Book Title: Shalopayogi Jain Prashnottara 01
Author(s): Dharshi Gulabchand Sanghani
Publisher: Kamdar Zaverchand Jadhavji Ajmer

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Page 50
________________ उत्तरः विदेशी पडसुदी व मील में बना हुवा रवा. क्योंकि उसमें असंख्य जीवों उत्पन्न हो जाते हैं अलावा कम दाम का गेहूं में से वह आटा बनता है और उसमें कंकर भी . बहुत होते हैं जिससे खाने वालों को भी कई जात के पेट के दर्द होजाते हैं. (१४) प्रश्नः पानी कैसा पीना? . उत्तरः छाना हुवा ओर जहांतक बने गरम पानी पीना. गरम पानी पीने से शरीर को फायदा पहुंचता है और कई तरह के दर्द जैसा कि कोलेरा, मरकी, वाला आदि का भय कम रहता है. अपने जैन मुनियों के शरीर लूखा आहार करने पर भी निरोगी रहते हैं इसका मुख्य कारण . . यह ही है कि वे गरम पानी पीते हैं व मूर्यास्त पहिले २ जीम लते हैं. गरम पानी की तारीफ हिंदू वैद्यक और अंग्रेजों के वैद्यक में भी बहुत की है. हर हमेश गरम पानी पीना जिसके लिये नहीं बन सका इसको भी बीमारी के वक्त गरम पानी पीना अति आवश्यक है। गरम पानी के पीने से इन्द्रिय निग्रह भी होता है. (१५) मनः किस वख्त आहारादि लेना नहीं चाहिये ? उत्तरः मूर्यास्त पीछे.याने रात्री में कुछ खाना ___... पीना नहीं चाहिये, . .

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