Book Title: Shastravartta Samucchaya Part 2 3
Author(s): Haribhadrasuri, Badrinath Shukla
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 166
________________ स्था का टीजा-हिनदीविवेचना ] [५५ पच्छिमटाया मत्रिशेध्यतयापादाननिष्ठनधीपासनात्यमादित्रयझेलनाकल्पने मारयात् । समयेनत्वगंबन्धेनेचीयत्वेन नन्नयानुगमेऽप्य संगायात्मवलक्षणेश्वरत्वनिधेश गौग्यात् प्रन्यकमादाय विनिमनाविरहाचच नन्कालावधेन निगम हेरक-पोजगात , हर रफारण यध्यापसे । तदनुमानदण्इत्यादिनाऽहंतत्वात , पहादीना इनवनियमस्य च स्वभारत एव संभवान् न नार्धमपीश्वगनुमाणाम् , अन्यथा तज्ज्ञानादेम्नत्तत्कारणानुमतित्वेऽपि नियामकान्तरं गवेषणीयम् : 'धामग्राहकमानेन नन बनोनियतमेवेति चेत् । दमपि तत एव किन नया ? व्यरस्थितश्चायमों 'न बाचेनना नामपि स्वहेनुसंनिधिममासादिनोपनीनां चेतना. धिमालष्यतिकेणापि देश काला कारण नियमोऽनुपपन्नः, तन्नियमस्य स्वहेतुबलायातत्वात इत्यादिना ग्रन्थेन सम्मतिरीकायामपि । सत्सदेश और तत्तकाल में ससत्कार्य के नियतत्व को ससत्कार्य की उत्पस का नियामक न मानने में यह भी एक युक्ति है कि-पदि तत्तद्देश और तत्तकाल में तत्तकार्य खे निमतत्व को हो कारण मान लिया जायगा सीततत्कालौर तत्तइदेगा में ससत्कार्य के प्रति तत्तकालीन सतहकार्य के उपाधान का प्रत्यक्ष और तत्सत्कार्य को धिकार्षा तथा तसस्का के लिये तत्तकाय के उपावान में होने वाले प्रयत्न को तत्तकार्य के प्रति कारण मानना गौरव के कारण त्याज्य हो जायगा । यदि तीनों को सिर में समधेस होने के कारण समवेतत्व सम्बन्ध द्वारा ईश्वरीयत्व रूप से तीनों का अनुगम कर तीनों में एक कारण मानी जामगी सो भी कारणसाबस्वफ के शरीर में प्रसंसारी प्रारमत्व लक्षण ईश्वरीयस्व का मिवेश करने में गौरव होगा। और यदि ईश्वरीयत्वरूप से प्रनगम न कर पारमसमयेतस्वरूप से अनुगम किया जायगा तो तस आत्मा को लेकर बिभिगमनाविरह होने से तत्तदात्मसमबेजस्व कप में जान-छा प्रयत्न में अनन्तकाता को प्रापलि होगी । और उसके बारण के लिये तत्कालास्ट्रिप्रस्थ संबन्ध से उक्त निर्यात को कारण मानने पर घर पटादि के अन्य कारणों का यम्य भी होगा। इस प्रमझ में नो यह मात कही गई कि- घटपटादि कार्य के प्रति वड माथिको कारण मानने के लियेश्य की अनुमति आवश्यक हैं अन्यथा वेमा र का और बापट का कारण होने लगेगा'-माह होम नहीं हैं । मोंकि समावि में घरपटाविको कारणता का नियम पावक । अर्यात बगड-घट काही कारण हो पर कामहो और बेमा पट होका कारण हो चटकान हो यह बात दश और वेमा स्म पर ही निर्भर हैं। उसके लिये वरामुमति को काममा अनावश्यक है। और यवि ससकाय को कारणता को ईश्वरानुमति के साधान माना जायगा तो यह प्रश्न हो सकता है कि व में हो घर को कापणता ईश्वरामुमत पथों हैं? बेमा में घट को कारणावरानुमत पगों नहीं? मत. मत्सव बस्तु में तत्तकाय-काणता को ईवर मुमति का भ। कोई पूमा नियामक अपेक्षणीय होगा । भोरम प्रकार नियामकों की कल्पना में अनबस्थाको प्रससि होगो । यदि यह कहा जाप कि -वण में ही घट की कारजता विरानुमस हैं यह बात पर साधक प्रमाणों से ही सिब है अपक्ष यवि विरानुमताव को भी माय नियामकको अपेक्षा होगी तो उसकी सिदिहोम हो सकेगी-तो यह कचन भी कोकमही है पयोंकि ऐसा मामले पर यह भी कहा जा सकता है कि पाधि में घटावि को कारणता मी स्वत: हो मियत है। उसके लिये ईश्वरानुमति मैसे भाप नियामकको आवश्पकसा नहीं

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