Book Title: Sanmati Tark Prakaran Part 05
Author(s): Abhaydevsuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 18
________________ 15 ox wU ৩৩ ९५ ७८ १०० विषय हेत्वहेतुभ्यां धर्मावादद्वैविध्यम् वस्तु के अनन्तधर्मों का प्रत्यक्षग्रहण गाथा - ४३ धर्मावाद के दो भेद अहेतुवाद-हेतुवाद की व्याख्या भव्यत्वादिविभाग आगमगोचर ही क्यों है ? गाथा - ४४ हेतुवाद का प्रतिपादन गाथा - ४५ अन्यथाप्रतिपादन में सिद्धान्तविराधना षड्जीवनिकाय में चैतन्यसाधक प्रमाण वनस्पति में चैतन्यसाधक लिंग अजीव द्रव्यों का लक्षण-निर्देश धर्मास्तिकाय आदि पाँच अजीव द्रव्य गाथा - ४६ परिशुद्ध नयवाद-अपरिशुद्ध नयवाद गाथा - ४७ वचनमार्ग, नयवाद और अन्यदर्शन की समान संख्या गाथा - ४८ सांख्य-सौगतमत का उद्गमस्थान नय गाथा - ४९ वैशेषिकमतानुसारिणी पदार्थ-व्यवस्था कणादमत को मिथ्या कहने का प्रयोजन वैशेषिकमतानुसारी पदार्थव्यवस्था नव द्रव्य, २४ गुण, पंच कर्म इत्यादि कणादोक्तपदार्थव्यवस्था न संगता वैशेषिक मत समालोचना का प्रारम्भ कारणों के तीन भेद अविद्धकर्णप्रदर्शित परमाणुनित्यत्व अनुमान धर्मिसाधक प्रमाण से नित्यत्वसिद्धि अशक्य स्वतन्त्र अवयवी का अस्तित्व नहीं है अवयविनिषेध साधक अनुमान पृष्ठाङ्क | विषय पृष्ठाङ्क ७२ | गुण और गुणी में भेद की स्थापना-पूर्वपक्ष ७२ | अवयव-अवयवी में भेद की स्थापना-पूर्वपक्ष ७३ | गुण-गुणिभेदवाद का प्रतिविधान-उत्तरपक्ष ७३ | अवयवी का प्रतिविधान-उत्तरपक्ष | अभिभूतरूप का अस्वीकार | पूर्वरूपनाश-नूतनरूपोत्पत्ति पक्ष में शंका-समाधान | षष्ठीविभक्तिप्रयोग भेदसाधक नहीं है | छः पदार्थ-सिद्धान्त के भंग की विपदा | षट्पदार्थव्यवस्था में विघ्नपरम्परा ज्ञानमय अस्तित्व पक्ष में अयथार्थता भेदान्तरप्रतिक्षेप के लिये षष्ठीविभक्ति | अवयविभेदसाधक भिन्नकर्तृकत्वादिअनुमान निरर्थक | स्थूलद्रव्य के प्रतिभास का उपपादन | अणूपरोक्षतावाद में अनूपपत्तियाँ ७९ | सर्वशब्दानुपपत्ति का निवारण | जो स्थूल है वह एक नहीं होता | अवयविपक्ष में संयोग की अव्याप्यवृत्तिता दुर्घट १०१ 'अव्याप्यवृत्ति' शब्द का अर्थ | स्थूलविषयक प्रत्यक्ष एकव्यक्तिग्राहक नहीं है। अनेकरूप नीलादि स्थूल विषय अणुसमुदायात्मक १०३ | अवयवों में अवयवी का वृत्तित्व दुर्घट १०४ ८२ | समवायात्मक वृत्ति का उपपादन दुर्घट | वृत्ति की दुर्घटना का निराकरण-अवयवीवादी १०६ अवयवीवादी के पूर्वपक्ष का प्रत्युत्तर ८२ | कृत्स्न-एकदेश विकल्पयुगल का औचित्य १०८ शब्दगुण के आश्रयरूप में आकाश की सिद्धि १०९ ८४ | शब्द पृथ्वी आदि अन्य द्रव्यों का गुण नहीं है ११० ८४ | परत्वादिलिंगक कालद्रव्य की स्थापना ११० ८५ | काल के विना पूर्व-पश्चाद्भावप्रतीति अशक्य १११ ८६ | दश प्रतितियों से दिग्द्रव्य की स्थापना १११ ८६ | मनोद्रव्य की स्थापना ११३ | प्रतिविधान प्रारम्भ-आकाशानुमान में दूषण ११३ ८७ | कर्णछिद्रगत आकाश श्रोत्रेन्द्रिय नहीं ११४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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