Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 223
________________ // 78 // // 79 // // 80 // // 81 // // 82 // // 83 // जं पिच्छउं इंदियमुहिहिं, तं मह होइ न रूवु। अंतरु जोइ जु उत्तमउं, तं मह होउ सरूवु जह परदव्विहिं समलु जलु, निम्मलु तेहिं विउत्तु / तह अप्पा वि हु मुणिउ, बुहु तं कुणसु य जं जुत्तु फलिहोवलु निम्मलु विबुहु, जीवु सहाविहिं सुद्ध। बहिंभाविहिं बहु भावियउ, तम्मयभावु सु मुद्ध परमप्पह भिन्नउ जया.कप्पइ अप्प विकप्पु / परमतत्तदप्पणि तया, पिच्छइ अप्पणि अप्पु भिन्नप्पाणनिसेवणह, अप्पा तारिसु होइ। . दीवो वासणि वट्टि जह जायइ, तइसी जोइ लोहु सुवण्णीहोइ जह सिद्धहरसफंसाउ। तह अप्पा जिय चिंतणह, लेइ परमप्पा भाउ बहिभाविहिं रंजिय जगह जोगिउ गहिलउ भाइ / अप्पह तत्तु सुनिट्ठियह, तसु पुण जगु पडिहाइ पुव्विं दिट्ठ स तत्तयह भासइ जगु उम्मत्तु / . कट्ठरूवु पच्छा मुणइ मुणि भाविय जियतत्तु न मुणइ अकहिउ तत्तु, जह मूढ पत्तअबोहु / तह कहियं ता तेसि निरु, कहणपरिस्समु मोहु अप्पउं अप्पा मुणइ परि सयसंवेयण सुक्खु / परमत्थिहि अप्पा वि गुरु, ववहारिहिं पच्चक्खु अप्पह नाणह जाइ फुडु जिय विब्भमु भवदुक्खु / तसु विणु परमतवेण नवि पावइ मोक्खह सुक्खु तणु कंचुयआवरिउ, निरु अप्पा नाणसरूवु / * अप्पिं अप्पु न जाणई, तउ भमडइ तणुरूवु . 210 // 84 // // 85 // // 86 // // 87 // . // 88 // // 89 //

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