Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 01
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 --------------------------------------------------------------------------  Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * वन्दे जिनवरम् * .. MAT. शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर DS - W . * प्रथम भाग 3 जैन पाठशालायें तथा जैनधर्म का प्राथमिक ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले सज्जनों के वास्ते. अनुवादकडॉ. धारशी गुलाबचंद संघाणी H.L.M.S, मैनेजर श्री श्वेतांवर स्थानकवासी जैन कॉन्सरन्स .... ऑफिस अजमेर. प्रयोजक व प्रकाशककामदार झवेरचंद जादवजी सव एडीटर "कॉन्फरन्स प्रकाश" अजमेर. .॥सर्व हक स्वाधीन॥ INTE: Printed by Dr. D.G. Sanghani H. L: M.S. . at S. S. Jain Printing Press Ajmer. : प्रथमावृत्ति । पीर संवत् २४४२. प्रत १००० विक्रम १९७१ सष्टाव्द १९१४ .. .. . . Page #4 --------------------------------------------------------------------------  Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रस्तावना ॥ :०: मनुष्य का कर्तव्य खान पान नहीं है मगर उत्क्रान्ति है. उत्क्रान्ति दो प्रकार की होती है :- दैहिक व आत्मिक. जि. नमें से आत्मिक उत्क्रान्ति श्रेष्ट है, ताहम भी हमें दैहिक को नहीं भूल जाना चाहिये. इन दोनों उत्क्रान्ति का आधार धर्म ही पर है, क्योंकि धर्म रूप धरि के बिना दैहिक व आत्मिक उत्क्रान्ति रूप गाडी नहीं चल सक्ती. विना धर्म के भी संसार सुखमय द्रष्टिगोचर होता तो है मगर वो मृगतृष्णावत् है; वास्तव में जैसे मृगजल, जल नहीं है वैसे ही विना धर्म के दृष्टिगोचर होता हुवा सुखी संसार दर हकीकत में सुखी नहीं है. परन्तु अंतर 'पटमें दुखरूप ज्वाला विद्यमान है. कहने का तात्पर्य यह है जहां शुद्ध धर्म हैं वहां ही सुखी संसार व आत्मो कान्ति दोनों मोजूद है के जो मात्र जीवन का खास कर्तव्य है, परन्तु जहां तक धर्म का सच्चा रहस्थ नहीं कानने में वे atics हृदयशून्य धर्म व बाहरी घा र्मिक क्रिया से कुछ लाभ प्राप्त नहीं हो सकता, अतएव . धर्मका सवां संस्कार डालना होवे तो उसके वास्ते अनुकूल समय वाल्यावस्था ही है. इन दोनों कारणों से याने शुद्ध धर्म संस्कार डालने व वहभी बचपन में ही डालने के श्राशय से, आसानी से समझ सके एसी शैली में कितने वर्षोंके अनुभव के पश्चात् मांगरोल जैनशाला के Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) अध्यापक व वर्तमान में "कॉन्फरन्स प्रकाश" नामके माप्ताहिक पत्रके सवएडीटर मी० झवेरचंद जादवजी कामदारने "शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर" नामा छोटीसी मगर अति उपयोगी पुस्तक गुजराती भाषामें प्रगट की थी, जो लोगों में अति प्रिय हो जानेके कारण हिंदके हिन्दी जानने वालों स्वधर्मियों के हितार्थ इसका हिंन्ही अनुवाद करनेकी उत्कंठा मेरे हृदयमें हुइ थी जिसको आज परिपूर्ण होती हुई देख कर मेरेको बहुत खुसी होती है. - मैंने हिन्दी भापाका अभ्यास नहीं किया है परंतु हिन्दी भाषा जानने वाले स्वधर्मियों के समागमसे कुछ अनुभव हिन्दी भाषाका हुवा है अतएव भापाके पूर्ण ज्ञानके अभावसे अनुवादमें बहुन बूटियां रह गई होंगी उनको पाठक गण क्षमा करेंगे ऐसी विनति है. यदि प्रसं. गोपात इन बेटिगोंको पाठकगण लिखकर भिजवाने की कृपा करेंगे तो दूसरी आवृत्तिमें इनको दूर करनेका साभार प्रयत्न किया जावेगा. अनुवादक: डॉ. धारशी गुलाबचंद संघाणी H. L M.S, Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मक्खन के बारे में आया हुवा प्रश्न का खुलासा. कांधला निवासी श्रीयुत् चतरसैन खजानची ने "प्रकाश" पत्र के अंक १९ में ५ प्रश्न किये थे जिनमें से प्रथम प्रश्न ( कि जो शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर पर से उपस्थित हुया था ) यह है * प्रश्न (१) १६ फरवरी के अंक १४ में लिखा है कि पक्खन में दो घडी में छाछ के निकलने पर दो इंद्रिय जीव हो जाते हैं सो यह कौन सूत्र में कहा है ? के उत्तर श्रीमद् हेमचन्द्राचार्य विरचित योग शास्त्र के आधार पर से हमने यह वात लिखी थी उक्त प्राचार्यने योग शास्त्र के तृतीय प्रकाश में प्रतिपादन किया है कि:अंतर्मुहूर्तात्परतः । सुसूक्ष्मा जंतुराशयः ।। यत्र मूर्छन्ति तन्नाय । नवनीतंविवेकिभिः ॥ श्लो- ३४ . मक्खन को छाछ में से निकालने के पश्चात् अंतमुहूर्त व्यतीत होने पर उसमें सूक्ष्म जंतुओं के समूह उत्पन्न होते हैं अतएव विवेकी जनों को चाहिये कि मक्खन का भत्तण न करें। . एकस्यापि जीवस्य । हिंसने किमघं भवेत् ।। जंतु जातमयं तत्को । नवनीतं निपेवते ॥ श्लो ३५ . Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) एक जीव की भी हिंसा करने में अत्यंत पाप है तब जंतुओं का समुदाय से भरा हुवा इस मक्खन को कौन भक्षण करें ? अर्थात् किसी भी दयावान् मनुष्य उसका भक्षण करे नहीं. उपरोक्त श्लोक में मुहूर्तात्परतः नहीं मगर अंतर्मुहूर्तास्वरतः कहा है जिसका तात्पर्य यह है कि मुहूर्त के पीछे नहीं मगर मुहूर्त के पीछे उसमें सूक्ष्म जंतुओं के समूह उत्पन्न होते हैं दो समय से लेकर दो घडी में एक समय कम होवे वहां तक अन्तर्मुहूर्त गिना जाता है जिससे हमने दो घड़ी में उत्पन्न होने का लिखा है सो उस ग्रंथ के मत से तो बरावर है मगर सूत्र श्री वेदकल्प देखने से हमारा मन भी शङ्कां शील हो गया हैं क्योंकि श्री वेदकल्प सूत्र के बट्टा उद्देश का ४६ वां सूत्र इस प्रकार हैं. नो कप्पई निरगंथाणवा. निरंगथीणवा पारियारीिराणं तेलेणवा, घरणवा नवणीरणवा वसारणवा गायाई अभंगेत एवा मखेतवा गणस्थगाढागाढ़े रोगाय केसु (४६) अर्थ:-नो: न कल्पे नि. साधु साध्वी को प. पहिला महर का लिया हुवा पिछले महर तक ते. तेल घ. घृत नं. लवणी (मक्खन) व. चरवी मा. शरीर को अ. एक दफे लगाना म. वारवार लगाना ण. इतना विशेष कि गा. गाढ़ागाढ कारण से रोगादिक में लगाना कल्पे. उपरोक्त सूत्र से पहिले प्रहर में लिया हुवा मक्खन आदिका अभ्यंगरण करना तीसरा महरतक साधु साध्वी को कल्पनिक है ऐसा स्पष्ट मालूम होता है यदि मक्खन में योग शास्त्र में कहे अनुसार अंतर्मुहूर्त के पीछे त्रस Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवों की उत्पत्ति होती होवे तो उपरोक्त सूत्र में नवनीएण शब्द की योजना भगवान कभी न करें. पहले प्रहर में लिए हुए मक्खन का चीथ प्रहर में भी रोगादि के प्रवल कारण से साधु मात्री अपने शरीर में लगा सके हैं जिससे यह घात सिद्ध हुई कि इस में चौथा प्रहर तक भी सजीव की उत्पत्ति न होनी चाहिए मगर हेमचंद्राचार्य जैसे समर्थ विद्वान् वेदकल्पकी यह बात से केवल अज्ञात होवे यह बात भी हमें कुछ असंभव सी मालुम होती है. जिस से इसमें कोई और रहस्य होना चाहिए. इस विषय में हमारा तर्क यह है कि साधु साध्वी नवनीत प्रथम प्रहर में लाकर छाछमें रख छोडे और ज. रूरत होनेपर इसमें से निकाल कर उपयोग में लावे. कि जिस से मक्खन में जंतु की उत्पत्ति भी न होवे और साधुजी का काम भी चल जावे. ऐसा होये तो ग्रांथिक व सिद्धांतिक दोनों प्रमाण में प्रत्यक्ष विरोध दिखने पर भी दोनों प्रमाण यथार्थ हो सके हैं. मक्खन को छाछ में नहीं रखने से उस में फूलण फा होना भी संभवित है और फूलण अनंतकाय होने से साधु के लिये अस्पर्य है इससे भी हमारा उपरोक्त तर्क को पुष्टि मिलती है. विद्वान् मुनिवरों का इस बारे में क्या अभिप्राय है घह जानने की हमें वडी जिज्ञासा है. इस लिये पाठक गणको विज्ञप्ति की जाती है कि उपरोक्त बातका खुलासा पंडित मुनिवरों से लेकर हमें लिख भेजने की कृपा करें. ... हमारी गलती होगी तो हम फोरन कबूल कर लेंगे हमें किसी प्रकार का मतानह नहि है. पयोजक. मक्खन Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ विषयानुक्रमणिका * प्रकरण विषय १ लोकालोक २ पंचपरमेष्टि की पहिचान ३ जीव-तत्व और अजीव तत्व ४ द्वीप व समुद्र ५ साधुजी का प्राचार ६ सचेत अचेत की समझ ७ स व स्थावरजीवों ८ महावीर शासन 8 पुण्य तत्व व पाप तत्व १० भक्ष्याभक्ष्य का विचार ११ मनुष्य के भेद १२ तिर्यंच के भेद -: : Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शालोपयोगी जैन प्रश्नोत्तर. ॥ प्रकरण पहला ॥ * लोका लोक . ( १ ) प्रश्न: - इस दुनियां को जैन शास्त्र में क्या कहते उत्तर:- लोक . (२) प्रश्न: -- लोक के मुख्य विभाग कितने व कौन २ से हैं ? उत्तर:- तीन. उर्ध्वलोक, अधोलोक, व लोक. (३) प्रश्न: - अपन किस लोक में रहते हैं ? उत्तरः- तीर्छा लोक में. (४) प्रश्न: - - उर्ध्व लोक में मुख्य कर कौन रहते है ? उत्तरः--वैशनिक देव. ( ५ ) प्रश्नः - अधोलोक में मुख्य कर कौन रहते हैं ? उत्तर:- नारकी व भुवनपति देव. ( ६ ) प्रश्न: - उर्ध्व और अधो का अर्थ ( मतलब ) क्या है ? उत्तरः-- उर्ध्व मायने उंचा और श्रधो मायने नीचा. (७) प्रश्न: - लोक कितना बड़ा है ? उत्तर:- असंख्य योजन का लंबा, चौड़ा व उंचा (८) प्रश्न: असंख्यं किसे कहते हैं? उत्तर :- जिसकी संख्या न हो सके उसको श्र . संख्यं कहते हैं. - Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Pho. (२) (8.) प्रश्नः लोक के चारों ओर क्या है? उत्तरः-अलोक. , . . (१०) प्रश्नः अलोक कितना वर उत्तरः-अनंत. ६११) प्रश्नः अनंत का अर्थ क्या है ? उत्तरः-जिसका अंत याने पार नही सो अनंत कहलाता है . (१२) प्रश्नः लोक बडा है या अलोक ? उत्तर:-अलोक. (१३) प्रश्नः अलोक में क्या क्या चीजें हैं ? उत्तरः....सीर्फ अाकाशं है और कुच्छ भी नहीं है, (१४) प्रश्न:-लोक और अलोक दोनो मिलकर ___ क्या कहलाता है । उत्तर:-लोकालोक. ॥ प्रकरण दूसरा ॥ पंच परमेष्टि की पहिचान । (१) प्रश्नः-लोकालोक संपूर्णतया कौन जान सक्ने हैं व देख सके है ? उत्तर:-परमेश्वर (२) प्रश्न: अपन यहां बात चीत करते हैं क्या पर मेश्वर वह जानता है ? उत्तर... हां वह सब कुच्छ जानता है. (३) प्रश्न:- सब कुच्छ जाने उसे क्या कहना चाहिये ? Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) उत्तरः- सर्वज्ञ. ( ४ ) प्रश्न: - सर्वज्ञ किस २ को कहा जा सका है ? उत्तर :- श्री सिद्ध भगवंत को और श्री अरिहंत देव को. ( ५ ) प्रश्न: - सिद्ध भगवान कहां रहते हैं ? उत्तर :- सिद्ध क्षेत्र में. ( ६ ) प्रश्न: - सिद्ध क्षेत्र कहां पर है ? उत्तरः- लोक के शिरोभाग पर व अलोक के नीचे. (७) प्रश्नः - श्री सिद्ध भगवान के हाथ कितने हैं ? उत्तर:- एक भी नहि क्योंकि उनको शरीर (कि as पदार्थ है सो ) नहि है . ( ८ ) प्रश्न: - सिद्ध भगवान यहां कब आयें ? उत्तरः- यहां नहीं आवें क्योंकि उनको यहां आने का कोई भी कारण नहि है. ( 8 ) प्रश्न: - अरिहंत देव का अर्थ क्या है ? उत्तर:- कर्म रूप शत्रु को हनन करने वाले देव याने तीर्थंकर देव... (१०) प्रश्न : - कर्म किसे कहते हैं ? उत्तरः- जीव को जो चारों गति में परिभ्रमण कराता है और संसार के सुख दुःख के जो मूल कारण रूप है उसको कर्म कहते हैं (११) प्रश्न: - कर्म कितने प्रकार के हैं व कौन २ से हैं ? उत्तरः- आठ प्रकार के ज्ञानावर्णीय, दर्शनाव य, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र, अन्तराय.. · Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) प्रश्न:-कर्मको तुमने देखे हैं ? . उत्तरः-नहीं अपन उनको नहीं देख सक्ने हैं. (१३) प्रश्न:-तुम्हारी पास कितने कर्म हैं ? उत्तर:-आठ. ' (१४) प्रश्न:-सिद्ध भगवंत की पास कितने कर्म हैं ? उत्तरः-एक भी नहीं (१५) प्रश्न:--अरिहंत देवकी पास?. . • . उत्तरः-चार कर्म. . (१६) प्रश्न:-अरिहंत देवको कितने हाथ होवे ? उत्तर:-दो. (१७) प्रश्न:-अरिहंत देव खाते है क्या ? उत्तर:-चे साधु की तरह अचेत आहार करते है. (१८) प्रश्न:-सिद्ध भगवंत क्या खाते हैं ? . उत्तरः-कुछ नहीं ( उनको शरीर ही नहीं है तो.. फिर खाने की जरुरत ही क्या ) (१६) प्रश्नः-इस वक्त इस लोक में कितने अरिहंत हैं ? उत्तरः-वीस(२०) प्रश्नः-वे किस लोक में हैं ? उत्तर:-तीळ लोक में. (२१) प्रश्नः-त्रीछा लोक के किस क्षेत्र में ? उत्तरः-महा विदह क्षेत्र में. . (२२) प्रश्न:-महा विदेह क्षेत्र कितने हैं ? उत्तर:-पांच. (२३) प्रश्न:-अरिहंत देव काल करके कहां जाते हैं ? उत्तर:-मोक्ष में जाते है. Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) प्रश्नः-इस भरतक्षेत्र में अखीरी अरिहंत कौन हुए ? . . उत्तर:-श्री महावीर प्रभु, दूसरा नाम श्री वर्धमान स्वामी (२५) प्रश्न:-श्री महावीर प्रभु अव कहां है ? . उत्तर:-सिद्ध क्षेत्र में. :(२६) प्रश्न:-नवकार मंत्र कहिये ? उत्तरः-नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आ यरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए. सव्व साहुणं. (२७) प्रश्ना-नमो का अर्थ क्या ? उत्तरः-नमस्कार होजो. (२८) प्रश्न:-अरिहंताणं का अर्थ क्या ? उत्तर:--अरिहंत देव को. (२६) प्रश्न:-सिद्धाणं का अर्थ क्या ? उत्तर:-सिद्ध भगवंत को. (३०) प्रश्न:-अरिहंत व सिद्ध इनमें वडे कौन ? उत्तर:-सिद्ध. (३१) प्रश्न:-जव अरिहंत को.पहिले नमस्कार किस चा स्ते किये जाते है ? उत्तरः-क्योंकि सिद्ध भगवंत को पहिचान कराने वाले वेही ( अरिहंत ) हैं.. (३२) प्रश्न:-अरिहंत कैसे होते हैं ? .. उत्तरः-मुनि जैसे. ... . : .. (३३) प्रश्न:-सिद्ध भगवंत का आकार कैसा है ? — उत्तरः वे निरंजन हैं व अशरीरी होने से निराकार हैं. Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) प्रश्नः निरंजन किसे कहते हैं.? । , उत्तरः जिसको कर्मरूप अंजन याने दृपण नहीं है उसे, (३५) प्रश्रः निराकार मायने क्या ? उत्तरः जिसका आकार नहीं है सो निराकार. (३६) प्रश्नः नमो आयरियाणं का अर्थ क्या ? ___ उत्तरः प्राचार्यजी.को नमस्कार. (३७) प्रश्नः आचार्य किसको कहते हैं ? .. उत्तरः जो शुद्ध प्राचार श्राप पालते हैं व दूसरे . को पलाते हैं उसको. . (३८) प्रश्नः आचार्य में कितने गुण होते हैं ? उत्तरः छत्तीस. . . (३६) प्रश्नः अरिहंत में कितने गुण होते हैं ? उत्तर: वारह. (४०) प्रश्नः आचार्य बडे या अरिहंत पडे ? ' उत्तरः अरिहंत. (४१) प्रश्नः सिद्ध भगवंत में कितने गुण होते हैं ? उत्तर: आठ. (४२) प्रश्नः नवकार मंत्र के चोथे पद,में किसको नमः स्कार करने का कहा है १ . - उत्तरः उपाध्यायजी को. (४३) प्रश्नः उपाध्याय किसको कहते हैं ? उत्तरः शुद्ध सूत्रार्थ आप पढ़ते हैं व दूसरे को पढ़ाते हैं. (४४) प्रश्नः अपनी पाठशाला में कौन उपाध्याय हैं ? · उत्तर कोई नहीं है. (४५) प्रश्नः उपाध्यायजी में कितने गुण होते हैं ? Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७ ) उत्तरः पच्चीस. (४६) प्रश्नः उपाध्याय व आचार्य ये दोनों में बड़े कौन ? उत्तरः आचार्य. (४७) प्रश्न: नवकार मंत्र का पांचवां पद कहिये ? उत्तरः नमो लोए सव्व साहुणं. (४८) प्रश्न: लोए मायने क्या ? उत्तरः लोक में. ( ४६ ) प्रश्न: सन् साहुखं मायने क्या ? उत्तर: सर्व साधुजी को (पांचवां पद का अर्थ देसा है कि लोक में जितने साधु विराजमान हैं उन सबको नमस्कार. ) हैं ? (५०) प्रश्नः साधुजी में कितने गुण उत्तरः सत्ताईस. (५१) प्रश्न: नवकार मंत्र में कितने को नमस्कार करने का कहा है ? उत्तरः पांच को . (५२) मश्न: कौन पांच को ? उत्तरः अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय व साधु. (५३) प्रश्न: ये पांच को क्या कहते हैं ? उत्तरः पंचपरमेष्ठी. (५४) प्रश्न: पंचपरमेष्ठी के कितने गुण होते हैं ? उत्तरः एकसो आठ. (५५) प्रश्न: (पंचपरमेष्ठी में साधुपन कितने पालते हैं ?" अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय नं. उत्तर: चार. साधु. Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - (५६) प्रश्नः सिद्ध भगवंत क्या करते हैं ? उत्तरः अनंत आत्मिक सुख में विराजमान हैं. (५७) प्रश्नः पंचपरमेष्ठी में मनुष्य कितने हैं ? उत्तरः चार (सिद्ध भगवंत के अलावा) . ॥ प्रकरण तीसरा॥ जीव-तत्त्व और अजीव-तत्त्व. (१) प्रश्नः अपने शरीर पर जलता हुवा अंगारा गिर जाय तो क्या होता है ? उत्तर वेदना होती है. (२) प्रश्नः लोग मर जाते हैं पीछे शरीर को ____ क्या करते हैं? उत्तरः आग में जलाते हैं. (३) प्रश्नः उसको वेदना होती है या नहीं ? उत्तरः उसको वेदना नहीं होती है. (४) प्रश्नः क्यों वेदना नहीं होती है.? उत्तम उसमें जीव नहीं है इस वास्ते. (५) प्रश्नः कब तक सुख या दुःख मालुम होता है ? उत्तरः जब तक शरीर में जीव होता है तब तक. (६) प्रश्नः सुख दुःख कौन समज सकता है शरीर या जीव . उत्तरः जीव शरीर नहीं. (७) प्रश्नः तुमने जीव देखा है ? उत्तरः नहीं, जीव देखने में नहीं आता है. Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( है ) (८) प्रश्न: शरीर में जीव किस जगह है ? उत्तरः सारा शरीर में ( सर्वांग में ) व्याप्त है. ( ६ ) प्रश्न: किस मिसाल. उत्तर: जैसे तिल में तेल. (१०) प्रश्न: जीव मरता हैं या नहीं ? उत्तरः जीव कभी मरता नहीं हैं. (११) प्रश्न: जब मरना मायने क्या ? उत्तर: शरीर में से जीव का चला जाना या जीव व काया का एक दूसरे से अलग होना. (१२) प्रश्न: जीव शरीर को छोड के कहां जाता है ? उत्तरः दूसरा शरीर को प्राप्त करता है. (१३) प्रश्नः सत्र जीवों को दूसरे शरीर में उत्पन्न होना पड़ता है ? उत्तरः जो जीव सिद्ध होते हैं वे दूसरे शरीर में उत्पन्न होते नहीं हैं. (१४) प्रश्नः जीव लोक में ज्यादे हैं या अलोक में ? उत्तरः लोक में जीव अनंत हैं अलोक में सिर्फ आकाश ही द्रव्य है वहां जीव नहीं है. (१५) प्रश्न: लोक में ऐसा कोई स्थळ है कि जहां कोई जीव नहीं है ? उत्तरः सुई के अग्रभाग जितनी जगह भी इस लोक में ऐसी नहीं है कि जिसमें जीव न हो. (१६) प्रश्नः जीव का दूसरा नाम क्या ? उत्तरः श्रात्मा. (१७) प्रश्नः हाथी का आत्मा बड़ा है या चींटी का ? Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरः दोनों के आत्मा समान हैं. (१८) प्रश्नः हाथी जब मर के चींटी होता है तब उस्का . आत्मा इतना छोटासा देह में कैसे समा सक्ता है ? उत्तरः जैसे एक रोशनी का प्रकाश सारा मकान में फैल रहता है मगर उस रोशनी के ऊपर वर्तन ढकने से उस्का प्रकाश वर्नन के भीतर ही रह जाता है इसी तरह से जीव शरीर के प्रमाण में व्याप्त हो रहता है. (१६) प्रश्नः जीव अपन को देखने में आता है या नहीं? उत्तरः नहीं वह अंरुपी है. (२०) प्रश्नः तव जिन जिन चीज अपन देख सक्ने हैं वे सब जीव है या अजीव ? उत्तरः सब अजीच ही है. (२१) प्रश्नः जीव व अजीव में क्या भेद है ? उत्तरः जीर चैतन्य लक्षण युक्त याने ज्ञान गुण वाला है व अजीव अचेतन याने जड़ है. (२२) प्रश्नः अपना शरीर जीव या अजीव ? उत्तरः अजीव. (२३) प्रश्नः तब यह अजीव पदार्थ स्वतः हलन चलन आदि क्रिया कैसे कर सका है ? उनरः जब तक उस्में जीव है तब तक जीव की शक्ति से उस्में हलचल देखने में पानी है Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) है मगर जब जीव चला जाता है तवं उस से कुछ होता नहीं. (२४) प्रश्न: किस दो तत्त्व में सर्व पदार्थों का समावेश होता है ? उत्तरः जीव तत्र व अजीव तव में या चेतन व जड़ में. •:0:-- ॥ || प्रकरण चौथा ॥ द्वीप व समुद्र. ( १ ) प्रश्न: द्वीप किसे कहते हैं ? उत्तर: जिस जमीन की चोतरफ जल है उसको द्वीप कहा जाता है. ( २ ) प्रश्न: ऐसे द्वीप कितने हैं ? उत्तरः असंख्याता, उनकी गिनती मनुष्य शक्ति के बाहर हैं. " ( ३ ) प्रश्न: ये सब द्वीप कहां है ? उत्तरः तीर्छा लोक में. ( ४ ) प्रश्न: - द्वीप की आस पास क्या होता है ? उत्तरः समुद्र ( ५ ) प्रश्न: समुद्र कितने हैं ? उत्तरः असंख्याता. ( ६ ) प्रश्न: द्वीप ज्यादे हैं या समुद्र ? उत्तरः दोनों समान. ( ७ ) प्रश्न: इसका क्या कारण ? Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते है (१२) उत्तरः एक द्वीप की चौतरफ एक समुद्र व उसकी चोतरफ एक द्वीप इस तरह से क्रमशः द्वीप समुद्र रहते हैं. . (८) प्रश्नः इन सब के बीच में कौन द्वीप हैं ? . उत्तरः जंबुद्वीप... (९) प्रश्न: अपन कहां रहते हैं ? उत्तरः जंबुद्वीप में. (१०) प्रश्नः जंबुद्वीप की आस पास क्या है ? उत्तरः लवण समुद्र. (११) प्रश्नः लवण समुद्र किस दिशा तरफ है ? उत्तरः चोतरफ है. (१२) प्रश्नः लवण समुद्र मायने कैसा समुद्र ? उत्तरः खारा समुद्र. (१३) प्रश्नः जंबुद्वीप का आकार कैसा है ? उत्तरः गोल रुपया जैसा. (१४) प्रश्नः लवण समुद्र का श्राकार कैसा है ? उत्तरः उसका आकार भी गोल है मगर बीच में जंबुद्वीप पाया है जिससे उसका आकार कंकण जैसा गोल है. . (१५) प्रश्न: जंबुद्वीप कितना वडा है ? ___उत्तरः एक लाख जोजन लंबा चौड़ा है. (१६) प्रश्नः लवण समुद्र कितना बडा हैं ? . उत्तरः दो लाख जोजन का. (१७) प्रश्नः कल्पना से जंधुदीप जितने बडे खंड ल. वण समुद्र में से कितने हो सकते हैं ? Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) : उत्तरः चोवीश. जंबुद्वीप से लवण समुद्र ने चोवीश गुनी जगह रोक दी है. (१८) प्रश्नः इसका क्या कारण ? उत्तरः जंबुद्वीप एक लाख जोजन का है व उसकी दोनों बाजु लवण समुद्र दो दो लाख का है ये सब मिलकर पांच लाख जोजन का व्यास हुवा. अब एक रुपया का जितना व्यास है उससे पांच गुना व्यास का गोल चांदी का पतरा लिया जावे तो उसमें जिस तरह से पच्चीस रुपये बनते हैं उसी तरह से जंबुद्वीप व लवण समुद्र के पांच लाख जोजन के व्यास में से एक लाख जोजन के.व्यास वाले जंबुद्वीप जैसे पच्चीस विभाग होते हैं जिसमें एक भाग में जंबुद्वीप व चोवीश भाग में लवण समुद्र है.* .(१६) प्रश्न: लवण समुद्र की चोतरफ कौन द्वीप है ? उत्तरः धातकी खंड द्वीप. (२०) प्रश्नः धातकी खंड कितना बड़ा है ? उत्तरः उसका पट चार लाख जोजन का है. (२१) प्रश्न: जवुद्वीप.जैसे धातकी खंड में से कितने वि भांग हो सकते हैं ? . शिक्षक को चाहिये कि वह द्रष्टांत-या कोई प्रयोग द्वारा इन सब बातों को समजावे मगर घुकावे नहीं. गोल का क्षेत्रफल की रीत बताने से पढ़े हुवे लड़के जल्दी समज जावेंगे. Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ } ( १४ ) उत्तर: १४४ ( १३४१३=१६६-२५=१४४ ) (२२) प्रश्न: धातकी खंड की चोतरफ क्या है ? उत्तरः कालोदधि समुद्र.. (२३) प्रश्न: कालोदधि समुद्र कितना बड़ा है ? उत्तरः उसका पट आठ लाख जोजन का है. (२४) प्रश्न: जंबुद्वीप जैसे काल्लोदधि समुद्र में से कितने विभाग होते हैं ? - उत्तरः ६७२ ( २६ X २६-८४१ – १६६ = ६७२) (२५) प्रश्न: कालोदधि के चौतरफ क्या ? उत्तर: पुष्कर द्वीप. (२६) प्रश्न: पुष्कर द्वीप कितना बड़ा है ? उत्तरः उसका पट सोलह लाख जोजन का (२७) प्रश्न: पुष्कर द्वीप के बीच में क्या है ? उत्तरः मानुष्योत्तर पर्वत. (२८) प्रश्न: मानुष्योत्तर पर्वत कौनसी दिशा में है ? उत्तर: यह पर्वत भी अढीद्वीप के चोतरफ कंकण का आकार में गढ़ की नाई हैं. (२६) प्रश्न: वह पर्वत मानुष्योत्तर किस वास्ते कहा जाता है ? उत्तरः वह मनुष्य क्षेत्र की मर्यादा करता है जिस वास्ते उसको मनुष्योत्तर पर्वत कहते हैं इसके आगे असंख्यात द्वीप है मगर किसी में मनुष्य नहीं है. (३०) प्रश्न: मनुष्य क्षेत्र में कितने द्वीप व समुद्र हैं उत्तर: हाई द्वीप व दो समुद्र. Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) (३१) प्रश्नः ढाई द्वीप कौनसे ? । उत्तरः जंबुद्वीप १ धातकी खंड २ और अर्ध पुष्कर द्वीप मिलकर ढाई. (३२) प्रश्नः अर्ध पुष्कर द्वीप कितना बड़ा है ? उत्तरः उसका पट आठ लाख जोजन का है. (३३) प्रश्नः जंबुद्वीप जैसे कितने विभाग अर्ध पुष्कर द्वीप में से हो सकते है ? उत्तरः ११८४ (४५४४५=२०२५-८४१=११८४) (३४) प्रश्नः ढाईद्वीप की लंबाई चौडाई कितनी है ? उत्तरः ४५ लाख जोजन की. (३५) प्रश्नः अर्ध पुष्कर द्वीप में मानुष्योत्तर पर्वत की दूसरी वाजु कौन वसते हैं ? उत्तरः तिर्यच. पशु पक्षी वगेरे. (३६) प्रश्नः पुष्कर द्वीप की पेली वाजु लोक में क्या है ? उत्तरः असंख्याता द्वीप समुद्र एक दूसरे की चो तरफ आये हैं. सब उत्तरोत्तर दुगुणा होते गये हैं. अखीरी व सब से वडा स्वयंभुरमण समुद्र है जिसके बीच में सवद्वीप समुद्र है. स्वयंभु रमण समुद्र ने अर्धराज जितनी जगह रोकदी है स्वयंभुरमण समुद्र की चोतरफ वारंह जोजन में घनोदधि, घनवा व तनवा है फिर वहांसे त्रीला लोक का अन्त आता है. तत्पश्चात अलोक है जो अनंत है याने जिसका अन्त नहीं है. Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ प्रकरण पांचवां ॥ साधुजीका प्राचार.. Dooomn :(१) प्रश्नः तीर्थ कितने हैं ? उत्तरः चार साधु, साध्वी, श्रावक व श्राविका. (२) प्रश्नः साधु किसको कहते हैं ? उत्तरः जो पंच महावृत पालते हैं उसको. (३) प्रश्नः महामृत मायने क्या ? उत्तर: बडा वृत. (४) प्रश्नः साधु का पहिला महावृत कौनसा है ? उत्तरः सर्वथा याने सर्व प्रकारे जीव हिंसा नहीं करना. (५) प्रश्नः साधु का दूसरा महावृत कौनसा है ? उत्तरः सर्वथा असत्य नहीं बोलना. . (६) प्रश्नः साधु का तीसरा महावृत क्या है ? उत्तरः बिना दीहुई वस्तु नहीं लेना या छोटीसी भी चोरी नहीं करना. (७) प्रभः साधु का चोथा महावृत क्या है ? उत्तरः सर्वथा मैथुन का त्याग याने ब्रह्मचर्य पा लना. (८) प्रश्नः साधु का पांचवां महावृत क्या है ? उत्तरः धन दौलत आदि किसी ही मकार का परिग्रह नहीं रखना. (6) प्रश्नः इन पांच महावृतों से अलावा छटा कोई महावृत है ? .. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७) - उत्तरः नहीं, छठा महावृत तो नहीं है परन्तु छठा वृतहै. (१०) प्रश्नः साधुजी का छठा वृत कौनसा ? उत्तरः रात्री भोजन त्याग करने का. (११) प्रश्नः साधुओं को रहने का मकान होता है ? ___ उत्तरः नहीं होता है वे. मकान धन आदि सव परिग्रह के त्यागी हैं.. (१२) प्रश्नः साधुजी अपना मकान छोड कर क्यों त्या गी होते हैं ? . उत्तरः धर्म ध्यान कर अपना आत्मा का कल्याण करने के लिये. (१३) प्रश्न: क्या संसार में रहकर अपना आत्मा का कल्याण वे नहीं कर सकते हैं ? उत्तरः संसार में रहने से अपना व अपने कुटुंब का भरण पोपण के लिये कुछ कार्य करना पडता है जिसमें दोप लग जाता है क्योंकि संसार के कार्य ऐसे हैं कि इसमें सब जीवों की दया पालना मुश्किल है व संसार में ऐसे कई झगड़े फंसे हैं कि मनुष्य को परोपकारार्थ या आत्म हितार्थ पूरा वख्त मिलना असंभव है. (१४) प्रश्नः साधु सारा दिन धर्म ध्यान में ही निकालते . . होंगे? उत्तरः खानपान और अन्य शारीरिक कारण के लिये जो वख्त लगे उस्को छोड़कर सारा ही दिन धर्म ध्यान में ही लगाते हैं. Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) (१५) प्रश्नः सारा ही दिन धर्म ध्यान में लगाते हैं तो खाते पीते हैं कहां से ? उत्तरः श्राहार पानी गांव में से लाते हैं. (१६) प्रश्न: आहार पानी के लिये साधु का जाना उस को अपने धर्म में क्या कहते हैं ? उत्तरः गौचरी. (१७) प्रश्न: गौचरी मायने क्या ? उत्तर: जिस तरह से गाय उपर २ से वास खाती व वास को उगने में हरज आती नहीं है उसही तरह से साधु थोड़ा २ आहार वहोत से घरसे लाते हैं व घरधणी को फिर रसोई करने की जरूर पड़ती नहीं है जिस घर में आहार पानी ज्यादा नहीं है वहां से कुछ लिया जाता नहीं है. साधुजी का पोशाक कैसा होता है ? उत्तरः वे धोती के बजाय चलोठा पहनते हैं व चरहते हैं सुख पर मुहपति व हाथ में रजोहरण या गुच्छा रखते हैं पांव में कुछ पहनते नहीं व शिर भी खुल्ला रखते हैं.' ( १ = ) प्रश्नः (१६) प्रश्न: साधु कोट पेन्ट या ऐसे कुछ पहेन शकते हैं ? उत्तरः नहि तीर्थंकर भगवान का फरमान नहीं फरमान कतई उपरोक्त पोशाक पहेरने का है और उनको रजोहरण गुच्छा पातरा यदि अपने पास रही सब चीजों का पडिलेह करना पड़ता है. कोट पेन्ट जैसे Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) कपड़े का पडिलेहण वरावर नहीं हो सकता है जिससे ऐसे कपड़े नहीं रख सकते हैं. (२०) प्रश्नः पडिलेहरण मायने क्या व किस वास्ते करते हैं ? उत्तरः पडिलेहण मायने अच्छी तरह से देखना. अच्छी तरह से देखने से छोटे २ जानवर भी देखने में आते हैं. वस्त्रादिक में देखने से वहां से उठाकर यत्ना से सलामत जगह पर रखे जाते हैं. (२१) प्रश्नः साधुजी दिनमें कितनी दफे पडिलेहण करते हैं ? उत्तर: दो दफे फ़जर में प्रतिक्रमण करने के पीछे शाम को चौथा पहोर की शरुआत में. (२२) प्रश्नः साधुजी व आर्याजी को दिनमें कितनी दफे प्रतिक्रमण करना चाहिये ? उत्तरः दो दफे. (२३) प्रश्नः साधुजी एकही गांव में कितने दिन तक रह सकते हैं ? उत्तरः एक साल में एक गांव में सारा चोमासा. अलावा और अन्य प्रसंग पर साधु ज्यादे से ज्यादे एक मास तक व आर्याजी दो मास तक रह सकते हैं. (२४) प्रश्न: एक गांव में से बिहार करने के पीछे उसी ही गांव में साधुजी या आर्याजी फिर कव सकते हैं ? उत्तरः जितना वक्त साधुजी ठहरे हैं उससे दुगुना Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) वक्त अन्यत्र विहार करके फिर उसी गांव में वे पधार सकते हैं. (२५) प्रश्नः साधु रास्ता में नीचुगे देख २ कर क्यों • चलते हैं ? . उत्तरः जीवजन्तु या वनस्पति आदि पैरके नीचे न आ जाय इस वास्ते. (२६) प्रश्नः अंधेरा में वे किस तरह चलें ? उत्तरः रजोहरण से जमीन की प्रमार्जना करके चले. (२७) प्रश्नः साधुत्व सहित मर कर जीव किस गति में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर: देवगति में या मोक्ष गति में. -::. ||मकरण छट्ठा॥ सचेत अचेत की समझ ॥ (१) प्रश्नः साधु जल कैसा वापरते हैं ? उत्तरः अचेत याने जीव रहित. (२) प्रश्नः कुबा तलाव आदि के पानी कैसे होते हैं ? उत्तरः सचेत गाने जीवसहित. (३) प्रश्रः पानी की एकही बूंद में कितने जीव हैं ? उत्तरः असंख्याता. (४) प्रश्नः असंख्याता मायने क्या ? उत्तरः गिनती में नहीं अावे इतना. (५) प्रश्नः गिनती में आये तो उस्को क्या कहते हैं ? उत्तर: संख्याना. . Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) ( ६ ) प्रश्नः वारस का पानी कैसा होता है ? उत्तरः संचेत. ( ७ ) प्रश्नः उत्तर: सचेत पानी अचेत कैसे होता है ? गरम करने से या अचेत करसके ऐसी चीज भीतर डालने से. ( ८ ) प्रश्न: कौन चीज पारंगी को अचेत कर सकती है? उत्तरः वानी, रज, मनका. केरी आदि मनका, केरी आदि धोने से पानी अचेत हो जाता है. ( 2 ) प्रश्न: साधुजी सचेत पानी को लेंते क्यों नहीं हैं ? उत्तरः पानी के जीवों की दया के लिये. (१०) प्रश्नः पानी के जीव की दया के लिये और क्या करते हैं ? उत्तरः चौमासा में एकही गांव में ठहरते हैं व वाररा में गोचरी के लिये भी जाते नहीं हैं. (११) प्रश्न: साधुजी खुराक कैसा खाते हैं ? उत्तरः श्रचेत. (१२) प्रश्न: रोटी सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत. (१३) प्रश्नः शाक भाजी सचेत है या अचेत ? उत्तरः कधी हरी सचेत होती है व रांधी हुई हरी अचेत हो जाती है. (१४) प्रश्न: पकाने से हरी कैसे अत हो जाती है ? उत्तरः अग्नि के संयोग से सब जीवों मरजाते हैं. (१५) प्रश्नः कच्ची हरी साधुजी खाते हैं ? - Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) उत्तरः नहिं, सचेत होने से नहि खाते. (१६) प्रश्नः कचा नाज खाते हैं ? उत्तरः नहि वह भी सचेत (१७) प्रश्नः सचेत अचेत नाज कैसे मालुम होसकता हैं? उत्तरः बोया जाने से जो नाज उगता हैं वह सचेत व नहि उगता हैं वह अचेत. (१८) प्रश्न: चावल सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत क्योंकि बोने से उगते नहीं हैं. (१६) प्रश्नः जुवारी, बाजरी, गेहूं, मूंग, चना, उड़द, मोठ, मकाई आदि सचेत या अचेत ? उत्तरः सचेत क्योंकि वोने से उगते हैं. (२०) मनः उड़द की दाल (कच्ची ) सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत, क्योंकि किसी ही दाल वोने से उगती नहीं है. (२१) मनः आटा सचेत या अचेत ? उत्तरः अचेत. (२२) प्रश्न: कैसा आटा दाल सचेत या साधु के लिये अकल्पनीय गिना जाता है ? उत्तर: तुरत में बनाई हुई दाल या पीसा हुवा आटा सचेत होने से साधु को अकल्पनीय है. पढ़ानेवाले को यहां बताना चाहिये कि साधु ऐसा नहिं चाहते हैं कि अपने वास्ते कोई रसोई बनादेवे या सचेत वन्तु को अचेत बनाकर रखें, अचेत वस्तु तैयार हो उस वक्त अनायास साधुजी पधारे तो चाहे ले सकते हैं. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२३) (२३) प्रश्नः कच्चा निमक सचेत या अचेत ? उत्तरः सचेत. (२४) प्रश्नः निमक में कैसे जीव हैं ? । उत्तरः पृथ्वी कायके जीवों. (२५) प्रश्नः पृथ्वी कायके जीवों अन्य किस्में हैं ? उत्तरः खडी, खार, मिट्टी, पत्थर, हिंगलु, हरताल गेरु, गोपीचंदन, रत्न, परवाल आदि में. (२६) प्रश्नः जुवार का दाना जितनी पृथ्वीकाय में कि तने जीव हैं ? उत्तरः असंख्याता. (२७) प्रश्नः पानी में कैसा जीव है ? - उत्तरः अपकाय. (२८) प्रश्नः हरी में कैसे जीव हैं ? उत्तरः वनस्पतिकाय. (२६) प्रश्नः वनस्पतिकाय जीवों कहां २ होते हैं ? उत्तरः पेड, पोधा, जड़, धड़, शाखा, प्रतिशाखा फूल, पत्ता वीज आदि हरी में वनस्पतिकाय जीव होते हैं. (३०) प्रश्नः वनस्पतिकाय जीव कितने प्रकार के होतेहैं? . . उत्तरः दो. प्रत्येक व साधारण, (३१) प्रश्नः प्रत्येक वनस्पति किसको कहते हैं ? उत्तरः प्रत्येक शरीर में एक २ जीव होते हैं सो प्रत्येक वनस्पतिकाय, . (३२) प्रश्नः साधारण वनस्पतिकाय किसको कहते हैं ? -. : उत्तरः प्रत्येक शरीर में अनंता जीव होते हैं उस : को साधारण वनस्पतिकाय कहते हैं. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) (३३) प्रश्न: वनस्पति में कितने जीव होते हैं ? उत्तरः कुणी में अनंता, कच्ची में श्रसंख्याता व पकी में संख्याता जीव होते हैं. (३४) प्रश्नः साधु श्रमं ले सकते हैं ? उत्तरः साराही आम साधु को अकल्पनीय है क्योंकि इसमें गुठली है जो सजीव है. (३५) मश्नः साधु आम का रस लेसकते हैं ? उत्तरः हां. ( ३६ ) प्रश्न: सांधुनी घी कैसा ले सकते हैं गरम या जमा हुवा ? उत्तरः दोनों (गरम या जमा हुवा ) लेमकते हैं. (३७) मश्नः साधुजी तेल लेसकते हैं ? उत्तरः हां तेल अचेत हैं. (३८) प्रश्नः साधुजी दूध, दही व बाद ले सकते हैं ? उत्तरः हां वह भी अचेत ही हैं. (३६) मश्नः साधुजी खारा ले सकते हैं ? उत्तरः नहीं खारा सचेत हैं. (४०) प्रश्नः साधु को सक्कर, खांड, गुड कल्पनीय है ? उत्तरः हां ये सब चीजें अचेत हैं. ( ४१ ) प्रश्न: अचेत वस्तु भी साथ हमेशा ले सकते हैं ? यदि नहि ले सकते हैं तो कब ? उत्तरः श्रता आहार पानी अचेत हाने पर भी साधुजी नहि लेते हैं, (४२) प्रश्न: सुता मायने क्या ? उत्तरः अचेत वस्तु की साथ सचेत वस्तु लगी हो या आहार पानी देते वक्त सचेत वस्तु का Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) स्पर्श होजाय तो अचेत वस्तु भी साधु की लेना अकल्पनीय है. (४३) प्रश्नः साधुजी को थाहार पानी देते वक्त किस किस वस्तु को छूना नहि चाहिए ? उत्तर: जिन जिन वस्तुओं में पृथ्वीकाय अपकाय और वनस्पतिकाय के जीव हैं उनको और अग्नि को छूना नहिं चाहिए और फूंक मारके कोई चीज देना नहिं चाहिए. (४४) प्रश्न: किसवास्ते अग्नि को नहिं छूना चाहिए ? उत्तर: इस के छोटे से चिनगारे में भगवंत ने असंख्यात जीव कहे हैं. (४५) प्रश्न: उन जीवों को क्या कहते हैं ? उत्तरः अग्निकाय या ते काय. (४६) प्रश्नः साधुजी को आहार पानी देने के वक्त फूँक क्यों नहि मारना 2. उत्तरः फूंकने से वायु के जीव मरजाते हैं. (४७) प्रश्नः वायरे के जीव को क्या कहते हैं ? उत्तरः वाउकाय. (४८) प्रश्न: वायरे के जीव किससे मरते हैं ? • उत्तरः खुला मुंह से बोलने से, झटकने से, चलाने से आदि अनेक क्रियाओं से. · झुला ( ४६ ) प्रश्न: एक दफे खुला मुंह से बोलने से कितने - 'बाउकाय जीव मर जाते हैं ? A Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) उत्तरः असंख्यातः ... (५०) प्रश्नः पृथ्वीकाप, अपकाय, तेउकाय, वाउकाय, और वनस्पतिकाय इन का अर्थ क्या ? उत्तरः पृथ्वीकाय मायने पृथ्वी के जीवों, अप काय. मायने पाणी के जीवों, तेउकाय मायने अग्नि के जीवों, वाउकाय मायने वायु के जीवों और वनस्पतिकाय मायने वनस्पति के जीवों * - - * यहां शिक्षकको चाहिए कि विद्यार्थियों को पुरेपुरा समजावे कि पृथ्वी, पानी, अग्नि, पवन, व वनस्पति में जीव हैं यह कुछ गम नहिं है क्योंकि हरेक में वढने घटने की शक्ति है जो अपन प्रत्यक्ष प्रमाण से देखते हैं. इन सत्र में जीव हैं ऐसा अंग्रेज लोगों ने कई प्रयोग द्वारा अनुभव कर सावित किया है. थोड़े समय पहले एक बंगाली शोधक ने सिद्ध कर बताया है कि धातु भी सचेत है. इस तरह से वीतराग याने पक्षपातं रहितं प्रभु की वाणी अपन को सिर्फ अंधश्रद्धा से ही मानलेने की नहि है मगर सत्य होने से ही मानते हैं ऐसा समझाकर श्रद्धा दृढ कराना, अन्य धर्म की भी मिसालें देना जैसे ब्राह्मण लोग मानते हैं कि जल में स्थल में सर्व में विष्णु है, विष्-व्यापना इस पर से विष्णु शब्द हुदा है अर्थात् सब जगह जीव व्याप्त है. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i २७ ) || प्रकरण सातवां ॥ त्रस व स्थावर जीवों • ( १ ) प्रश्नः पृथ्वी, के, पानी के, अग्नि के, वायु के, और वनस्पति के ये पांच प्रकार के जीवों स्वयं हलचल सकते हैं ? उत्तर: वें स्वयं हलचल नहीं सकते हैं. ( २ ) प्रश्न: जो २ जीव स्वयं हलचल नहीं सकते उनको क्या कहते हैं ? उत्तर: स्थावर. ( ३ ) प्रश्न: जो २ जीव स्वयं हलचल कर सकते हैं उन्हें क्या कहते हैं ? उत्तरः त्रस. ( ४ ) प्रश्नः तुम कैसे हो त्रस या स्थावर ? उत्तरः त्रस. ( ५ ) प्रश्न: हाथी, घोड़ा ऊंट, गाय भैंस आदि जीव स हैं या स्थावर ? उत्तर:. स. (६) प्रश्न: मक्खी मकोड़ा यदि त्रस या स्थावर ! उत्तरः न्रस. (७) प्रश्नः नीम का वृक्ष त्रस या स्थावर -? उत्तर: स्थावर. : ( ८ ) प्रश्नः पानी के जीव त्रस या स्थावर १ 'उत्तर: स्थावर. ( 8 ) प्रश्न: आलमारी त्रस या स्थावर १. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) उत्तरः आलमारी में जीव नहीं हैं इस वास्ते उसको __ त्रस या स्थावर नहिं कह सकते. (१०) प्रश्नः निमक के जीव त्रस हैं या स्थावर । उत्तरः. स्थावर. . .. . (११). प्रश्नः पारा त्रस या स्थावर ? उत्तरः त्रसं. (१२) प्रश्नः घड़ीयाल त्रस या स्थावर ? . उत्तरः उसमें जीत्र नहीं है. (१३) प्रश्नः जीव के मुख्य भेद कितने हैं ? उत्तरः दो; त्रस व स्थावर. (१४) प्रश्नः स्थावर के कितने भेद ? ' उत्तरः पांच पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति. (१५) प्रश्नः कुल कितनी काय के जीव हैं ? उत्तरः छकाय के जीव हैं. पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वाउकाय, वनस्पतिकाय, व त्रस काय. (१६) प्रश्नः छकाय जीवों के जाति आश्रयी कितने भेद है? उत्तरः पांच. एकेंद्रिय, वैईद्रिय, तेइन्द्रिय, चरि न्द्रिय व पंचेंद्रिय. (१७) प्रश्नः गति श्राश्रयी जीव के कितने प्रकार हैं ? उत्तरः चार. नारकी, तिर्यंच, मनुष्य और देवता. इस तरह से जीव की गति चार है. .. (१८) प्रश्नः सब जीवों के विस्तार से कितने भेद हैं ?. उत्तरः ५६३ (पांचसो त्रेसठ) Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( २६) (१६) प्रश्नः ५६३ भेद में हरेक गति के कितने कितने भेद है ? उत्तरः नारकी के १४, तिर्यंच के ४८, मनुष्य के ३०३ और देवता के १६८ सब मिलकर ५६३ हुए. । प्रकरण अाठवां ॥ महावीर शासन. (१) प्रश्न: अपन कौनसा धर्म पालते हैं ? उत्तरः जैनधर्म. (२) प्रश्न: "जैनधर्म" ऐसा नाम फिस तरह से हुवा ? उत्तरः जिन परमात्मा ने प्ररूपित किया जिससे जैनधर्म ऐसा नाम हुवा. (३) प्रश्नः जिन मायने क्या ? उत्तरः राग द्वेष को जीतने वाले. (४) प्रश्नः जिन के और नाम क्या हैं ? उत्तरः तीर्थकर, अरिहंत, व वीतराग. (५) प्रश्नः अपन किस तीर्थंकर के शासन में हैं ? उत्तरः चोवीशयां तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु के शासन में. (६) प्रश्नः महावीर प्रभु के मातुश्री का नाम क्या है ? उत्तरः त्रिशला देवी.. (७) प्रश्नः श्री महावीर प्रभु के.पिता का नाम क्या? उत्तरः सिद्धार्थ राजा. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) (८) प्रश, आपकी जाति क्या थी?. उत्तरः क्षत्रिय. (६) प्रश्नः सिद्धार्थ राजा की राजधानी किस शहर में थी. उत्तरः क्षत्रिय कुंडनगर में. . (१०) प्रश्नः सिद्धार्थ राजा के कुंवर कितने थे ? उत्तरः दो. (११) प्रश्नः उनका नाम क्या ? उत्तरः वडे का नाम नंदीवर्धन व छोटे का नाम श्री वर्धमान या महावीर.. (१२) प्रश्नः महावीर स्वामी के शरीर का वर्ण कैसाथा ? उत्तरः सुवर्ण जैसा. (१३) प्रश्नः श्री महावीर स्वामी का देहमान कितनाथा? उत्तरः सात हाथ. (१४) प्रश्नः देहमान मायने क्या ? उत्तरः शरीर का माप या उंचापन. . (१५) प्रश्नः श्रीमहावीर स्वामी काआयुष्य कितना था? ___ उत्ताः बहुतेर वर्ष का. (१६) प्रश्नः आपने कितने वर्ष की उम्र में दीक्षा ली ? उत्तरः त्रीस वर्ष की वय में, . (१७) प्रश्नः दीक्षा लिये पीछे धर्म की प्ररुपना कव की? उत्तरः साडा वारह वर्ष और एकपक्ष पीछे केवल ज्ञान प्राप्त हुवा तव. . . (१३) प्रश्नः केवल ज्ञान मायने क्या ? . . . . . उत्तरः संपूर्ण ज्ञान. Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३१ ) (१९) प्रश्न: केवलज्ञानं प्राप्त होने से श्रीभगवंत ने क्या क्रिया १ उत्तरः केवलज्ञान से लोक में अनेक प्रकार के त्रस व स्थावर जीवों को दुःखी देखकर उनको दुःख में से मुक्त करने के लिये मोक्ष मार्ग बताया व अनेक जीवों को संसार सागर से पार उतारे - अनंत जीवों की दया का पालक साधुवर्ग स्थापित किया, दाना.दिक उत्तम गुणों से अलंकृत श्रावक वर्ग भी बनाया और अपूर्वज्ञान भंडार गणधर देव को दिया जिन्होंने शास्त्र बनाये. अखीर में त्रीश वर्ष की केवल प्रवर्ज्या पालने के पीछे शाश्वत सिद्ध गति को प्राप्त हुए. (२०) प्रश्नः श्रीमहावीर भगवंत ने धर्म की प्ररुपना की उससे पहले जगत में जैनधर्म था या नहि १ उत्तर: जैनधर्म अनादि व शाश्वत है इस जगत् में कमसेकम बीश तीर्थंकर, दो क्रोड़ केवळी और दो हजार क्रोड़ साधु साध्वियों महा विदेह क्षेत्र में हर हमेश विद्यमान रहते हैं अपना भारतवर्ष में भी श्रीमहावीर प्रभु के पहले अनंत तीर्थकर होगये हैं इस तरह पंद्रह कर्म भूमि में अनंत तीर्थंकर होगये - हैं इन सब तीर्थंकर जैन धर्म का पुनरुद्धार करते थे. f · Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२ ) || प्रकरण नव्वji || पुण्य तत्त्व व पाप तत्त्व, ( १ ) प्रश्नः सब जीव समान हैं ताहम भी कई भूखे मर ते हैं व अपन को खाने का, पीने का, रह ने का आदि सब सुख मिला है उसका क्या सवव ? उत्तर: अपनं ने पूर्व भव में शुभ कमाई की होगी उसका अच्छा फल आज अपन भोगते हैं व रंक या दुःखी जीवों ने अशुभ कमाई की होगी उसका अशुभ फल वे भोग रहे हैं. (२) प्रश्नः शुभ कमाणी मायने क्या ? उत्तरः पुण्य. (३) प्रश्न: अशुभ कमाणी मायने क्या ? उत्तरः पापः ( ४ ) प्रश्नः शुभ कमाणी या पुराय कैसे होते हैं ? उत्तरः अन्य जीवों को शाता करने से और अच्छा विचार करने से. ( ५ ) प्रश्न: जीव पाप कैसे करते हैं ? उत्तरः अपनी व अन्य की आत्मा को क्लेप उप जाने से, अनीति से चलने से और असत्य विचार करने से. + Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है (६) प्रश्नः पुण्य के फल कैसे होते हैं ? उत्तरः मोठे, जीव को प्रियकारी. (७) प्रश्नः पाप के फल कैसे होते हैं ? ___ उत्तरः कड़वे, जीवको कष्टकारी. (८) प्रश्नः जो राजा होवे क्या वह रंक भी हो जाता है ? ... उत्तरः हां। उसके पाप कर्म के उदय से वह रंक भी हो जाता है. . (६) प्रश्नः तव रंक क्या राजा होजाता है ? उत्तरः हां। पुण्य के उदय होने से रंक भी राजा हो जाता है. (१०) प्रश्नः पुण्य पापका उदय होना किसको कहते हैं ? उत्तरः किये हुये पुण्य व पापका जब अपन को नतीजा मिलता है याने उसके अच्छे बुरे फल जब अपन भोगते हैं तब उसका उदय हुवा ऐसा कहा जाता है. (जैसे वृक्ष योग्य समय पर ही फल देते हैं वैसे ही अच्छ चुरे कर्म भी. योग्य समय पर ही उदय होते हैं.-फलदाता होते हैं :). (११) प्रश्नः आज अपन जो पुण्य या पाप करें वह कर उदय होवे ? .. . . उत्तरः कई कर्म ऐसे होते हैं कि जो आज के किये हुये आज ही फल देते हैं, और कई कर्म Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) ऐसे होते हैं कि जो संख्याता, असंख्या ता** और अनंता *** काल पर्यंत भी फल प्रदाता होते हैं. (१२) प्रश्नः क्या पाप करने वाले जीवों को पुण्य का उदय होता है ?... उत्तरः हां। कितनेक पापी जीच सुखी नजर आते हैं सो उनके पूर्व पुण्य के उदय से ही सम झना. (१३) प्रश्नः पुण्य करने वालों को पाप का उदय होता है ? उत्तरः हां। कितनेक पुण्य करने वाले जीव दुःखी होते नजर आते हैं उसका कारण उनका पूर्व पाप का उदय ही है.. (१४) प्रश्नः पुण्य पाप का समावेश जीवतत्व में होता है या अजीव तत्व में ? उत्तर: अजीव तत्व में क्योंकि मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय व जोग से जीव शुभाशुभ कर्म के पुद्गल गृहण करते हैं जिसमें शुभ कर्म पुद्गल को पुण्य व अगुभ कर्म पुद्गल को पाप कहते हैं. * संख्याता मायने जिसकी गिनती होसके जैसे २-४. ५०-१००-१००० आदि. ** असंख्याता मायने जिसके लिये कोई संख्या ही न कही जाय. *** अनंताम:यने असंख्याता से भी ज्यादे जिसका अंत ही नहीं हो. . Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) (१५) प्रश्नः पुण्य, पापके पुद्गल रूपी हैं या श्ररूपी ? उत्तरः रूपी हैं. मगर उनको अपन देख नहीं सक्ने. (१६) प्रश्न : पुण्य पाप अथवा शुभाशुभ कर्म पुद्गल को कौन जान व देख सक्ते हैं ? उत्तरः केवलज्ञानी केवली भगवान. (१७) प्रश्नः पुण्य के उदयं से जीव कौन २ सी गति में जाते हैं ? उत्तर: देवगति में या मनुष्यगति में. (१८) प्रश्न: मनुष्यगति में कई जीव नीच गोत्र में उप जते हैं वह किससे ? उत्तरः पाप के उदय से. (१६) प्रश्न: जीव तिर्यंच गति में किससे उपजते हैं ? उत्तरः पाप के उदय से. (२०) प्रश्नः तिर्यच गति में भी कई जीव शातावेदनीय व दीर्घायुष्य पाते हैं वह किस कारण से पाते हैं ? उत्तरः पुण्य के उदय से. (२१) प्रश्नः जीव नर्कगति किस कारण से पाते हैं ? उत्तरः पाप के उदय से. " (२२) प्रश्नः नर्क के अनन्त दुःख भोगते हुवे जीवों के पास “शुभ कर्म पुद्गल" याने पुण्य है या नहीं ? Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (. ३६) उत्तरः है चारों गति के जीवों के पास पुण्य व • पाप दोनों होते हैं. . . . (२३) प्रश्नः पुण्य व पाप अर्थात् 'शुभाशुभ कर्म से मुक्त हुये हुवे जीव कौनसी गति पाते हैं ? उत्तरः सिद्धगति. . (२४) प्रश्नः सिद्धगति याने. मोक्ष साधने में पुण्य की जरूरत है क्या? .. उत्तरः हां। पुण्य के उदय बिना मनुष्य भव आर्यक्षेत्र, उत्तम कूल, आदि का संयोग नहीं मिलता है और ऐसे संयोग मिले · · विना कभी भी मोक्ष साधन नहीं होसक्का. (२५) प्रश्नः सिद्धगति पाने के बाद क्या पुण्य की जरुरत है ? .. '. उत्तरः नहीं जैसे समुद्र में से किनारे पर पहुंचने के लिये नाव की जरुरत है लेकिन किनारे पर पहुंच जाने के बाद नाव की जरुरत नहीं है वैसे ही संसार समुद्र में से मोक्ष रूप किनारे पर पहुंचने के लिये पुण्य के , सहारे की जरुरत है मगर मोक्ष में पहुंचने के बाद पुण्य की जरुरत नहीं और जहां तक अपन नाव में बैठे रहें वहां तक कि नारा प्राप्त नहीं होता है वैसे ही जहां तक पुण्य है वहां तक मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं • होती है पुण्य व पांप दोनों का क्षय होने .. से ही मोक्ष प्राप्त होता है...' Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७ ) प्रकरण दशवां. भक्ष्याभक्ष्य का विचार । ( १ ) प्रश्न: जिस वस्तु के खाने से अधिक पाप लगे उस वस्तु को क्या कहते हैं ? उत्तर: अभक्ष्य. ( २ ) प्रश्न: अभय का अर्थ क्या होता है ? उत्तर : नहीं खाने योग्य ( अ = नहीं, + भक्ष् - खाना + 4 = योग्यता बताने वाला प्रत्यय ) ( ३ ) प्रश्न: कौन २ सी वस्तु भन्य ? उत्तर: मांस, मदिरा, कंदमूल, मधु और वासी मक्खन आदि. ( ४ ) प्रश्न: मांस खाने वाले को क्या नुकसान होता है ? उचरः प्राणी हिंसा का महान् पाप लगता है, शरीर को हानि पहुंचती है, बुद्धि भ्रष्ट होती है. अच्छे विचार नष्ट होजाते हैं और अनुक पा (दया) का अभाव होजाता है इस कारण से मांस खाने वाले मरकर प्रायः नर्क में ही जाते हैं. ( ५ ) : प्रश्न: मदिरा पान करने वालों को क्या हानि पहुंचती है ? उत्तर: यदिरा बनाने में अगणित त्रस जीवों की हिंसा होती है, मदिरा, जीवों का ही सत्य है, . मदिरा पान करने से अनेक रोगों की उत्पत्ति Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३८ ) होती हैं, वुद्धि क्षीण होती है, और मरकर दुर्गति में उत्पन्न होना पड़ता है. इस संसार : में भी मदिरा पान करने वाले निंदनीय गिने जाते हैं और उनके वचनों पर किसी को विश्वास नहीं होता हैं. ( ६ ) प्रश्न: कंदमूल खाने से क्या हानि होती है ? उत्तरः कंदभूल के एक छोटे से टुकड़े में अनन्त एकेन्द्रिय स्थावर जीव हैं उनकी हिंसा होती हैं और कंदमूल खाने से प्रायः तमोगुण ( तामसी स्वभाव ) उत्पन्न होत हैं. (७) प्रश्न: कंदमूल किसे कहते हैं ? उत्तरः वनस्पति का जो भाग जमीन के अन्दर ही उत्पन्न होकर वृद्धि को प्राप्त हो व जमीन के भीतर ही उसकी गांठ या कंद बने उसको कंद व पेड़ की जड़ को मूल कहते हैं. ( = ) प्रश्न: उदाहरणार्थ २-४ कंदमूल के नाम बतलावो? उत्तरः लहसन, प्याज, श्रादा, मूली, गरमर, गाजर सुरण, आलू. चेक आदि. ( 2 ) प्रश्न: मधु (शहत) खाने से किस तरह से पाप होता है? उत्तर: मंधु में हर हमेश दो इन्द्रिय जीव रहते हैं. और मधु पुडा में रहे हुवे कई जीव व अंडा का सत्व मधु में आजाता है. अलावा बहुत ही महनत से तैयार किया हुवा घर वं संग्रह कर रखा हुत्रा खुराक मक्खियों से लूट कर लेना यह बड़ा अनर्थ है. मधु Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) खाने वाले के लिये यह पाप किया जाता है जिससे वे भी पाप में भागी बनते हैं. (१०) प्रश्नः मक्खन खाने से किस तरह से पाप होता है ? उत्तरः छाछ में से मक्खन निकलने के बाद दो घड़ी में उसमें दो इन्द्रिय जीवों उत्पन्न हो जाते हैं. यह मक्खन तव अभक्ष्य याने खाने के लिये अयोग्य होजाता है. ताजा मक्खन खाने में तो कोई हरज नहीं है मगर दो घड़ी के वाद मक्खन खाने से उसमें उत्पन्न हुये हुवे दो इन्द्रिय जीव मर जाते हैं जिससे खाने वाले को पाप लगता है. (११) प्रश्नः श्रावकों को कैसी चीजें खानी चाहिये ? उत्तरः जहांतक वने वहांतक धान्य, कठोळ, दूध, दही, घी, तेल, साकर, खांड, गोल, अच्छे और ताजेफल आदि खाना. हरी जहांतक बने कम खाना व अभक्ष्य चीजों से तो वि. लकुल अलग रहना. (१२) प्रश्नः आटा कैसा वापरना ? उत्तरः ताजा याने थोड़ाअरसा का, क्योंकि कुछ ही दिन पीछे आटा में जानवर उत्पन्न होजाते हैं जिससे हिंसा का पाप लगता है अलावा . . खाने वाले की भी तन्दुरस्ती विगड़ जाती है. .. (१३) प्रश्नः कैसा आटा विलकुल ही उपयोग में नहीं लेना? Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तरः विदेशी पडसुदी व मील में बना हुवा रवा. क्योंकि उसमें असंख्य जीवों उत्पन्न हो जाते हैं अलावा कम दाम का गेहूं में से वह आटा बनता है और उसमें कंकर भी . बहुत होते हैं जिससे खाने वालों को भी कई जात के पेट के दर्द होजाते हैं. (१४) प्रश्नः पानी कैसा पीना? . उत्तरः छाना हुवा ओर जहांतक बने गरम पानी पीना. गरम पानी पीने से शरीर को फायदा पहुंचता है और कई तरह के दर्द जैसा कि कोलेरा, मरकी, वाला आदि का भय कम रहता है. अपने जैन मुनियों के शरीर लूखा आहार करने पर भी निरोगी रहते हैं इसका मुख्य कारण . . यह ही है कि वे गरम पानी पीते हैं व मूर्यास्त पहिले २ जीम लते हैं. गरम पानी की तारीफ हिंदू वैद्यक और अंग्रेजों के वैद्यक में भी बहुत की है. हर हमेश गरम पानी पीना जिसके लिये नहीं बन सका इसको भी बीमारी के वक्त गरम पानी पीना अति आवश्यक है। गरम पानी के पीने से इन्द्रिय निग्रह भी होता है. (१५) मनः किस वख्त आहारादि लेना नहीं चाहिये ? उत्तरः मूर्यास्त पीछे.याने रात्री में कुछ खाना ___... पीना नहीं चाहिये, . . Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) (१६) प्रश्नः रात्री भोजन से किस तरह से नुकसान होता है ? उत्तरः रात्री में खाने से अज्ञानपणे बहुत ही सूक्ष्म जानवरों खुराक में आजाते हैं व उस से शरीर और बुद्धि विगड़ती है इसवास्ते अपने शास्त्र में और हिन्दू शास्त्र में भी रात्री भोजन त्याग करना कहा है. (१७) प्रश्नः रात्री भोजन का सोगन करने से क्या लाभ होता है ? उत्तरः सूर्यस्त से सूर्योदय तक चार आहार का त्याग करने से आधा उपवास का फल प्राप्त होता है. (१८) प्रश्नः चार आहार के नाम बतायो ? उत्तरः अन्न, पाणी, सुखडी और मेवा. व मुख वास ( पान, सुपारी आदि). (१६) प्रश्नः अन्न के लिये शास्त्र में कोन शब्द कहा है ? उत्तरः असणं. (२०) प्रश्नः पानी के लिये ? उत्तरः पाणं. . . (२१) प्रश्नः सुखडी के लिये ? . . . . . , . . उत्तरः खाइमं. . (२२) प्रश्नः मुखवास के लिये ....... .. उत्तरः साईमं ... ... .. .. : .. (२३) प्रश्नः चार आहार के.पच्चखाण में क्या कहना . चाहिये?. Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) उत्तरः चड़विहंपि आहारं पच्चखामि । असणं, पाणं, खाइमं साइमं, अन्नथारणा भोगणं, सहस्सा गारेणं अप्पारणं वोसिरामि" इस. मुजब कहना. (२४) प्रश्नः च विहार का पच्चखाण पारती वक्त. क्या कहना ? उत्तर: " चउविहं पिचाहारं पच्चखाण फासियं पालियं सोहियं तिरियं किंत्तियं श्राराहियं आणाए पालियं नभवई तस्स मिच्छा मि दुक्कडं " इस मुजब कहना पच्चखाण पारने के पहले कुछ खाना पीना नहीं चाहिये. प्रकरण ११ वीं । मनुष्य के भेद || ( १ ) प्रश्नः मनुष्य के मुख्य भेद कितने हैं व क्या २१ उत्तरः चार. कर्म भूमि के मनुष्य १. अकर्म भूमि के मनुष्य २. अंतरद्वीपा के मनुष्य ३ व समुच्मि मनुष्य ४. (२) प्रश्न: कर्मभूमि किसको कहते हैं ? ... उत्तरः जिस भूमि के मनुष्यों की थाजीविका असि, मसि व कृषि ये तीन प्रकार के व्यापार से चलती हैं उसीही भूमि को कर्म भूमि कहते हैं.. ( ३ ) प्रश्न: असि का व्यापार मायने क्या ? Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४३ ) उत्तर: तलवार आदि हथियारों का उपयोग करना सो. ( ४ ) प्रश्न: मसि का व्यापार किसको कहते हैं ? उत्तरः लिखने का व्यापार को मसिका व्यापार कहते हैं. ( ५ ) प्रश्न: कृषि व्यापार मायने क्या ? उत्तरः खेती का उद्योग. ( ६ ) प्रश्न: इन तीनों प्रकार के व्यापार यहां है ? उत्तरः हां. (७) प्रश्न: इस भूमि को क्या कहते हैं ? उत्तरः कर्म भूमि. (८) प्रश्न: कर्म भूमि के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः पंद्रह. ( 8 ) प्रश्नः ये पंद्रह में से किस क्षेत्र में अपन रहते हैं ? उत्तर : भरत क्षेत्र में. (१०) प्रश्न: भरत क्षेत्र कितने हैं ? उत्तर: पांच. (११) प्रश्न: पांच में से जंबुद्वीप में कितने भरत हैं ? उत्तरः एक. (१२) प्रश्नः वाकी के चार भरतक्षेत्र कौन द्वीप में हैं ? उत्तरः २ धातकी खंड में व २ अर्ध पुष्कर द्वीप में. (१३) प्रश्न: अपन वहां जासक्ते हैं या नहीं ? उत्तरः देवता की सहायता विना अपन वहां नहीं जासके. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) . .. . (१४) प्रश्नः देवता की सहायता विना कोई वहां जा सका है या नहीं? . . उत्तरः विद्या के बल से कई साधु वहां जासकते हैं. (१५) प्रश्नः ऐसे साधुओं हाल किस क्षेत्र में हैं ? उत्तरः पंच महा विदेह क्षेत्र में. (१६) प्रश्नः पांच महा विदेह में पुर्वोक्त तीन प्रकार के. व्यापार है ? उत्तर: हां. . (१७) प्रश्नः पांच महा विदेह में से जबुद्वीप में कितने हैं? उत्तरः एक. (१८) प्रश्नः वाकी के चार महा विदेह कोन द्वीप में है ? उत्तरः दो धातकी खंड में व दो अर्ध पुष्कर द्वीप में. (१६) प्रश्नः भरत व महा विदेह के अलावा बाकी के पांच क्षेत्रों का नाम क्या हैं ? उत्तर. इरवृत. . (२०) प्रश्नः पांच इरबन क्षेत्रों कोन २ द्वीप में है ? उत्तरः एक जंबुद्वीप में, दो धातकी खंड में दो अर्थ पुष्कर द्वीप में. (२१) प्रश्नः कर्म भूमि के १५. क्षेत्र के नाम बतलायो ? उत्तरः पांच भरत, पांच इरवृत्त व पांच महाविदेह. (२२) प्रश्नः कर्मभूमि के पंद्रह ही क्षत्रों एक सरीखे हैं .. .. या छोटे बड़े? . . उत्तरः एकही द्वीप में भरत व इस्तृत क्षेत्रों विस्तार - ". में और आकार में एक सरीखे हैं. उसीही · द्वीप में उनसे महा विदेहं क्षेत्र बड़े हैं. जंयु Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) द्वीप के क्षेत्रों से धातकी खंड के क्षेत्रों विस्तार में पड़े हैं व उनसे अर्ध पुष्कर द्वीप के क्षेत्रों बड़े हैं मगर धातकी खंड के दोनों महा विदेह क्षेत्रों एक सरीखे हैं व अर्ध पुष्कर द्वीप में भी इस तरह से है. (२३) प्रश्नः जंबुद्वीप में भरत इरवृत्त व महा विदेह क्षेत्रों कहां कहां हैं? उत्तरः जंबुद्वीप में दक्षिण तरफ भरत, उत्तर तरफ इरवृत्त व मध्य में महा विदेह है (इसही तरह से धातको खंड में व अर्ध पुष्करद्वीप में भी उत्तर तरफ इरवृत, दक्षिण तरफ भरत व मध्य में महा विदेह है. (२४) प्रश्नः अकर्म भूमि किसको कहते हैं ? उत्तरः जिस भूमि के मनुष्यों असि मसि व कृषि के व्यापार विना सिर्फ दश प्रकार के कल्पवृक्ष से अपना जीवन चलाते हैं उनको अकर्म भूमि के मनुष्य कहते हैं. (२५) प्रश्नः कल्पवृक्ष मायने क्या ? उत्तरः मनोवांछित वस्तु देने वाले वृक्षों. (२६) प्रश्नः अकर्म भूमि के क्षेत्र कितने हैं ? उत्तरः त्रीश. . (२७) प्रश्नः त्रीश अकर्म भूमि के क्षेत्रों के नाम कहो. उत्तरः ५ हेमवय. ५ हिरण्यवय. ५ हरिवास. ५ . . . . ... रम्यकवास. ५ देवकुरु, व ५ उत्तरकुरु. (२८) प्रश्नः जम्बुद्वीप में अकर्म भूमि के क्षेत्र कितने हैं ? Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) उत्तर: है ( १ हेमवय, १ हिरण्यवय, १ हरिवास, १ रम्यकवास, १ देवकुरु, १ उत्तरकुरु) . (२) प्रश्न: धातकी खंड में कर्म भूमि के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तर: वार ( २ हेमवय २ हिरण्यवय २ हरिवांस २ रम्यकवास २ देवकुरु २ उत्तरकुरु ) . (३०) प्रश्न: अर्द्ध पुष्कर द्वीप में अकर्म भूमि के कितने क्षेत्र हैं ? " उत्तरः वार ( २ हेमवय २ हिरण्यवय २ हरिवास २ रम्यकवास २ देवकुरु २ उत्तरकुरु) . (३१) प्रश्न: अकर्म भूमि के मनुष्य कैसे होते हैं ? उत्तर : जुगलिया. (३२) प्रश्न: किस वास्ते उनको जुगलिया कहते हैं ? उत्तरः वहां के स्त्री और पुरुष दोनों साथ जन्म पाते हैं जिससे उनको जुगल अर्थात् जुगलियां कहते हैं. ( ३३ ) प्रश्न: प्रत्येक जुगलिणी - जुगल की स्त्री कितने जुगलिया को जन्म देती है ? उत्तरः जुगल की स्त्री मरने के तीन मास पेश्तर सिर्फ एकवार एक जुगल को जन्म देती हैं. (३४) प्रश्न: यह जुगन्त पुत्रों का या पुत्रि का किस का होता है ? उत्तर: एक पुत्र व एक पुत्री का होता है. (३५) प्रश्न: जुगल की स्त्री अपने पुत्र व पुत्री की प्रति पालना कितने दिन तक करती है ? उत्तरः देवकुरु उत्तर कुरु में ४६ दिवस, हरिवास रम्यकवास में ६४ दिवस व डेमवय हिर Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 ( ४७ ) रायवय में ७६ दिवस तक जुगलिणी अपने बच्चे की प्रतिपालना करती है तत्पश्चात् मरजाती है. ( ३६ ) प्रश्न: इतने छोटे बच्चे के मावाप मर जाते हैं तो उनका क्या हाल होता होगा ? उत्तरः वे बच्चे इतने दिन में अपने मावाप जैसे बड़े जुगलिया होजाते हैं व भाई बहन स्त्री पुरुष होकर रहते हैं और कल्प वृक्ष से मनोवांछित सुख भोगते हैं । (३७) प्रश्न: इनमें भाई बहन स्त्री पुरुष होजाते हैं ऐसा अयोग्य रिवाज कैसे चला ? उत्तरः यह रिवाज जुगलिया में अनादि काल से चला थरहा है, उनका अंतःकरण निर्मळ व पवित्र होता हैं, जुगल पति अपनी स्त्री से व जुगल स्त्री अपना पति से ही संतुष्ट रहती हैं इनमें व्यभिचार, चोरी, जुठ, झगडा, वैरं विरोध कुछ होता नहि है. (३८) प्रश्न: जुगलिया में स्त्री का आयु ज्यादा या पुरुष का ? उत्तर : जुगलिया में स्त्री पुरुष साथ जन्म पाते हैं व साथ ही मर जाते हैं व उनकी सारी जींदगानी में वे एक दुसरे से कभी भी दुर होते नहि है. ( ३६ ) प्रश्न: जुगलिया का आयु कितना होता है ? उत्तर: हेमवय हिरण्यत्रय में एक पल्योपम या Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) असंख्याता. वर्ष का, हरिवास रम्यकवास . में दो पज्योपम का व देवकुरु और उत्तर कुरु में तीन पज्योपम का आयु होता है. (४०) प्रश्नः जुगलिया मरके किस गति को प्राप्त करते हैं? उत्तरः देवगति को. . (४१) प्रश्नः जुगलिया के शरीर की उत्कृष्टी अवघेणा . अवगाहना (शरीर की उंचाई) कितनी है ? ' उत्तरः हेमवय हिरण्यवय में एककोस, हरिवास रम्यकवास में दो कोस व देवकुरु उत्तरकुरु में तीन कोस की अवघेणा होती है. (४२) प्रश्नः जुगलिया कौन धर्म पालते हैं जैन या किसी अन्य ? उत्तरः वे कोई धर्म पालते नहीं हैं व उनको धर्म पालने जैसी समझ होती नहीं है, मगर उनके आचरण भी बुरे होते नहीं है स्वभावः में वे सरल और भद्रिक परिणामी होते हैं. (४३) प्रश्नः त्रीश अकर्मभूमि के अलावा और कोई . जगह जुगलिया के क्षेत्र है या नहीं? है तो उत्तरः छप्पन अंतरद्वीपा में थी जुगलियारहते हैं. (६४) प्रश्नः छप्पन अंतर द्वीपा कहां है ? : उत्तरः लवण समुद्र में... (४५) प्रश्नः अंतरीपा नाम क्यों कहा जाता है ? ... . उत्तरः संमुद्र में अंतरिक्ष याने अद्धर दोने से. Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) (४६) प्रश्नः अंतरीक्ष कैसे रहें होंगे ? ____उत्तरः पर्वत की दाढा पर होने से सागर से अंतरीत. (४७) प्रश्नः ऐसी दाढा एकंदर कितनी है ? उत्तरः आठ. (४८). प्रश्नः ये आठ दाढा किस किस पर्वत से निकली उत्तरः चार दाढी चलाहिमवंत पर्वत से व चार · दादा शिखरी पर्वत से निकली हैं.. (४६) प्रश्नः चुलहिमवंत व शिखरी पर्वत कहां हैं व कितने बड़े हैं ? उनमें से दाढायें कैसे निकली हैं और हरेक दाढा पर किस जगह अंतर् द्वीपा हैं ? · उत्तरः जर्बुद्वीप में भरत क्षेत्र की उत्तर में चुलहि मवंत पर्वत व इरवृत् क्षेत्र की दक्षिण में शिखरी पर्वत है दोनों पर्वत पूर्व पश्चिम लंबे व उत्तर दक्षिण चौडे हैं हरेक की उंचाइ सोजोजन की, गहराइ पचीस जोजन की चौडाई, १०५२ जोजनव १२ कला की व लम्बाई २४६३२ जोजन से कुछ ज्यादा है. दोनों पहाड़ एक सरीखे हैं. दोनों पूर्व पश्चिम तरफ लवण समुद्र तक आरहे हैं। 'वहां पूर्व तरफ से दो दाढा चुलहिमवंत से व दो दाढा शिखरीपहाड़ से निकली Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं इस तरह से पश्चिम तरफ से भी दो दो . जात्रा निकली हुई हैं इन सब नाहाएं लवण समुद्र में ४०० जोजन से ज्यादांचली मई है शुरू में दावा लकड़ी व पीछे से चौड़ी होती चली गई है जम्बूद्वीप की आसपास जगती का कोट है. वह मिल्ला से लवण समुद्र काप्रारंभ होता है, इस लवण समुद्र में जगती का कोट से ३०० जांजन दूर प्रत्येक दाहा पर ३०० जोजन का लम्बा चौड़ा पहेला अंतीया पाना है, वहां से ४०० जोजन का लम्बा चौड़ा दुसरा अंतीपा आता है, वहां से ५००. जोजन दूर ५०० जोजन · का लम्बा चौड़ा तीसरा अंतीपा आता है, वहां से ६.. जोजन दूर ६०० जोजन का लंबा चौडा चौथा अंतरीपा आता है, वहां से ७०० जोजन दुर ७०० जोजन का लंबा चौडा पांचवा अंतर्दीपा आता है, वहां से ८०० जोजन दुर ८०० जोजन का लंबा चौडा हा अंतर पिश . प्राता है, वहां से ६०० जोजन दुर ३०० जोजन का लंबा चौडा सातवां अंतीफा माता है, इस तरह से त्राटदाहा में मिलकर एकदंर ५६ अरबीपा लवण समुद्र में पानी की सपाटी से दाई जोजन से ज्यादा Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५१ ) (५०) प्रश्न: अंतरद्वीपा में तीन प्रकार के व्यापार है या नहीं ? : उत्तरः नहीं है, वहां के मनुष्यं कल्प वृक्ष से अपना जीवन चलाते हैं. (५१) प्रश्न: अतंरद्वीपा के मनुष्य का आयु कितना होता है ? उत्तरः पल्योपम का असंख्यात भाग का याने संख्यात वर्ष का. (५२) प्रश्न: अतंर द्वीपा के जुगलिया मर के कहां जाते हैं ? उत्तर: देवगति में (भवनपति में या वारणव्यंतर में ) (५३) प्रश्न: अतंरद्वीपा के जुगलिया की अवघेणा कितनी होती है 2. : उत्तर: ८०० धनुष्य की. (५४) प्रश्नः सब प्रकार के जुगलिया में कम से कम वघेणा कितनी होती है १ उचर : अंगुल के असंख्यात भाग की माता का उदर मैं इतनी होती है व पीछे से बढ़ती चली जाती है. (५५) प्रश्न: जुगलिया के कुल क्षेत्र कितने हैं ? चरः ८६ (३० कर्मभूमि व ५६ अंतर द्वीपा के ) " (५६) प्रश्न: मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं -3 I. उत्तरः १०१ ( ८६ जुगलिया व १५ कर्मभूमि ) (५७) प्रश्न: मनुष्य के १०१ क्षेत्र में से जंबूद्वीप में कितने हैं? Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) . उत्तरः नव (३ कर्मभूमि व छ अकर्मभूमि ) (५८) प्रश्नः लवण समुद्रमें मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः ५६ (अंतरीपा) . (५६) प्रश्नः धातकी खंडमें मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं? उत्तरः १८ (६ कर्मभूमि व १२ अकर्मभूमि) (६०) प्रश्नः कालोदधि मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः नहीं है. . . (६१) प्रश्नः अर्थ पुप्फरमें मनुष्य के कितने क्षेत्र हैं ? उत्तरः १८ (६ कर्मभूमि व १२ अकर्मभूमि) (६२) प्रश्नः वाइद्वीप बहार मनुष्य के कितने क्षेत्र है? उत्तरः नहीं है. . . . (६३) प्रश्नः समूर्छिम मनुष्य किसे कहते हैं ? उत्तरः मनुष्य सम्बन्धी अशुचीके स्थानमें उत्पन्न होवे उनको समर्छिम मनुष्य कहते है. .. (६४) प्रश्नः ऐसे अशुचीके स्थानक कितने हैं ? और कौन.२ से है? • उत्तरः मनुष्यक १ मलम. २ मत्रमें ३ कफग ४ लीटमें ५ वमनमें ३ पित्तौ ७ पीपमें (रसीमें) ८ खूनमें है वीर्य में १० वीर्यादिक के मूके हुवे पुद्गल फिर भीज जावे उसमें ११ मनु प्यक जीव रहित क्लेवरमें १२ सं पुरुषक संयोगमें, १३ नगरकी मोरीमें व १४ सर्व मनु प्य सम्बन्धी अशुचीके स्थानको समूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं. Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५३ ) · ( ६५ ) प्रश्न जुगलिया के मलमूत्रादि में समूर्छिम मनुष्य उत्पन्न होते हैं क्या ? उत्तरः हां. ( ६६ ) प्रश्नः समूर्छिम मनुष्यको तुमने देखे हैं क्या ? उत्तरः नहीं. उनका शरीर बहोत ही वारीक है, जिससे अपन को दृष्टिगोचर नहीं होता ६७ ) प्रश्न: उनकी अवगाहना व आयुष्य कितना होता है ? उत्तरः उनकी अवगाहना अंगुल के असंख्यातवा भागकी व उनका आयुष्य जघन्य उत्कृष्ठ अंतर्मुहुर्तका होता है – उत्पन्न होनेके बाद दो घडी के भीतर ही वे मर जाते हैं. (६८) प्रश्नः समूमि मनुष्य को मातापिता होते हैं क्या ? उत्तरः नहीं, वे मातापिता की विना अपेक्षा उपजते हैं. (६६) प्रश्न: जो माता पिता के संयोग से उत्पन होते उनको कैसे मनुष्य कहे जाते हैं ? उत्तरः गर्भज. ( ७० ) प्रश्न: गर्भज मनुष्य के कितने भेद (प्रकार) हैं ? उत्तरः २०२० · (७१) प्रश्न: गर्भन मनुष्य के २०२ भेद किसतरह से होते हैं ? Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) — उत्तरः १०१ क्षेत्र के (क्षेत्र आश्रयी) १०१ भेद होते हैं. अब हरेक क्षेत्र में गर्भज मनुष्य के अपर्याप्ता व पर्याप्ता इस तरह दो दो भेद लभते हैं जिससे.१०१ अपर्याप्ता व १०१ पर्याप्ता मिल कर कुल २०२ भेद होते हैं. (७२) प्रश्नः जुगलिया गर्भन है या समूर्छिम ? उत्तरः गर्भज. . . . . . . (७३) प्रश्नः पर्याप्ता व अपर्याप्ता शब्द का अर्थ क्या होता है ? उत्तरः छः प्रकार की पर्याप्ति हैं कि जिनसे आत्मा पुद्गल को ग्रहण करता है व उन पुद्: गलों को शरीर, इंद्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन के रूप में परिणमन कर सकता है. उन पर्याप्ति को, जीवने किसी भी गति में उत्पन्न होकर जहांतक पूर्ण की न होवे वहां तक उस जीव को अप प्तिा कहा जाता है और पूर्ण होने के बाद पर्याप्ता कहाता है. (७४) प्रश्नः उन छ पर्याप्ति के नाम क्या है ? उत्तरः १.आहार पर्याप्ति २ शरीर पर्याप्ति ३ इन्द्रि ___य पर्याप्ति, ४ श्वासोच्छ्यास पर्याप्ति ५ भाषा पर्याप्ति और ६ मनः पर्याप्ति. (७५) प्रश्नः अपर्याप्तावस्था में जीव ज्यादे से ज्यादे ... कितना समय रहता है ? .. . उत्तरः अंतर्मुहुर्त. Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५५ ) (७६) प्रश्नः अपर्याप्ता कहांतक गिना जाता है ? ___ उत्तरः जिस गति में जितनी पर्याप्ति बांधने की होवे उतनी पुरी न वांधे वहांतक अपप्तिा कहाना है (छ मजा बांधने की होवे तो पांच वांधे वहांतक अपर्याप्ता, पांच वांधनेकी होवे तो चार तक अपर्याप्ता और चार बांधनेकी होवे तो तीन तक अपर्याप्ता कहाता है.) (७७) प्रश्नः अपनी पास कितनी पर्याप्ति हैं ? . उत्तरः छओं (७८) प्रश्नः समूर्छिम मनुष्य के कितने भेद हैं ? ___ उत्तरः १०१ (१०१ क्षेत्रमें क्षेत्र आश्रयी १०१ भेद हैं. (७६) प्रश्नः समूर्छिम मनुष्यमें अपर्याप्ता और पर्याप्ता ऐसे दो भेद हैं या नहीं ? उत्तरः नहीं है क्योंकि वे अपर्याप्तावस्थामें ही __मर जाते हैं. (८०) प्रश्नः समूर्छिम मनुष्यमें कितनी पर्याप्ति पावें ? उत्तरः चार ( पहलेकी) .. (८१) प्रश्नः मनुष्यके. कुल , भेद कितने हैं ? (विस्तारसे) . . . उत्तरः ३०३ (१०१ नेत्रके गर्भज. मनुष्यके अपर्याप्ता. बं पर्याप्ता और १०१ क्षेत्रके समूहिम मनुष्य के अपर्याप्ता मिल कर ३०३) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६.) (८२) प्रश्नः मनुष्यके ३०३ . भेदमेंसे अपने भरत क्षेत्रमें कितने भेदः पावे ? उत्तरः तीन.. (. जंबुद्वीपका. भरतक्षेत्रका गर्भन . . . मनुष्यका अपर्याप्ता. और पर्याप्ता व समूर्छिम मनुष्यका अपर्याप्ता) (८३) प्रश्नः जवुद्वीप में मनुष्य के कितने भेद पावे ? ___ उत्तरः सत्ताईस ( तीन कर्म भूमि के ह भेद और छ अकर्मभूमि के १८ भेद मिल कर कुल . २७ भेद) . (८४) प्रश्नः लवण समुद्र में मनुष्य के भेद कितने हैं ? उत्तरः १६८ ( छप्पन अंतर्द्वीपा के ) (८५) प्रश्नः धातकी खंड में मनुष्य के भेद कितने हैं ? ___ उत्तरः ५४ ( ६ कर्म भूमि के १८ भेद व १२ अकर्म भूमि के ३६ भेद मिल कर ५४) (८६) प्रश्नः अर्ध पुष्कर में मनुष्य के भेदं कितने पावे ? उत्तरः ५४ (६ कर्म भूमि के अठारह भेद व वारह अकर्म भूमि के छत्तीश भेद मिलकर कुल ५४ भेद पावे). प्रकरण १२ ॥ ॥तिर्यंच के भेद ॥ (१) प्रश्नः तिर्यंच किसे कहते हैं ?.... उत्तरः मनुष्य, देवता, और नारकी सिवाय दूसरे . सर्वत्रस स्थावर जीवों को.तिर्यच कहते हैं. (२) प्रश्नः तिर्यंच के मुख्य भेद कितने हैं व कौन २ से हैं ? Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) उत्तरः तीन ( एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय.) (३) प्रश्नः एकेन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तरः जिन को पांच इन्द्रियों में से सिर्फ एक ही इन्द्रिय होवे उनको एकेन्द्रिय किम् वा स्थावर कहते हैं. (४) प्रश्नः पांच इन्द्रियें कौन २ सी हैं ? उत्तरः १ श्रोतेन्द्रिय सुनने की इन्द्रिय यानि कान. २ अक्षुरिन्द्रिय देखने की इन्द्रिय यानि आंख. ३ घ्राणेन्द्रिय सूंघने की इन्द्रिय अर्थात् नाक. ४ रसेन्द्रिय-स्वाद जानने की इंद्रिय अर्थात् जीभ. ५ स्पर्षंद्रिय-स्पर्ष को जानने वाली इंद्रिय यानि काया. (५) प्रश्नः एकेंद्रिय में एक इंद्रिय कौनसी होती है ? उत्तरः स्पर्षेद्रिय अर्थात् काया. (६) प्रश्नः विकलेंद्रिय के मुख्य भेद कितने हैं व कौ. न २ से हैं? उत्तरः वेइंद्रिय, तेंद्रिय और चौरोंद्रिय ये तीन भेद हैं. (७) प्रश्नः बेइंद्रिय किसे कहते हैं ? . . उत्तरः जिन को काया व मुख ये दो इंद्रिय होवे उन को वेइंद्रिय कहते हैं. . (८) प्रश्नः बेइंद्रियों के कुछ नाम बतलाओ ?. उत्तरः जलों, कीड़े, पोरे, क्रमि, अलसिये, संख, छीप, कोडे, गिडोले, लट आदि २ कई किस्मके द्वीन्द्रिय जीव होते हैं. Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) (8) प्रश्नः तेन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तरः जिनको काया, मुख व नासिका ये तीन इन्द्रिय होवें उनको तेन्द्रिय कहते हैं. (१०) प्रश्नः तेन्द्रिय जीवों के कुछ नाम वतलावें? उत्तरः जूं, लीक, चांचड़, खटमल, कीड़ी, कन्थु वे, धनेरे, जूवा. चीचड़ी, गिघोड़ा, घीमेल; गधैये, कानखजूरे, (गोजर) मकोड़े, उधयी आदि अनेक प्रकार के तेन्द्रिय जीव होते हैं. (११) प्रश्नः चउरिन्द्रिय किसे कहते हैं ? उत्तरः जिनके काया मुख नाक और आंख ये __ चार इन्द्रिय होती है उनको. (१२) प्रश्नः कुछ चउरिन्द्रिय जीवों के नाम बतलायो ? . रत्तरः मक्खी, डांस. मच्छा, भौंरे, टिड्डिये, पतंग, मकड़ी, कसारी, खेकड़े, विच्छू, बग्ग, फुद्दी आदि २ बहुत किस्म के चरिन्द्रिय जीव होते हैं... (१३) प्रश्नः पन्चेन्द्रिय किसे कहते हैं ? . उत्तरः जिनके काया, मुख, नाक, आंख, और कान ये पांच इन्द्रियां होती है उनको... (१४) प्रश्नः तिर्यच पंचेन्द्रिय के मुख्य भेद कितने व कौन २ से . . उत्तरः दो { १) संत्री अर्थान् गर्भन (२) असंनी अयाद समाधम. . . __ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५९) (१५) प्रश्नः संज्ञी व असंज्ञा किसे कहते हैं ? . उत्तरः जिनके मन होते हैं उन्हें संज्ञी वे जिनके . मन नहीं होते उन्हें असंज्ञी कहते हैं. (१५) प्रश्नः तिर्यंच पंचेन्द्रिम में किनके मन होते. हैं ? उत्तरः जो मात पिता के संयोग से यानि गर्भ में पैदा होते हैं उनके मन होते हैं और जो मात पिता की विना अपेक्षा उत्पन्न होते . हैं उनके अर्थात् समूर्छिम के मन नहीं . होते हैं. (१७) प्रश्नः एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय जीव समूछिम हैं या गर्भन और उनके मन होते हैं या नहीं ? उत्तरः वे मात पिता की विना अपेक्षा उत्पन्न होते हैं जिससे वे समूछिम कहाते हैं और उनके मन नहीं होते हैं. (१८) प्रश्नः समूछिम व गर्भन तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव कितनी किस्म के होते हैं ? उत्तरः पांच प्रकार के होते हैं. १ जलचर २ स्थ: लचर ३ उरपर ४ भुजपर ५ खेचर. (१६) प्रश्न: जलचर किसे कहते हैं ? . उत्तरः जो तिर्यंच पंचेंद्रिय जल में चले व प्रायः जल में ही रहें उनको जलचर कहते हैं. जैसे मच्छ, कच्छं, गाहा, मगर, सुसुमा आदि अनेक किस्म के जलचर तिर्यंच पंचेंद्रिय होते हैं। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) (२०) मनः स्थलचर किसे कहते हैं ? उत्तर: जो तिर्यंच पंचेंद्रिय जमीन पर चले व प्रायः जमीन पर ही रहें उनको स्थलचर कहते हैं. (२१) प्रश्नः स्थलचर तिर्यंच पंचेंद्रिय कितने प्रकार के हैं ? उत्तरः चार प्रकार के हैं. १. एक खुरा २ दो खुरा ३ गंडीया और ४ सयपया. . (२२) प्रश्न: एक खरा किसे कहते हैं ? उत्तरः जिनके पांव में एक ही खुर होता है उनको जैसे घोड़ा खर आदि. (२३) प्रश्न: दो खुरा किसे कहते हैं ? उत्तरः जिनके पैर में दो खुर होते हैं उनको जैसे गाय, भैंस, बकरे आदि. (२४) प्रश्न: गंडीपया किसे कहते हैं ? उत्तरः जिसके पैर की तली सुनार की एरण के मा: फिक चपटी होती हैं उनकों जैसे हाथी, गंडा, ऊंट, आदि. (२५) प्रश्न: सपना किसे कहते हैं ? उत्तरः नख वाले जीव जैसे सिंह, चित्ते, कुत्ते, बिल्ली आदि. (२६) प्रश्न: उरपर किसे कहते हैं ! उत्तरः पेट के जोर से चलने वाले जीव यानि सर्प की जात वाले को उरपर कहते हैं. (२७) प्रश्न: उपर के कितने भेद हैं ?. Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६१ ) उत्तरः दो एक फण मांडते हैं व दुसरा फण नहीं मांडते है. ( २८ ) प्रश्न: भुजपर किसको कहते हैं ? उत्तरः जो भुजा से व पेट के जोर से चलते उसको. (२९) प्रश्न: उसके कितने भेद हैं ? !. उचरः अनेक भेद हैं, जैसे कि नोल, कोल, काकीडा, उदर, खिसखोली आदि. (३०) प्रश्न: खेचर किसको कहते हैं. १ उत्तरः जो आसमान में उड़ते हैं. (३१) प्रश्नः खेचर के कितने भेद हैं. व कौन २ से? उत्तर: चार, १ चर्मपंखी २ रोमपंखी ३ विततपंखी ४ समुगपंखी. (३२) प्रश्नः चर्मपंखी किसको कहते हैं ? . 10 उत्तरः जिसकी पांखें चमड़े जैसी होती हैं जैसे कि चामाचिड़ी, वट वागुल आदि. (३३) प्रश्न: रोमपंखी किसको कहते हैं ? उत्तरः जिसकी पांखें रोम (केश) की होती हैं. जैसे कि तोता, कबूतर, चिड़ियाँ आदि. (३४) प्रश्न: विततपंखी किसको कहते हैं. 3 • Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) उत्तरः जिसकी पांखें सदा फैली हुई रहती हैं. (३५) प्रश्नः समुगपंखी किसको कहते हैं ? उत्तरः जिसकी पांखें हमेशा बंध रहती हैं. (३६) प्रश्नः विततपंखी और समुगपंखी कभी तुम्हारे देखने में आये हैं ? उत्तरः नहीं. ये दो प्रकार के पंखी ढाई द्वीप में नहीं हैं, ढाई द्वीप के बाहर है. (३७) प्रश्नः ढाई द्वीप में कितने प्रकार के पंखी रहते हैं ? उत्तरः दो १ चर्मपंखी व २ रोमपंखी. (३८) प्रश्नः ढाई द्वीप बाहर कितने प्रकार के पंखी रहते हैं. उत्तरः चार प्रकार के..... . (३६) प्रश्नः मक्खी, भौरे को खेचर कहा जा सका है या नहीं? उत्तरः नहीं, क्योंकि वे चौरिन्द्रिय हैं व इस कारण से वे विकलेन्द्रिय गिने जाते हैं. (४०) प्रश्नः पोरे को जलचर कहा जा सकता है या नहीं ? उत्तरः पोरे दो इन्द्रिय होने से विकलेन्द्रिय गिने जाते हैं. (४१) प्रश्नः अपन जलचर हैं या स्थलचर ? उत्तरः अपन तो मनुष्य हैं व जलचर, स्थलचर __ आदि भेद तो तिर्यंच पंचेन्द्रिय के हैं. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ (६३) (४२) प्रश्नः तिर्यंच के कुल कितने भेद हैं ? उत्तरः अडतालीस... (४३) प्रश्नः तिर्यंच के ४८ भेद में से एकेन्द्रिय के कितने ? विकलेंद्रिय के कितने व तिर्यंच पंचेन्द्रिय के कितने भेद हैं ? उत्तरः एकेंद्रिय के २२, विकलेंद्रिय के ६, व तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० मिलकर कुल ४८ भेद हैं. (४५) प्रश्नः एकेन्द्रिय के २२ भेद कैसे होते हैं सो वतलाइए? उत्तरः एकेंद्रिय या स्थावर जीवों के पांच भेद हैं उसमें पृथ्वीकाय के चार भेद १ सूक्ष्म पृथ्वीकाय का अपर्याप्ता २ सूक्ष्म पृथ्वीकाय का पर्याप्ता ३ वादर पृथ्वीकाय का अपर्याप्ता ४ वादर. पृथ्वीकाय का पर्याप्ता इस तरह से अपकाय, तेउकाय व वायुकाय के भी चार २ भेद हैं. चारों के १६ भेद हुए. घनस्पतिकाय के ६ भेद , २ सूक्ष्म के व ४ वादर के (१सूक्ष्म वनस्पतिकाय का अपर्याप्ता २सूक्ष्म वनस्पतिकार्य का पर्याप्ता ३ बादर प्रत्येक वनस्पतिकाय का अपर्याप्ता ४ वादर प्रत्येक वनस्पतिकाय का पर्याप्ता ५ वादर साधारण वनस्पतिकाय का अपर्याप्ता ६ बादर साधारण वनस्पतिकाय का पर्याप्ता) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . (६४) ये सब मिलकर २२ भेद एकेन्द्रिय के होते हैं. (४५) प्रश्नः विकलेन्द्रिय के ६ भेद किस तरह से ? - ... उत्तरः वेइन्द्रिय के दो भेद १ अपर्याप्ता व २ पर्या सा, तेइन्द्रिय के दो भेद १ अपर्याप्ता व २ पर्याप्ता, चोरेन्द्रिय के दो भेद १ अपर्याप्ता व २. पर्याप्ता तीनों के मिलकर ६ भेद हुये. (४६) प्रश्नः तिर्यच पंचेन्द्रिय के २० भेद किस तरह से ? उत्तरः उसकी पांच जात हैं १ जलचर २ स्थलचर ३ उरपर ४ भुजपर व ५. खेचर. जलचर के चार भेद १ जलचर समूर्छिम का अप: र्याप्ता २ जलचर समूर्छिम का पर्याप्ता ३ . जलचर गर्भज का अपर्याप्ता ४ जलचर गर्भज का पर्याप्ता इस तरह से प्रत्येक के चार २ ..... भेद हैं सब मिलकर २०. भेद तिर्यच पंचेंद्रिय के होते हैं. (४७) प्रश्नः तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० भेद में संज्ञी के कितने भेद व असंज्ञी के कितने भेद ? . .. उत्तरः १० संझी के (५.गर्भज के अपर्याप्ता व ५ पर्याप्ता) व १० असंज्ञी के ( ५ समूर्छिम के अपर्याप्ता व ५ पर्याप्ता) ४८) प्रश्नः तिर्यंच पंचेन्द्रिय के २० भेद में अपर्याप्ता के कितने भेद व पर्याप्ता के कितने भेद ? । . उत्तरः १० अपर्याप्ता के गर्भन के व ५ समू Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६५ ) र्छिम के ) व १० पर्याप्ता के ( ५ गर्भज के व ५ समुर्छिम के ) (४६) प्रश्नः तिर्यच के ४८ भेद में त्रस कितने व स्थावर कितने १ ¿ उत्तर: २६ त्रस के ( २० पचेन्द्रिय के व ६ बिकलेन्द्रिय के ) २२ भेद स्थावर के. (५०) प्रश्नः तिर्यंच के ४८ भेद में संज्ञी के भेद कितने व संज्ञी के भेद कितने १ उत्तरः संज्ञी के ३८ भेद ( २२ एकेन्द्रिय के ६ विकलेन्द्रिय के व १० असंज्ञी तिर्यन पंचेन्द्रिय के ) व संज्ञी के १० भेद. (५१) प्रश्न: सूक्ष्म एकेन्द्रिय किस को कहते हैं ? उत्तरः जो हणने से हणाते नहीं, मारने से मरते नहीं, जलाने से जलते नहीं व सारा लोक में भरपूर हैं मगर दिखने मगर दिखने में आते नहीं उनको सूक्ष्म एकेन्द्रिय कहते हैं सिर्फ ज्ञानी उनको देख सकते व समज सकते हैं उनकी आयु अंतर्मुहूर्त की होती है. (५२) प्रश्न: वादर किस को कहते हैं ? उत्तर: जिनको अपन देख सकें या न भी देख सकें. मगर हणने से हणाते हैं मारने से • Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) मरते हैं व जलाने से जलते हैं उन को। पादर कहते हैं. (५३) प्रश्नः तिर्यंच के ४८ भेद में सूक्ष्म के भेद कितने व वादर के भेद कितने ? उत्तरः १० सूक्ष्म (५ एकेन्द्रिय के अपर्याप्ता के ५ पर्याप्ता) व ३८ वादर. P न 62 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- _