Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 196
________________ म्याक टीका मौर हिन्दी विवेचना ] यतःभूलम-शाखाकारा महात्मानः प्रायो पीनस्पृहा भवे । सम्वार्थसंप्रवृत्ताच कथं से युक्तभाषिणः १ ॥१५॥ शास्त्रकाराः प्रायः लोकायतादीन परलोकाऽभीरून विहाय, महात्मानः धर्माभिसूखाः भवे अंसारे, पोतस्पृहा लोकमानख्याति-धगलिप्मादिहिताः सस्वार्थसंप्र. साश्च यशाबोधं परोपकारप्रवृत्ताच, अन्यधेदृशप्रवृत्त्ययोगतः, ततः कथं तेऽयुक्तभाषिणः-झावा विरुद्ध भाषिणः ? विरोधः मलु जल-ज्वलनयोरिव परोपकारित्व विरुद्धमापिस्त्रयोरिति भावः ॥१५॥ ततः किम् ? इत्पाहमूलम्-अभिप्रायस्ततस्तेषां सम्पम् मृग्गो हितषिणा ।। न्यायशास्त्राऽपिरोधेन पचाह मनुरप्यतः ॥१६॥ ततः अविस्ट्रभापित्वात् , मेष-परोपकारार्थ प्रकृनानां शाग्यकाराणाम् , अभिप्रायः शध्दतात्यामा, सम्यगच्यासङ्गापरिहारेण, मृग्याउन्नेयः, हिनापिणान्मुमुलणा, स्पाय से अनायत आत्मसाप भिन्न कहपार बसे उत्तम पुरुष और परमात्मा कहना उचित हो है और संताप महासामान्य के द्वारा लोकत्रय में बात का भावेश और महा आकार में लोकत्र को अङ्कस्चित कर उन का भरण संभव होने से आवेश द्वारा उसे लोकप्रय का धारक कहमा भी समोबीम हो है। इस प्रकार ईश्वर के सम्बन्ध में को नैयायिक का अभिप्राय है उस का समर्थन और उपपादन अपने शास्त्रको रीति से जीवेश्वरत्व पक्ष में भी किया जा सकता है ।१४।। [निःस्पृह शास्त्रकार प्रयुक्तभाषो नहीं होते ] २५ वो कारिका में न ममो विधानों को विश्वसनीय बताया गया है जो परलोक के सम्बन्ध में प्रीत होने के कारण अनुचिल मात कहना नहीं चाहते । कारिका का अर्थ इस प्रकार है प्रायः सभी पास्त्रकार जो परलोक के सम्मम्प में भिंष रहनेवाले सार्वाकवि की श्रेणी में नाहीं माते-महात्मा होते हैं । उन की सम्पूर्ण प्रवत्ति यममुखी होती है। संसार में उन्हें मानन्ध्याति धनादि किसी वस्तु को पता नहीं होती । वे अपनो मति के अनुसार परोपकार में मिरत होते हैं। इसीलिये मिर्दोष को को शिक्षा वैने के लिये शास्त्रों को रचना करते है. अत. वे शाम मकर कोई विक्ष बात नहीं कह सकसे कि परोपकार को प्रकृति और जामबुमार विरुद्ध बात का कथन इन वोनों में पानी और अग्नि के समान परस्पर विरोध है | [युषित और मागम से शास्त्रकाराभिप्राय का अन्वेषण पूर्व कारिका में सभी शास्त्रकारों की प्रशंसा को गयी है । इस प्रशासा को सुनकर पह जिनामा हो सकता है कि वपा जेन नाकारों के समान ही अन्य शास्त्रकारों को बातें स्वीकार्य है ? १६वी कारिका में इस प्रान का उत्तर दिया गया हैकारिका का आशय पह है कि जब सभी पास्त्रकार परोपकार में प्रवृत होने के कारण अनुचित बात कहना नहीं पसाव करते तो यह अवश्यक है कि उनके जो भी शम्ब हैं उनके तात्पर्य को इस प्रकार

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