Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala
View full book text
________________ // 9 // घणकम्मपरिणइमयं भिदिय चिररूढगूढदढगंठिं / मिच्छत्तंतरकरणं काउं अनियट्टिकरणेण . // 8 // तो भवसागरतरणे तरीसमं असमसोक्खमोक्खकरं / पावंतुवसमसम्मं जीवा अंतोमुहत्तद्धा पुण केई कम्मपरिणइवसेण अइसुंदरं पि सम्मत्तं / संपत्तं पि अजोग्गा चिंतामणिमिव विमुंचन्ति // 10 // मिच्छत्तुक्कोसठिइं पि बंधिउं अह पुणो परिभमंति। जीवा बहुकालमहो दुरंतसंसारकंतारे // 11 // तो माणुसत्तममलम्मि कुले सुखित्ते सव्वंगचंगमरुजं चिरजीवियं च / भूयो रहट्टघडिमालतुलाइ लद्धं बुद्धिं सुधम्मसवणम्मि कुणंतयावि१२ गुरुरोगजालसलिले बहुसंभवमरणलोलकल्लोले / दारुणरागोरगभयकरे जराबद्धडिंडीरे . // 13 // इच्छायत्तनिरंतरचिंतारयबलविलोलजन्तुगणे / उद्दामकामवाडवरुद्धे गंभीरमोहतले // 14 // असमभयहासकेलीकलहाहंकारचलतिमिसमूहे / चिररूढगूढमायाजलनीलीविसरसंछने // 15 // इह हिंडंते जीवा अपारसंसारसागरे घोरे। - सुगुरुचरणारविंदं विदंति न तारणतरंडं . // 16 // वारं वारं कुणयमयसंमोहसंदोहवेला- . गाढालीढा मरणलहरीसंकुले भूस्किालं / मायागोला इव कुगुरुसंबंधसंदेहदोला रूढामूढा भवजलभरे बद्धवेगं सरंति // 17 // सुगुरुमवि लहिय कहकह वि तुडिवसा सुणिय मुणिय तव्वयणं / - मिच्छत्तासत्तोदग्गकुग्गहा तं न मन्नति // 18 // ... . . . 189
Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238