Book Title: Shravakachar
Author(s): Gyanand Swami
Publisher: Gokulchand Taran Sahitya Prakashan Jabalpur

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Page 10
________________ ७ श्री श्रावकाचार जी चलते चरण Rao श्री संघ के बढ़ते चरण... ग्रंथों के मूल पाठ का संपादन श्री निसई जी तीर्थक्षेत्र पर सन् १९८६ में सम्पन्न हुआ। इस कार्य हेतु आध्यात्मिक क्रांति के जनक आचार्य प्रवर श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य जी महाराज ब्र.श्री वसंत जी द्वारा महाराष्ट्र से विक्रम संवत् १५८५ से १६०० तक की लगभग २० हस्तलिखित जन-जन में अध्यात्म चेतना के प्राणों का संचार करने वाले वीतरागी संत थे। निष्पक्ष भाव से सत्य चौदह ग्रंथों की पाण्डुलिपियों फैजपुर (महाराष्ट्र) से लाई गई थीं, पश्चात् संवत् १५७२ की ममलपाहड धर्म का स्वरूप बताने वाले, अध्यात्म की अलख जगाने वाले ऐसे निस्पृह संत विरले ही होते हैं. और तीन बत्तीसी की दुर्लभ प्रति भी प्राप्त हुई थी, यह सभी प्रतियाँ निसई जी में सुरक्षित हैं। इसके उनके द्वारा सृजित चौदह ग्रंथ युगों-युगों तक जग जीवों का मार्गदर्शन करते रहेगे। पूज्य गुरुदेव की अलावा संपादन कार्य हेतु अन्य अनेक स्थानों से चौदह ग्रंथों की हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ मंगाई वाणी में संसार के मानव मात्र के लिए आत्म कल्याण करने, मुक्ति को प्राप्त करने का मंगलमय संदेश गइ था, जातपादन के पश्चात् ससम्मान यथास्थान लाटा दा गइ । आत्मसाधना क साथ-साथ सन् है, उन्होंने अपने ग्रंथों में वीतराग धर्म जिन सिद्धांत का अनभव प्रमाण कथन किया है। उनकी १९८८ में भ्रमण तथा सन् १९८९ में राष्ट्रीय स्तर पर तारण तरण अध्यात्म चज प्रवर्तन का सम्पूर्ण मंगलमय वाणी आत्म साधना की अनुभूतियों से ओतप्रोत जिनवाणी का सार है। है समाज में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र प्रांत में भ्रमण और गाँव-गाँव, नगर-नगर में पालकी जी पूज्य गुरुदेव की वाणी को जन-जन में प्रचार करने हेतु गुरुदेव के प्रति समर्पित साधक महोत्सव, सामाजिक संगठन, धर्म प्रभावना के अनेकों शुभ कार्य संपन्न हुए। इसी वर्ष ध्वज प्रवर्तन श्रीसंघ, अध्यात्म शिरोमणि आध्यात्मिक संत पूज्य श्री ज्ञानानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में अपनी के अवसर पर सिलवानी में बा.ब. श्री सरला जी ने एवं बीना में बा.व. श्री उषा जी ने आजीवन आत्म साधना के मार्ग पर चलते हुए विभिन्न आयामों के माध्यम से सद्गुरू की वाणी को संपूर्ण देशब्रह्मचय व के माध्यम से सगरूकीवाणीको ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया। में प्रचार-प्रसार करने में संलग्न है। साधक श्री संघ द्वारा निस्पृहवृत्ति पूर्वक अखिल भारतीय तारण सन् १९९० में भी भ्रमण और प्रभावना की निरन्तरता बनी रही। धर्म की महिमा प्रभावना समाज एवं संपूर्ण देश में किये जा रहे अध्यात्म धर्म प्रभावना कार्यों से समाज में अपूर्व जागरण, धर्म मात्र चर्चा और बाह्य औपचारिकताओं से नहीं होती, इसके लिये धर्म के आचरण की विशेषता होती निष्ठा, गुरूभक्ति, आम्नाय के प्रति समर्पण की भावना और संगठन निर्मित हुआ है, वहीं दूसरी ओर है। इसी भावना से सन् १९९१ में जबलपुर में ४९ दिवसीय पाठ, वेदी प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर हा इसा भावना स सन् १९९१ म जबलपुर म देश के कोने-कोने में गुरुवाणी की प्रभावना का योग बना है। पर पू.अ. श्री स्वरूपानन्द जी महाराज ने सातवीं प्रतिमा की दीक्षा ग्रहण की और आत्म कल्याण के इस महान कार्य का शुभारंभ करते हुए सन् १९८० से १९८४ के बीच साधकों ने समाज के मार्ग में अग्रसर हुए। श्री गुरु महाराज की वाणी की प्रभावना के निमित्त सन् १९९१ से १९९६ तक विभिन्न अंचलों में अनेक समूहों में भ्रमण कर सामाजिक जागरण और धर्म प्रभावना का बीजारोपण पूज्य व. श्री बसंतजी महाराज ने सम्पूर्ण देश में भ्रमण कर भारतवर्ष में दिगम्बर-श्वेताम्बर, किया था। इसके साथ ही अध्यात्म क्रांति का सूत्रपात तब हुआ जब सन १९८४ में बरेली (म.प्र.) जैन-अजैन सभी वर्गों में गुरुवाणी का शंखनाद किया, जिससे सम्पूर्ण भारतवर्ष में तारण समाज की में आयोजित श्री मालारोहण शिविर में दिनांक ७ फरवरी १९८४, बसंत पंचमी को पूज्य श्री पहिचान बनी। ज्ञानानन्द जी महाराज की सप्तम प्रतिमा की दीक्षा हुई तथा अनेक भव्य आत्माओं ने ब्रह्मचर्य व्रत : श्री संघ के बढ़ते चरण निरंतर गतिमान होते गए तथा सन् १९९६ में ही गंजबासौदा में लेकर प्रभावना में सहयोग करने का संकल्प किया। इसी वर्ष पूज्य ब. श्री सुशीला बहिन जी पीना "तारण की जीवन ज्योति" का प्रभावना पूर्णवांचन, श्री संघ की स्थापना एवं दिनांक ७.१.१९९६ ने भी सातवीं प्रतिमा की दीक्षा ग्रहण की। यह क्रम शनैः-शनै: वृद्धि को प्राप्त होने लगा और सन् * रविवार को प्र. श्री आत्मानन्द जी की सातवीं प्रतिमा की दीक्षा, अ. मुन्नी बहिन जी का ब्रह्मचर्य व्रत १९८५ में पू.व. श्री वसंतजी महाराज एवं स्व. पू.अ. श्री सहजानन्द जी महाराज (बाबाजी) ने जन तथा अन्य भव्य जीवों द्वारा ब्रत नियम संयम लिये गए, पश्चात् लगभग २०० श्रावक-श्राविकाओं जागरण अभियान के अंतर्गत समाज के प्रत्येक नगर और गाँव-गाँव जाकर सामाजिक जागरण और 5 का संघ पदयात्रा पूर्वक श्री सेमरखेड़ी जी पहुंचा, वह अभूतपूर्व प्रभावना का अवसर था। इसी वर्ष । धर्म प्रभावना की, इससे अनेक उपलब्धियाँ हुईं। इसी वर्ष पिपरिया में ब्रह्मानन्द आश्रम की स्थापना होशंगाबाद में ब्र. बसंतजी एवं ब्र. आत्मानन्द जी के वर्षावास समापन अवसर पर या.ज. नंदश्री (रचना) ने आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का संकल्प कर अपना जीवन धर्म के लिये समर्पित किया। इन सभी व्यवस्थित कार्यों के होने से प्रभावना की विशेष कड़ियाँ जुड़ने लगीं, इसी क्रम में श्री गुरु महाराज की आम्नाय और आत्म कल्याण की भावना से समर्पित साधक श्री संघ का एक विशिष्ट उपलब्धि के रूप में चिर प्रतीक्षित श्री गुरुदेव तारण तरण स्वामी जी द्वारा विरचित चौदह सन् १९९७ में देश व्यापी अध्यात्म चक्र भ्रमण कार्यक्रम संपन्न हुआ। भमण और प्रभावना की

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