Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 216
________________ न परं न कुणंति सयं, अवि य भयमएहि निति सुत्तत्थं / जं समइपहेण तयं,अहह महामोहमाहप्पं // 10 // एवंविहाण वि दहें; दसमच्छेरयमहापभावेण / सद्धालु मुद्धबुद्धी, भत्तीए कुणंति पूयाई अन्ने उदग्गकुग्गह-घत्था दुरहिगयसमयलेसेहिं / नटेहिं नासिया आसिया फुडं सुन्नयावायं // 12 // इय बहुविहअसमंजस-जणदंसणसवणओ वि धीराण। मणयं पि न चलइ मणं, सम्मं जिणमयविह(हि)न्नूणं // 13 // ता भासरासिगहविहु-रिए वि तह दक्खिणे वि इह खित्ते / अस्थि च्चियं जा तित्थं, विरलतरा केइ मुनिपवरा // 14 // ते य बलकालदेसा-णुसारपालियविहारपरिहारा / ईसि सदोसत्ते वि हु, भत्तीबहुमाणमरिहंति // 15 // ते य असढं जयंता, सुबुद्धिओ मुणियसमयसब्भावा / ईसि सकसायभावे, पि हुंति पुज्जा बुहजणाण // 16 // // 1 // पू.आ.श्रीजिनप्रभासूरिविरचितम् ..... // ज्ञानप्रकाशकुलकम् // देवहं देवु सु जगि जयउ तिहुअणगुरु जिणराउ / अज्जवि नाणपयासु जसु पसरइ पयडपभाउ. पावह कोइ न अभिडइ धम्मु करइ सहु कोइ / पावह धम्मह अंतरं, जिणवरवयणिहिं जोइ पुहविसु कोइ न दीसई, जो न हु करई स धम्मु / . एकह विणु जिणधम्मियह अप्पउं मुणइ जु सम्मु गहिलेण वि चरिएण, जणु अप्पह धरइ पमोउ हा, अविवेयह विलसियं अप्पचंगु जियलोउ . . . . . 203 // 2 // // 3 // // 4 //

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