकाली पर्याय क्रमबद्ध, इसको भी स्वीकार लिया । ज्ञायक ज्ञान स्वाभावी चेतन,खुद आतम भगवान है। ममल स्वभाव में लीन रहो, बस इसमें ही कल्याण है । २५३ २५३ 0 श्री आचकाचार जी क्र. विषय गाथा १५८. मन और भावों की शुद्धता ४५३ १५९. रत्नत्रय की साधना से मनः पर्यय ज्ञान ४५४ की प्राप्ति १६०. साधु अरिहंत पद का साधक होता है २५० ४५५,४५६ १६१. अरिहंत सर्वज्ञ पद, केवलज्ञान की प्राप्ति ४५७,४५८ १६२. शाश्वत अविनाशी सिद्ध ध्रुव पद की सिद्धि ४५९ १६३. शुद्ध सम्यक्त्व सहित जो जीव परमेष्ठी ४६० पद की साधुना करेंगे वे कर्मों को क्षय करके मोक्षगामी होंगे। १६४. तीन प्रकार के पात्रों का स्वरूप कहा,जो २५३४६१ भव्य जीव अपने ज्ञानमयी ध्रुव स्वभाव की साधना करेंगे वह धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष स्वरूप परमेष्ठी पद को प्राप्त करेंगे। १६५. आनन्द परमानन्द की प्राप्ति हो, मुक्ति मार्ग ४६२ पर चलकर अविनाशी शाश्वत सिद्ध पद मिले इसी एक उद्देश्य से जिन तारण ने इस श्रावकाचार ग्रंथ की रचना की है। १६६. ध्रुव तत्व वंदना और सम्यकदृष्टि का विवेक २५५ १६७. व्रत परिचय (अणुव्रत और महाव्रत) २५६ १६८. पदवी सतक्षरी- तारण पंथ अर्थात् मोक्षमार्ग की। २५७ आध्यात्मिक साधना पद्धति का विधान १६९. साधक की स्थिति २५८ १७०. रत्नत्रय सिखांत सूत्र २५९-२६८ १७१. आध्यात्मिक भजन २६९-२८६ १७२. तारण की जीवन ज्योति : संक्षिप्त परिचय २८७-२९८ वस्तु स्वरूप सामने देखो, शुद्ध तत्व का ध्यान धरो । पर पर्याय तरफ मत देखो, कर्मोदय से नहीं डरो ॥ ध्रुव तत्व की धूम मचाओ, पाना पद निर्वाण है। ममल स्वभाव में लीन रहो, बस इसमें ही कल्याण है ॥ सिद्धोहं सिद्ध रूपोहं का, शंखनाद जयकार करो । अभय स्वस्थ्य मस्त होकर केसाधू पद महाव्रत धरो । अब संसार तरफ मत देखो, सब ही तो श्मशान है। ममल स्वभाव में लीन रहो, बस इसमें ही कल्याण है ।। ज्ञेय मात्र सब ही भ्रांति है, भावक भाव भ्रम जाल हैं। पर्यायी अस्तित्व मानना, यही तो सब जंजाल है ।। निज सत्ता स्वरूप को देखो, कैसा सिद्ध समान है। ममल स्वभाव में लीन रहो, बस इसमें ही कल्याण है ।। मन के अन्दर ही भगवान पूर्णानन्द का नाथ विराजमान है। वह सर्वोत्कृष्ट आश्चर्यकारी है । वह सर्वोत्कृष्ट परमेष्ठी है। अपरिमित, अमर्यादित, ज्ञान दर्शन आदि अनन्त शक्तियों का पिंड सर्वोत्कृष्ट आत्मा है। ऐसे महिमामय निज तत्व को जो दृष्टि स्वीकार करती है वह शुद्ध दृष्टि है। छहों खंड चक्रवर्ती राजा, तीर्थंकर महावीर हुए। कौन बचा है यहां बताओ, राम कृष्ण भी सभी मुए । अजर अमर अविनाशी चेतन, ज्ञायक ज्ञान महान है। ममल स्वभाव में लीन रहो, बस इसमें ही कल्याण है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 320