Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 01
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 64
________________ (५४) — उत्तरः १०१ क्षेत्र के (क्षेत्र आश्रयी) १०१ भेद होते हैं. अब हरेक क्षेत्र में गर्भज मनुष्य के अपर्याप्ता व पर्याप्ता इस तरह दो दो भेद लभते हैं जिससे.१०१ अपर्याप्ता व १०१ पर्याप्ता मिल कर कुल २०२ भेद होते हैं. (७२) प्रश्नः जुगलिया गर्भन है या समूर्छिम ? उत्तरः गर्भज. . . . . . . (७३) प्रश्नः पर्याप्ता व अपर्याप्ता शब्द का अर्थ क्या होता है ? उत्तरः छः प्रकार की पर्याप्ति हैं कि जिनसे आत्मा पुद्गल को ग्रहण करता है व उन पुद्: गलों को शरीर, इंद्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन के रूप में परिणमन कर सकता है. उन पर्याप्ति को, जीवने किसी भी गति में उत्पन्न होकर जहांतक पूर्ण की न होवे वहां तक उस जीव को अप प्तिा कहा जाता है और पूर्ण होने के बाद पर्याप्ता कहाता है. (७४) प्रश्नः उन छ पर्याप्ति के नाम क्या है ? उत्तरः १.आहार पर्याप्ति २ शरीर पर्याप्ति ३ इन्द्रि ___य पर्याप्ति, ४ श्वासोच्छ्यास पर्याप्ति ५ भाषा पर्याप्ति और ६ मनः पर्याप्ति. (७५) प्रश्नः अपर्याप्तावस्था में जीव ज्यादे से ज्यादे ... कितना समय रहता है ? .. . उत्तरः अंतर्मुहुर्त.

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