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स्पा कर टीका-हिन्दी विवेचन]
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सर्वत्र तळ्तुत्वम्यग्रोचिस्यात् । ननूक्तमेव निसल्यादेः कार्य विश्यम् , अत एतत्पणेष प्रत्यामश्या प्रनिलीमक्रमेण तदपणार्थमाइ-तस्य भोग्यस्य, विचित्रत्वम् , यस्माद्धेतो, नियम्याद लियादि ज्वरी: 1. राथाहि-- मूलं--नियनियसामग्यानियतानां समानता ।
तथानियतमाघे चपलात् स्यात् सविचित्रता ॥३॥ नियतनियतात्मत्यात एकरूपत्वात , निम्नाना-नजन्यत्वेनाभिमनानाम् , समानता स्यात , तथा-अदृष्टप्रकारानतिक्रमण अनियमभावे असमानकार्यकारिन्वे च नियतेरम्पपगम्यमाने, बलान-न्यायान् , समिनिकना-नितिविमित्रता स्यात् । 'पटो यदि पटजनकाऽन्यूनानिनिरिकन हेतुजन्यः स्याद , पटः म्यान'-'घटजनकः यदि पटें न बनयेद , पटजनकाद भियन' इति नदियम् ॥६९|| पृथिवीव जाति हो रहती है. उसको पाप्य शालिस्म आधिजातियां नही रहतो. इसलिये परमाणुमता शालिनीजों से पासि अंकुर को हो उत्पत्ति एव परमाणभूत योषों से मवापुर को हो उत्पति का नियमन अरुट वाराही अन्यहेतुवावियों को भी मामला पडेगा. तो जब कुछ स्थानों में कार्य को अष्टनम मानना स्पष्ट रूप से आवश्यक प्रतीत होता है तो सर्वत्र उसी को कार्य का मनका मानना उचित है।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि निमति की चर्चा प्रस्तुत चर्चा के निकट पूर्व में होने से या काल, स्वभाव आदि से प्रत्यास है अतः आरोह-उतार के क्रम से पहले उपी की कार्यवेविश्वप्रयोजकता को परीक्षा उचित हे भोर उस परीक्षा का निर्ष निश्चितरूप से यही निकलनेवाला है हिसियति आदि से भोमसिन की उपपसि नहीं हो सकती॥६मा
(नियति हेततापक्ष में कार्यसमानता को प्रापति) ___ बी का रिका में 'नियति से कार्य वेत्रित्र्य नहीं हो सकता.' इस तथ्य को स्पष्ट किया गया है। कारिका का अर्थ यह है कि
निर्यात को सामा=Fanप एक है अति नियति निश्चित रूप से प्रकस्वरूप है अत: भोग्य पदार्थों का जन्म पवि उसी से होगा तो कारण में एकरूपता होने से कामों में भी एकरूपता ही होगी, ममेकरूपता न हो सकेगा. जबकि कार्यों की अनेकरूपता ममाम्य । अतः यदि अष्ट के समान उसे भी विचित्र कायं का जनक मानना है तो विवश होकर उसे भी एकरूप न मान कर विचित्ररूप ही मानना होगा।
बात बोतको द्वारा सिस होगी.जसे-'घट यदि पट के कारणों से अमन और अनतिरिक कारणों से उत्पन्न होगा तो घर भी पर हो आयगा । और 'घट का बाक यति पट का जनन करेगा तो पट के जनक से भिन्न होगा। इनमें पाले तक का आशय यह है कि जिस कारणों से परस्पन होता है, पवि घट भी उतने ही कारणों से उत्पन्न होगा, घट के कारणों में यदि पर किसी कारण का प्रभाव प्रथवा पट के कारणों से अतिरिक्त किसी नये मारग का मनिवेश न होगा, सो घट भो पर होहो जायगा, पटसं भिन्न हो सकेगा। क्योंकि कारणों में सबमा साम्म रहने पर कायों में