Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 214
________________ मिच्छत्तछनपडिकप्पियजुत्तिहीणनाणाकुसत्थमयमूढकुतित्थियाणं / दुव्वासणाविनडिया पडिया वसे ही जीवा कयाइ न भवंति भवंतगामी ता भूरिकुग्गह-कुतित्थि-कुदेसणाउ, सुच्चा वि निच्चमचला जिणधम्ममग्गे / भो ? लग्गहुज्झियकुधीभयसंकलज्जा, एवं च होहिह सुधम्महिगारिणु त्ति // 10 // भूयोभिः सुकृतैः कथंचन जनैः कल्पद्रुरासाद्यते, संप्राप्तोऽभिमतं प्रयच्छति सकः संकल्पमात्रादपि / सोऽप्यस्माभिरलाभ्यभाजि च चिरं दध्ये विधायाञ्जलि, घोरे व्यक्तमयुक्तमित्यपि वृथाऽभूदित्यचिन्त्यो विधिः // 11 // - एकादशं कुलकम् / इह हि खलु दुरंते चाउरते भवम्मि परिभमणमणंताणंतकालं करित्ता। कह कह वि तसत्तं तत्थवी माणुसत्तं बहुसुकयवसेणं पाणिणो पाउणंति तमवि सुकुलजाईरूवनीरोयदीहाउयमइगुणवंतं सव्वहा पत्तपुव्वं / चिरसुचरियभावा भाविभद्दाणमंते हवइ तदिह लद्धे सव्वहा उज्जमेह 2 परिहरह पमायं दिनदीहावसायं मुयह कुगइमूलं धम्मसंदेहजालं। चयह कुगुरुसंगं सव्वकल्लाणभंगं सुणह जिणवरुत्तं सुद्धसिद्धंततत्तं 3 मुयह निहयसोहं सव्वहा कोहलोहं निहणह मयमायं दिनसंसारपायं / सरह सरहसं भो ! सव्वसत्तेसु मित्तिं कुणह जिणगुरूणं पायपूयापसत्ति पयड़ह बहुदुक्खत्तेसु सत्तेसु दूरं परमकरुणभावं दव्वओ भावओ य / भयह गुणिसु रागं सव्वकल्लाणवल्लीपसरसरसनीरासारमच्चंतसारं॥ 5 // गरिहह कयणेगाणत्थसत्थं समत्थासुहसयजणचारी रायमग्गं व दुग्गं / जणियविसयगिद्धि पावमेत्तेहि सद्धि जइ महह महंति सव्वसंपत्तिसिद्धिं किमिह सुबहुवायावित्थरेणं भवाउ, जइ कहमवि चित्तं तुम्ह दूरे विरतं / 201

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