Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 220
________________ // 42 // // 43 // // 44 // // 45 // // 46 // // 47 // दिव्वाभरण-विमाणवर-दिव्वऽच्छरहं विलास / विलसिउ बहुसों ताई जिय अवरहं काई थिरास ते परि विसए सेवियई, जाहं न होइ विरामु / अप्पट्ठिउ अस्समु अभउ, जह सुंदरु परिणाम जीवहं सरिसवमेत्तु सुहु, दुहु मंदरगिरितुल्लु / विसयासेवणि एउ मुणिउ, उवसमु जुत्तु अमुल्लु पसमियविसयकसाउ बुहु, जं सुहु लहइ अणंतु / इंदु वि तं सुहु नहु लहइ अच्छरकोडि रमंतु जह वइसानरु इंधणिहिं, सायरु नइउदगेहिं / नहि तिप्पइ, तह मूढ जिउ बहुएहि वि भोगेहि जं खेमंकरु अप्पणह, इंदियमज्झि. तं नत्थि। . मूढउ तत्थ विरइ करइ, पाडिउ मोहह सत्थि दस दस दिटुंतिहिं कहिय दुल्लह बारसअंग। . तह वि हु अप्पह मूढ जिय नं हु मेल्हई बहि संग अप्पउं वंचिउ विविह परि परह दिति सव्वस्सु / तेहिं दाइहिं सहूं कवण तुडि जहं परु अप्पु अवस्सु भारियकम्मा जीवडा ! जइ बुज्झसि ता बुज्झु / / जं जं देसि परस्स दुहु, तं तं सयगुणु तुज्झु . जं मइलिज्जइ अणवस्य धोइज्जंतु वि देहु / ' किं पुणं विसयपसत्तमणु, नाणहीणु जिय एहु तेहिं तेहिं किमुवायहिं, परतोसण उज्जुत्तु / अप्पउं चेव सुतोसवह, जिणि तिहुयणहं पहुत्तु पर अप्पह नाणह विबुह संते भोगे चयंति / घणअन्नाणिहिं जडिय जड, अणहुंते पच्छिंति // 48 // // 49 // // 50 // // 51 // // 52 // // 53 // . .. 207

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