Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 212
________________ सययमिह जियाणं सोगदोगच्चवाहीजरमरणभयाई वेरिणो दुन्निवारा / जइ खयकरमेसि कोइ कंखिज्ज तत्तं, तह वि हु कुपहदंसी ही दुरंता कुलिंगी // 19 // नियगुरुकमरागेण ऽन्नदक्खिन्नओ वा, समइअभिनिवेसेणंधमंधीइ केई। सुविहियबहुमाणी होउ मज्झत्थनाणी, इय कुसुयकुबुद्धं बिंति आणाविरुद्धं // 20 // नियमइकयसामायारिचारित्तसन्ना मुसियजलजणोहा सुत्तउत्तिण्णबोहा / वयमिह चरणड्डा हंत नऽनि त्ति विता परपरिभवमत्तुक्कासमुल्लासयंति२१ कुगुरुसु दढभत्ता तप्पहे चेव रत्ता अमुणियसुयतत्ता साहुधम्म(म्मे)पमत्ता गुरुकुलकमचत्ता संकिलेसप्पसत्ता अहह कहमपत्ता चेव ही खाइपत्ता२२ कुगुरुवयणदूढा संसयावत्तछूढ़ा अइबहुभवरूढातुच्छमिच्छत्तमूढा / अपरिणयसुयत्थं जीवियासंसघत्थं सुहगुरुरयमेवं बिंति मुत्तं व देवं 23 अइ दुसमदुरंतच्छेरय ! भासरासी ! दुसमसमय ! हंभो तुब्भमेसप्पभावो जमिह कवडकूडा साहुलिंगी गुणड्डे परिभविय पहुत्तं जंति नंदन्ति दूर किर बहुपहुपासे धम्मसुस्सूसणाए, कुमयविउडणेणासंकिया हुंति भावा।। नवसुविहियसेवासत्त तत्तत्थियाणं, .. कहमिव विवरीयं जायमव्वो इयाणि // 25 // श्यकुपहपयारं सुद्धधम्मंधयारं परिलसिरमसारं छड्डिउं निव्वियारं / सइ अणभिनिविट्ठा सुत्तजुत्तीविसिट्टा गयभयमयतिट्ठा होह सम्मग्गनिट्ठा 1ce

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