Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 14
________________ विषय गाथा १७७ १७७-१८२ १८३,१८४ १८५-१८७ १८८,१८९ १९०-१९४ १६८ १२३ १६८ १९५ १९६ १७० १९७ विषय धर्म ध्यान के चार भेद ११५ पदस्थ ध्यान का स्वरूप ११५ पिंडस्थ ध्यान का स्वरूप ११८ रूपस्थ ध्यान का स्वरूप १२० रूपातीत ध्यान का स्वरूप १२२ सम्यक्दृष्टि की विशेषता अन्तरात्मा सम्यक्दृष्टि के तीन लिंग और त्रेपन क्रिया. तीन लिंग-उत्तम, मध्यम, जघन्य उत्तम जिनरूपी, मध्यम मति श्रुत वाला श्रावक, जघन्य तत्व श्रद्धानी सम्यक्दर्शन की विशेषता से ही यह तीन लिंग कहे हैं जघन्य अव्रती-अठारह क्रियाओं का १३२ पालन करने वाला है अठारह क्रियाओं के नाम-धर्म की सच्ची श्रद्धा, १३२ आठ मूलगुण, चार दान, रत्नत्रय की साधना रात्रि भोजन त्याग, पानी छानकर पीना पैतीस क्रिया - (ग्यारह प्रतिमा, बारह व्रत, १३२ बारह तप) सच्ची श्रद्धा, अटल विश्वास होना, पाँच सम्यक्त्व १३४ का स्वरूप अठारह क्रियाओं में प्रथम सम्यक्त्व का स्वरूप १३५ अष्ट मूल गुण : पाँच उदम्बर, तीन मकार १४९ रत्नत्रय की साधना. १५३ सम्यक्दर्शन का स्वरूप, तीन मूढता आदि १५४ पच्चीस दोषों से रहित. सम्यक्ज्ञान और स्वरूपाचरण चारित्र का अभ्यास १५९ ७३. तीन पात्रों को चार प्रकार का दान देना १६२ ७४. उत्तम पात्र -निर्ग्रन्थ वीतरागी साधु १६२ ७५. मध्यम पात्र - देशव्रती श्रावक १६३ ७६. जघन्य पात्र - अव्रत सम्यक्दृष्टि श्रावक १६४ ७७. पात्र दान का फल और सम्यक्त्व की महिमा १६६ Kerrervedakorrenvedoeserrervedaki. १९८ १९९,२०० विषयानुक्रम COOO गाथा अट्ठावन लाख योनियों से छूट जाना १६६ २६८ पात्र दान से दु:खों का अभाव १६६ २६९ चार प्रकार का दान और दान की महिमा १६७ २७०-२७२ (ज्ञानदान, आहारदान, औषधिदान, अभयदान) पात्रदान की महिमा, विशेषता २७३ पात्र और कुपात्र दान का विचार १६८ २७४ कुपात्र की पहिचान १६८ २७५ कुपात्र दान का फल १६८ २७६ पात्र और कुपात्र दान फल का भेद २७७ पात्र दान की भावना का फल १६८ २७८-२८३ कुपात्र दान की भावना का फल २८४,२८५ पात्र दान की शुद्धता का परिणाम १७१ २८६-२८९ मिथ्यादृष्टि का दान, पात्र ग्रहण नहीं करता १७२ २९०-२९५ मिथ्यात्व और सम्यक्त्व की महिमा १७३ २९६ और विशेषता रात्रि भोजन त्याग का स्वरूप १७४ २९७-३०३ पानी छानकर पीना ३०४-३०६ गृहस्थ श्रावक के षट्कर्म. षट्कर्म शुद्ध और अशुद्ध के भेद से १७७ ३०७ दो प्रकार के होते हैं शुद्ध और अशुद्ध षट्कर्म की मान्यता १७७ ३०८,३०९ तथा उसका परिणाम अशुद्ध षट्कर्म. अदेव पूजा ३१०,३११ १ ९६. कुगुरुकी मान्यता ३१२,३१३ ४ ९७. अशुद्ध स्वाध्याय का स्वरूप ३१४ अ ९८. अशुद्ध संयम का स्वरूप ३१५ 5 ९९. अशुद्ध तपका स्वरूप ३१६ १००. अशुद्ध दान का स्वरूप ३१७ १०१. अशुद्ध षट्कर्म का परिणाम ३१८,३१९ शुख षट्कर्म, १०२. शुद्ध षट्कर्म का स्वरूप ३२० १०३. शुद्ध षट्कर्म के नाम (देवपूजा, गुरू उपासना, १८४ ३२१,३२२ १७६ २०१ २०३-२२४ २२५-२३४ २३५ २३६-२४९ २५०-२५५ २५६ २५७-२५९ २६०-२६३ २६४-२६६ २६७

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