Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 01
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 32
________________ ( २२ ) उत्तरः नहिं, सचेत होने से नहि खाते. (१६) प्रश्नः कचा नाज खाते हैं ? उत्तरः नहि वह भी सचेत (१७) प्रश्नः सचेत अचेत नाज कैसे मालुम होसकता हैं? उत्तरः बोया जाने से जो नाज उगता हैं वह सचेत व नहि उगता हैं वह अचेत. (१८) प्रश्न: चावल सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत क्योंकि बोने से उगते नहीं हैं. (१६) प्रश्नः जुवारी, बाजरी, गेहूं, मूंग, चना, उड़द, मोठ, मकाई आदि सचेत या अचेत ? उत्तरः सचेत क्योंकि वोने से उगते हैं. (२०) मनः उड़द की दाल (कच्ची ) सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत, क्योंकि किसी ही दाल वोने से उगती नहीं है. (२१) मनः आटा सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत. (२२) प्रश्न: कैसा आटा दाल सचेत या साधु के लिये अकल्पनीय गिना जाता है ? उत्तर: तुरत में बनाई हुई दाल या पीसा हुवा आटा सचेत होने से साधु को अकल्पनीय है. पढ़ानेवाले को यहां बताना चाहिये कि साधु ऐसा नहिं चाहते हैं कि अपने वास्ते कोई रसोई बनादेवे या सचेत वन्तु को अचेत बनाकर रखें, अचेत वस्तु तैयार हो उस वक्त अनायास साधुजी पधारे तो चाहे ले सकते हैं.

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