Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 191
________________ जह तह पवित्तिजुत्तं, जइ तं हुज्जा पमाणमेवेह। .. निट्ठीवणादकरणं, एमाइ निरत्थयं तइया.. .. // 27 // जो वि तिसंझानियमो जिणऽच्चणे, सो निरत्थओ हुज्जा। तह सड्डेणं सुइणा पूअविहाणं जिणाणं पि . . // 28 // जिणबिंबाण पइट्ठाऽहिगारिसूरिप्पसाहणं जमिह। . जुगपवरागमविरइयपइट्ठकप्पेसु किं तेण? // 29 // . ता सव्वं पि विहीए पइट्ठ-पूया य जत्थ वावरइ। तत्थेव सुदिट्ठीणं, जुत्तं गमणाइ निच्छयओ, // 30 // . जे लोगुत्तमलिंगा, लिंगियदेहा वि पुप्फतंबोलं। आहाकम्मं सव्वं जलं फलं चेव सच्चित्तं // 31 // भुंजंति थीपसंगं, ववहारं, गंथसंगह; भूसं। एगागित्तब्भमणं, सच्छंदं चिट्ठियं, वयणं , // 32 // चेइय-मठाइवासं, वसहीसु वि निच्चमेव संठाणं / गेयं नियचरणाणऽच्चावणमवि कणयकुसुमेहं // 33 // कुव्वंति अहव केवलंमागममविलंबिऊण आयरणं / वायामित्तेणं निन्हवंति, तत्थेव निरया वि // 34 // संपन्नं चिइवंदण, छविहमावस्सयं उभयकालं। फासुयजलं च मुहपत्तिगाइ-वंदणयदाणं च // 35 // पक्कन्नाइ बलीए दाणं, पहाणं च खीरमाईणि / जिणबिंबेसु अजुत्तं सड्ढाणमिमं ति जे केई // 36 // . सावयपइट्ठकहगा कहंति, नियमइ विगप्पियसुयऽत्था / ते विसयं सुयहराणं जुग्गपवराणं पि खिंसंति // 37 // जेणेयं पन्नवियं, जुगपवराणं सुयाणुसारेण। .. तं मग्गपवनेहिं बहुहाइ समत्थियं सव्वं , // 38 // 198

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