Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ स्पा का टीका और जिमी विवेचना ] अथ 'म पुरुषजन्यः पुरूषोपरागः, किन्तु पुरुषभेदाऽग्रहादसत एवं सम्योत्पतिः, सदुपगमेण भानाच नासत्यातिपरिनि वेत् ? गतं नहिं मत्कार्यादेन । 'बुद्धी सन्ने पुरुषीपरागः कदाचिदानिर्भवतीनि चेत । नहिं युद्धध पसे पूर्व पुरुषायानुपरक्तनया माधः म्याव , प्रकृतः माधारणस्नाऽनुपरचमवाव । 'पूर्वद्भिवामनावतः माधारण्येऽस्यसाधारणी प्रकनि'गिनि चेस् ? न, 'त्रुद्धिनिसावपि नदयामानानुसः' इम्यूपदर्शनम् । 'मीशान दोप इप्ति' चेन ! मुक्तावपि सन्प्रसङ्गः । 'निधिकारित्वादु धमिनि खेती नहि माधिकारा प्रसुनस्वमावा वृद्धिीव प्रकृनिरस्तु, क्रममन्तरा प्रकल्प-हवार माना शब्दानामान्तरकल्पनाया, मैं हि तनद्वयापारयोगात तेन तेग शब्देन ध्यपदिश्यते ग्वायुवत , इत्यागमम्यापि न विरोध इति । स्वीक्रियता वा यथा फवचिद् तस्या नाविको भीगः तथापन्यदूषणमित्याहमुक्तेरनिप्रसङ्गाच्च-नेपा प्रनिनिम्त्राभारान् भमारिणामपि मुक्तकम्प मारत्वात , व-निधितम् . कवाचन कदापिपि, भोगी न म्यान ॥३०॥ प्रात्मा का प्रतिविम्व माना जायगा तो प्रात्मा को उस प्रतिबिम्मका कारण मानना होगा । पौर ऐसा मानने पर प्रारना के साक्ष्य सम्मत प्रसारणस्य हिमानत का भस हो मासगा। [असत् पुरुषोपराग कि उत्पत्ति में सत्य यंत्राव विलय ] यदि यह कहा जाप कि वृद्धि में पुरुष का प्रतिविम्बाय उपगग पृरुषजन्य नहीं होता अपितु बुद्धि पुरुष के भेद का शान न होने से प्रथमतः अश्विद्यमान ही पुरुषोराग की उत्पसि होती है। पति और पुरुष इन वो सस्पवाओं के सम्पर्क से मसत भी पुरुषोपराग का भाग होता है। ऐसा मानने पर बोनु की प्रसत्स्याति का यह प्रवेश नहीं हो सकता, क्योंकि उस मत में सत् वस्तु का सथा प्रभाव होने से सस् के सम्बन्ध से असत् का ज्ञान नहीं माना जा सकता किन्तु यह ठीक नहीं है क्योंकि मस्त पुरुषोपराग की उत्पसि मानने पर कार्य जापति के पूर्व कारण में सज होता है इस सांस्य के सुप्रसित सत् कार्य सिद्धान्त का मग हो जायगा । 'बाबुद्धि में पहले से ही दिमात पता है. समय शेष में उसका प्राविर्भाव होता है-यह भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि एसा मानने पर वृद्धि को उत्पत्ति के पूर्व पुरुष में किसी प्रकार की उपरक्तसा-संसृष्टला नहीं रहने से प्रकृतिकाःप.से पहले हो पुरुष मुक्त हो जायगा 'बुद्धि की उत्पत्ति के पूर्व प्रकृति से उपरषत होने के कारण उस समय भी पुरष की मुक्तता नहीं हो सकती'-मह भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि प्रकृति मारमा मात्र के प्रति साधारण होने से किसी को उपराग द्वारा नहीं बांध सकती। अगर कहे "प्रकृति सर्वसाधारण होने पर मो पूर्ववृद्धि की वासना का अनुवर्शन होने के कारण असाधारण हो सकती है प्रतः उस से भी पुरुष का उपरम्मन-बनमम हो सकता है तो यह टोक नहीं है मोंकि प्रलयावस्था में वृद्धि को निति हो जाने पर भी पति के वासनात्मक धर्म की प्रमुवृत्ति मामले में सांत्य का प्रसिद्धान्त हो जाताहै। 'प्रलयावस्था में वृद्धि की पौर उसके धर्ममूत वासना की समरूप से स्थिति होने के कारण यह दोष नहीं हो सकता'-यह कपन भी ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर मोक्षवशा में भी वृद्धि और तिगत वासना का सूक्ष्मरूप में प्रवस्याम मानना होगा, असा

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246