Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 01
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 44
________________ (३४) ऐसे होते हैं कि जो संख्याता, असंख्या ता** और अनंता *** काल पर्यंत भी फल प्रदाता होते हैं. (१२) प्रश्नः क्या पाप करने वाले जीवों को पुण्य का उदय होता है ?... उत्तरः हां। कितनेक पापी जीच सुखी नजर आते हैं सो उनके पूर्व पुण्य के उदय से ही सम झना. (१३) प्रश्नः पुण्य करने वालों को पाप का उदय होता है ? उत्तरः हां। कितनेक पुण्य करने वाले जीव दुःखी होते नजर आते हैं उसका कारण उनका पूर्व पाप का उदय ही है.. (१४) प्रश्नः पुण्य पाप का समावेश जीवतत्व में होता है या अजीव तत्व में ? उत्तर: अजीव तत्व में क्योंकि मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कपाय व जोग से जीव शुभाशुभ कर्म के पुद्गल गृहण करते हैं जिसमें शुभ कर्म पुद्गल को पुण्य व अगुभ कर्म पुद्गल को पाप कहते हैं. * संख्याता मायने जिसकी गिनती होसके जैसे २-४. ५०-१००-१००० आदि. ** असंख्याता मायने जिसके लिये कोई संख्या ही न कही जाय. *** अनंताम:यने असंख्याता से भी ज्यादे जिसका अंत ही नहीं हो. .

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