Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 202
________________ श्या० का टीका-हिन्दी विवेचना ] [१ तपा, अशक्तस्य जनकत्वेऽतिप्रसान्त स्य जनकत्वं वाच्यम्, शक्तिचास्य न सर्वत्र, सवानि , किन्तु जाणिव. इति कामयति सा काम्य शक्तिनियता स्यात, असतो विषयत्वाऽयोगात् ! तम्मात् , कारणात् प्रागपि शक्यं सदेव । तथा कारणभावान कारणतादात्म्पादपि सत् कार्य, नाऽवयवी अवयवेभ्यो भियत्ते, तथाप्रतीत्य भावात; 'कपालं पटीभूनम , तन्तुः पटीभूना, स्वर्ण कुण्डलीभूतम्' इत्यादिप्रतीतेः । तस्माद् महदादिकार्यस्योस्पतः प्रागपि यत्र सवं मा प्रकृतिः । कि किसी भी कार्य को उत्पत्ति नियत पदार्थ से ही होती है सा पहायों से उत्पसिनहीं होती। किन्तु यदि पवार्म से भरा कार्य को पति होगी तो यह मानना होगा कि पापं अपने से प्रसन्न स्तु का उपगरम करता है, तो स्थिति में किसी नियत पदार्थ से ही कार्य की सपतिन होकर लंपूण पदयों से सभी कार्य को उत्पत्तिका प्रसङ्गहगा, यांकिकार्य से किसी एक नियत पदार्थ से अभय होता है जमोग्रकार सभी पदार्थों से प्रसवय होता है इसलिये इस बात में कोई व्यवस्था मोकेगी कि अनुक कार्य अमुक पवाघ ही उत्पन्न हो और अन्य से महो । किन्तु कार्य को उ पति के पूर्व सह मामने पर पह सहन नहीं उपस्थित हो सकता, क्योंकित कहा जा सकता:तताकार्य का तलसायं के हा मा सम्बन्ध होता हे सम पदार्थों के साथ नहीं होता और पराका यह स्वभाव है कि वह सम्म कार्य का हो जापावक झोता है असम्पद का नहीं, अतः सा पदार्थो । सब कायों की उत्पत्ति का आपावन नहीं हो सससा । जैसा कि कहा गया है कि 'उत्पत्ति के पूर्व कार्य का प्रसस्त मानमें परसत् कारणों के साथ अप्तत कार्य हा सम्बाम हो सकेगा । और मवि सम्म परायों में जो कार्य की उत्पत्ति मानी मायगी तो अमुक पाहो में ममुक कार्य की उत्पत्ति हो अन्य में न हो यह व्यवस्था नहीं सकती।' उत्पत्ति के पूर्व कार्य को सत् इसलिये भी मामला सावश्यक है कि जो पदार्थ शिस कार्य के उत्पाघन की शक्ति से शून्य होता है उस से उस कार्य की उत्पत्ति नहीं होती है किन्तु शिम पार्ष में जिस कार्य के उत्पादन को शक्ति होती है उसी से उसकी उत्पत्ति होता है। और तत्तका के उत्पादन को पाक्ति तत्र न होकर नियत पयायों में हो होती है। किन्तु यह बात उत्पत्ति के पूचं कार्य को सत् मानी पर हो पर सकती है अपत् मानने परही, पयोंकि अस वस्तु को पसार्थ का पर नहीं हो सकती है। क्योंकि राय भाव भी एकप्रकार का सम्बन्ध हो । म एव वह मत पदार्थो केहीबीच सम्भव हो सकला है, सत् और असत्केबोच सम्भव नहीं हो सकता । उस्पति के पूर्व कार्य को मत मानना पश्यि में आवश्यक है कि उ8 में कारण का ताबाम्य होता है। यविबह असत होगा तो उस में कारण का तावाल्य न हो सकेगा क्योंकि सत् और असत प्रकाश और अन्धकार के समान अत्यन्त विलक्षण है. अत एव जल में तादात्म्म कमपि सभा नहीं हो सकता । यदि यह कहा जाय कि-कापं मनमत्री होता है और कारण चसका अवयव होता है अतः का में कारण का ताबास्म्य मामना प्रसङ्गत है । अतः कार्य में कारण का साहात्म्य बता कर उसके द्वारा उत्पत्ति के पूर्व कार्य के सत होने का समर्थन करना उचित नहीं हो सकता'-तो यह ठीक न क्योंकि अवयव-प्रवषों में प्रषयों की मिन्नता को प्रसौति म होने से प्रत्ययो में प्रत्रयों को भेज

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