Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ विसयपिवासा आउरिहिं जं धुत्तेहिं पवुत्तु / धम्मट्ठा तं जणु करइ, हा हा ! कट्ठ निरुत्तु . // 5 // जं जं पावयवुड्डिकरु, जं संसारनिबंधु / . धम्मु भणिउ, तं तं करइ बपुरि जीवु मोहंधु पाणिवहा-ऽलिय-धणहरण-मेहुण-परिग्गहजुत्तु / .. .. जइधम्म वि अइसउ भणिउं, पावु त कइ संवुत्तु . // 7 // पावु पसंसइ हरिसिया, निंदई धम्मु जि मूढ। ते बहुदीणा दुत्थिया होयई दुग्गइ छूढ // 8 // अन्नाणंधा जीवडा धम्मछला बंधइं पावु / कुमय-कुबोहिपेल्लिया न हु जाणइं भवभावु. . // 9 // मिच्छादिट्ठी जीवडउ, बुज्झइ पावु न धम्मु / विसय-कसायहिं जगडियउ, हा ! हारइ नरजम्मु // 10 // जे इहलोयह कारणिहिं, बहु सेवई मिच्छत्तु / ते सहिसइं अग्गइगया, दुहु नारय-तिरियत्तु // 11 // जिम अमयरसि जीवियइ, मरियइ विसिहिं निभंतु / तिम सम्मत्ति अणंतुं सुह, मिच्छत्तिहिं दुहुऽणंतु // 12 // कायहि किरिया अवर जसु, वयणि भणइ जिणधम्मु / सो जिणआणालंघणिण बंधइ चिक्कणु कम्मु . // 13 // एय पमायपसाउ जगि, अरिरागारिहि घाउ / अहहा ! मोह भमाडु भवि, जिउ न मुणइ सब्भाउ . // 14 // जिम गो- अक्कह खीरु जणि वन्नीण दीसइ तुल्लु / तिम देवह गुरु-धम्मह वि, नामिहिं मूढउ तुल्लु // 15 // जसु अट्ठारस दोस न वि, जो सव्वण्णू पसंतु / देवहं देवु सु परमगुरु, परमेसरु अरिहंतु // 16 // सो गुरु, जसु नहु घर घरणि, अनुगुण तिगछत्तीस। . पयापयारणं धणहरण, अवर सवइ ओडीस . // 17 // 204
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