Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
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________________ // 24 // तम्हा खणमवि न खमं विलंबिउं जं च कुसलसामग्गी। सहस त्ति दिट्ठनट्ठा हरिचंदउरि व्व सव्वा वि. इय नाउमाउयं थेवमेव सज्झं बहुं च धम्मधणं / गुरुलाभमप्पच्छेयं सेयं ति करिज्ज जं जोग्गं // 25 // // 1 // // 2 // पञ्चमं कुलकम् / इह भवकारागारे गुरुमोहकवाडरुद्धसुहदारे / कालमणंताणंतं वसंति जीवा तमंधारे , अह कह वि कम्मपरिणामओ तहाकालपरिणईए य / संववहारियभावं केइ वि पावंति तत्थ वि य होउं भूजलतेउवाउसु पुढो अस्संखउस्सप्पिणी, ता णंता उ तरूसु सागरसए वीसं तसत्ते 'हिए / गाढारूढपरूढमोहमहिमायत्ता दुहत्ता इमे, जंतू जंति इहासमंजसमहो संसारचक्के चिरं सयलकुसलहेउं माणुसत्तं लहेडं, जणणमरणलक्खे फासमाणा अलक्खे / ' पुण वि गुणियकम्मा होइउं पावकम्मातुलभरमनिवारं लिति तो गंतवारं अह गिरिसरिउवलमाइनायओ अहपव्वत्तकरणेण / चउगइगया वि बहुतमकालेण विसुद्धतरभावा एगूणवीसमेगूणतीसमेगूणसत्तरि कमसो / वीसगतीसगमोहाणं सलिलनिहिकोडिकोडीउ खविय ठिइसंतमेगा देसूणा धरइ जाव ता गठिं / ' पाविय केइ वलंति वि अन्ने उ अपुव्वकरणेण . . // 4 // // 7 // 188
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