Book Title: Shastra Sandesh Mala Part 07
Author(s): Vinayrakshitvijay
Publisher: Shastra Sandesh Mala

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Page 205
________________ परपरिवायं परवसणतूसणं परपराभवं रोसं / . अत्तुक्करिसं हरिसं मुंचसु मायं विसायं च . .. कुणसु य गुणिसु पमोयं मित्तिं सत्तेसु दुक्खिएसु दयं / ... निग्गुणजणेसु विक्खं दक्खिन्नं तह अपेसुन्नं * // 8 // जं लोए न विरुज्झइ सुज्झइ जेणऽप्पणो मणोभावो / नियगुरुकुलक्कमाणं कलंकपंकं न जं कुणइ // 9 // सुत्ते जं न निसिज्झइ सिज्झइ लहु जेण मुक्खसुक्खफलं / तं सव्वं कायव्वं रागग्गहनिग्गहेण सया , // 10 // // 1 // // 3 // सप्तमं कुलकम् / एगिदिएसु अत्थिय कालमणंतं पसुंत्तमत्तु व्व / कहमवि कयाइ केइ वि जीवा पावंति तसभावं तत्थ नरत्तं तत्थ वि सुहखित्तं तत्थ जाइकुलरूवं / तत्थारोग्गं तत्थ वि चिरजीवित्तं च अइदुलहं तत्थ वि बहुसुहकम्मोदएण धम्मे वि हुज्ज जइ बुद्धी। तो वि जियाण न सुलहो जिणवयणुवएसगो सुगुरू ता गहिरमहोदधिमज्झपडियरयणं व कुसलसामग्गिं / ' दुल्लहं पि लहिय विबुहो विहिज्ज सु(स)द्धं सुधम्मम्मि साहुगिहिभेयओ सो दुविहो तत्थ पढमम्मि असमत्थो / जहसत्तिं गिहिधम्मं कुणसु तुमं भावओ तत्थ तिक्कालं चिइवंदणममंदआणंदसुंदरं विहिणा। तह सुविहियजइसेवणमित्तो जिणवयणसवणं च जिणपूयाइविहाणं तग्गुणनाणं तहा मुणिंदाणं / . . विहिदाणं सुहज्झाणं तवउवहाणं च जहसत्ति // 4 // // 6 // // 7 // 12

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