Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ कह वि तुडिवसेणं तं पि लद्धं सुखित्तुत्तमकुलसुहजाईरूवमारुग्गमाउं / असुलभमवि राहावेहणाएण लद्धं जइ तह वि हु बुद्धी दुल्लहा सुद्धधम्मो(म्मे) // 4 // अह कहमवि जाया काकतालीयनाया. जिणमयसुइबुद्धी तो वि से पच्चवाया / भयकुमयकसायालस्सव(वि)क्खेववन्नारमणकिवणयाहीसोगमोहप्पमाया // 5 // अह कह वि किलेसा तस्सभावत्तकालपरिणइवसपत्तापुव्वपुण्णोदएणं / युगसमिलपवेसन्नायओ मुक्खमूलं, सुणिय जिणवरुत्तं भाविऊणं च चित्ते तह वि हु बहुलाए चंडपासंडियाणं, जिणसमयविरोहा भासरासिंग्गहस्स / बहुकुपहपरूढातुच्छमिच्छत्तपित्तज्जरविहुरियबोहा हा न तं सद्दहति इइ बहुसुहलंभं पाविउं धम्मसद्धं उवलहिय दुलंभं धम्मसामग्गियं च। खरपवणपणुल्लत्तालतूलं वं लोलं मुणिय भवसरूवं सुत्तवुत्तं करेह॥८॥ * पडिहणियकसाए सिद्धिबद्धाणुराए विहिअहिगयसुत्ते तस्स आणाइ जुत्ते फुडपयडियतत्ते साहुणो निम्ममत्ते सुहगुरुपरतंते पज्जुवासेह दंते॥९॥ विणयनयपहाणा वत्थुवीमंसमेसि पयपउमसमीवे सव्वकालं करेह। -- गयभयमयमायामच्छरा तत्तकंखी नियविसयविभागे तं सया संठवेह१० अमयमिव मुणंता ताण वुत्तं कुणंता,दलह सबहुमाणं तेसिं भत्तीए दाणं / धरह अकयहीलं सोचियं चारु सीलं,भयह तवविहाणं भावणं भावणाणं 190 // 7 //
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