Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 19
________________ You श्री आचकाचार जी अनुपम उपलब्धि Oo और इतनी सशक्त थी कि वर्षों से अध्यात्म अमृत रसमय आत्मोन्नति अध्यात्म जागरण : एक अनुपम उपलब्धि का पथ प्रशस्त करती आ रही है और करती रहेगी। परम वीतरागी तीर्थकर भगवान श्री महावीर स्वामी की वीतरागता सम्पन्न श्रीगुरू महाराज के चौदह ग्रंथों में से अध्यात्म शिरोमणी पूज्यश्री ५ शुद्धाम्नाय में जिनवाणी के जिस परम श्रुतलेखन का सूत्रपात आचार्य द्वय पूज्यवर स्वामी ज्ञानानंदजी महाराज ने श्री मालारोहण जी, पंडितपूजा जी X 3 भूतबली पुष्पदंत जी महाराज ने किया था, आगम की इस शाखा का उद्योतन करने कमलबत्तीसी जी , श्रावकाचार जी, त्रिभंगीसार जी , उपदेशशुद्धसार जी वाले इन आचार्य भगवन्तों के साथ ही, प्रखर अध्यात्म शैली के श्रुत विभाग का ग्रंथ की टीकायें.चौदह ग्रंथ जयमाल आदि सुजित कर सभी भव्य जीवों तक वाले प्रदान आचार्य श्री कन्द-कन्ट देव अमतचन्दाचार्य देव. आचार्य पर महान उपकार किया है जिसे शब्दों की सीमाओं में बांधा जाना संभवयोगीन्ददेव आदि ज्ञानी महापुरुषों ने वीर प्रभु से प्राप्त अनाद्यनन्त ज्ञानमार्ग, नहीं है। अध्यात्मरत्न बाल ब्र. पूज्य श्री बसन्त जी महाराज ने देव गुरु आध्यात्मिक साधना, वीतराग धर्म की अक्षुण्ण परम्परा को, स्वयं उस मार्ग पर शास्त्र पूजा , अध्यात्म आराधना षट्आवश्यक कर्म भाव पूजा , रत्नत्रय चलते हुए प्रकाशित किया था। आराधना , बारह भावना हमें प्रदान कर हमारी भाव पूजा के मार्ग को इन महापुरुषों ने आत्मानुभव से जाना कि आत्मा स्वभाव से शुद्ध ज्ञान, प्रशस्त किया है। दर्शन, सुख, वीर्यमय परमात्म स्वरूप है । यह आत्मा रागद्वेषादि भाव कर्म, पूज्य गुरुदेव की मंगलमय जनकल्याणकारी वाणी को जन-जन में ज्ञानावरणावि द्रव्य कर्म एवं शरीरादि नो कर्म से भिन्न है। इसी रत्नत्रयमयी आत्म पहुंचाने के लिये तारण तरण श्रीसंघ कृत संकल्पित है। इस हेतु भमण समाधि के द्वारा अपने को बंधन रहित मुक्त करके परमानंद में स्थापित किया जाता तथा शिविर कार्यक्रम एवं श्री तारण तरण अध्यात्म प्रचार योजना केन्द्र है। ज्ञान गरिमामय इस आचार्य परम्परा में परम पूज्य जिन शासन धर्म प्रभावक, जैन भोपाल , ब्रह्मानन्द आश्रम पिपरिया, महात्मा गोकलचन्द समैया तारण दर्शन के प्रखर अनुभवी, सर्वार्थ सिद्धि में विराजित शुद्धात्मवादी रत्नत्रय विभूषित साहित्य प्रकाशन समिति जबलपुर आदि स्थानों से तथा अन्य दान दाताओं परम वीतरागी आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज का के सहयोग से साहित्य प्रकाशन कर संपूर्ण देश में प्रचार-प्रसार करके नाम अग्रगण्य है, जो यथा नाम तथा गुण के अनुरूप शोभायमान हो रहा है। श्री गुरु R. महाराज ने अपनी आत्म साधना के अंतर्गत पांच मतों में चौदह ग्रंथों की रचना की गुरुवाणी की अलख जगाई जा रही है। हमारा एक ही उद्देश्य है- "शुकवाणी को घर-घर में पहुंचाना है" इसके लिये विभिन्न परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित यह श्री तारण तरण श्रावकाचार जी ग्रंथ आचार आयामों से गुरुवाणी का प्रचार-प्रसार करने की भावना है। यह सब मत का ग्रंथ है। अव्रती सम्यक्दृष्टि की चर्या, देशव्रती श्रावक का आचरण इस ग्रंथ नि:स्वार्थ भाव से सहज ही हो रहा है। का मूल प्रतिपाद्य विषय है। ग्रंथ के अंत में साधु पद अरिहन्त एवं सिद्ध पद का सभी जीव इन टीका ग्रंथों का स्वाध्याय मनन करके सत्य धर्म की संक्षिप्त स्वरूप बतलाया गया है। आचार्य तारण स्वामी जी द्वारा रचित ग्रंथों में से समझ जगाकर अपने आत्मकल्याण का पथ प्रशस्त करेंयही पवित्र भावना श्री मालारोहण जी.पंडितपूजा जी.कमलबत्तीसी जी, त्रिभंगीसार जी, उपदेश शुद्धसार । बाल ब्र. उषा जैन एम. ए. जी ग्रंथों की भावप्रवण टीकायें वर्तमान समय के ज्ञानयोगी, अध्यात्म शिरोमणी बीना संयोजिका पूज्य श्री ज्ञानानन्द जी महाराज द्वारा की गई हैं। इसी श्रृंखला में पूज्य श्री द्वारा दिनांक-३.५.२००० अनूवित श्री तारण तरण श्रावकाचार जी ग्रंथ की अध्यात्म जागरण टीका अध्यात्म तारण तरण श्रीसंघ

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