Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ जं बद्धं पि न चिट्ठइ, वारिज्जंतं वि सरइ असेसे(पसरइ असेसे) झाणबलेणं तं पिं हु, सयमेव विलिज्जई चित्तं // 9 // बहिरंतरंगभेया, विविहा वाही न दिति तस्स दुहं / गुरुवयणाओ जेणं, सुहझाणरसायणं पत्तं // 10 // जिअमप्पचिंतणपरं, न कोइ पीडेइ अहव पीडे। . ता तस्स नत्थि दुक्खं, रिणमुक्खं मन्नमाणस्स . // 11 // दुक्खाण खाणी खलु रागदेसा, ते हूंति चित्तं मि चलाचलम्मि / अज्झप्पजोगेण चएइ चित्तं, चलत्तमालाणिअकुञ्जर व्व // 12 // . एसो मितममित्तं, एसो सग्गो तहेव नरओ अ। एसो राया रंको, अप्पा तुट्ठो अतुट्ठो वा . // 13 // लद्धा सुरनररिद्धी, विसया वि सया निसेविआ णेण / पुण संतोसेण विणा, किं कत्थ वि निव्वुई जाया ? // 14 // जीव ! सयं चिअ निम्मिअ, तणुधणरमणीकुडुंबनेहेणं / मेहेण व दिणनाहो, छाइज्जसि तेअवंतो वि // 15 // जं वाहिवालवेसानराण, तुह वेरिआण साहीणे / देहे तत्थ ममत्तं, जिअ ! कुणमाणो वि किं लहसि ? // 16 // वरभत्तपाणण्हाण य, सिंगारविलेवणेहिं पुट्ठो वि। निअपहुणो विहडंतो, सुणएण वि न सरिसो देहो // 17 // कट्ठाइ कडुअ बहुहा जं धणमावज्जिअं तए जीव ! कट्ठाइ तुज्झ दाउं तं अंते गहिअमन्नेहिं / // 18 // जह जह अन्नाणवसा, धणधनपरिग्गहं बहुं कुणसि / तह तह लहुं निमज्जसि, भवे भवे भारिअतरि व्व // 19 // जा सुविणे वि हु दिट्ठा, हरेइ देहीण देहसव्वस्स। सा नारी मारो इव, चयसु तुह दुब्बलत्तेणं 214
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