Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ 14 ] बृहत्संग्रणीरत्नसूत्र हिन्दी [ गाथा-१ . % 3D गच्छकी धुराको धारण करनेवाले आचार्यपदके 36.5 गुणोंसे विभूषित ऐसे पूज्यप्रवर १२आचार्यदेव, जो १३शासनप्रभावक होते है उन्हें / तथा (वर्तमानमें) ग्यारह अंग, बारह उपांग आदि आगमोंके ज्ञाता, भव्यजनोंको सूत्रार्थके उपदेशक, 1425 गुणोंसे युक्त पाठक प्रवर 11. आचार्यके 36 गुण पंचिंदिय संवरणो 5, तह नवविहबंभचेरगुत्तिधरो 9 / चउविहकसायमुक्को 4, इअ अठारस गुणेहि संजुत्तो 18 / / 1 / / पंचमहव्वयजुत्तो 5 पंचविहायार 5 पालणसमत्थो / पंचसमिओ 5 तिगुत्तो 3 छत्तीसगुणो गुरु मञ्झ // 2 // 18-36. 12. आचार्यके लक्षण इस प्रकार हैं ? सुत्तत्थविऊ लक्खणजुत्तो गच्छस्स मेटिभूओ अ / गणतत्तिविष्यमुक्को, अत्थं वाएइ आयरिओ // 1 // पंचविहं आयारं आयरमाणा तहा पयासंता / आचारं दंसंता, आयरिया तेण वुच्चंति // 2 // 13. आठ प्रभावक नीचे लिखे अनुसार हैं सम्मई सणजुत्तो सहसामत्थे पभावगो होइ / सो पुण इत्थ विसिट्ठो, निदिट्ठो अट्टहा सुत्ते // 1 // 1 पावयणी, 2 धम्मकही, 3 वाई 4 नेमित्तओ 5 तपस्वी य / विज्जा 6 सिद्ध य कई, अठेव पभावगा भणिया // 2 // 14. उपाध्याय शब्दकी व्युत्पत्तिउप-समीपमेत्य अधीयते छात्रा यस्मादिति उआध्यायः [ सम्य० सप्ततिका ] उपाध्यायके 25 गुणद्वादश अंगों तथा बारह उपांगोंका अध्ययन करें और अध्यायन करावें वे उपाध्याय कहलाते हैं / द्वादश अंग-आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथांग, आसकदशांग, अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपपातिकदशांग, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत / दृष्टिवाद जो नाम पाक्षिक सूत्रमें भी कहे गये हैं | ___ 'आयारो, सुअगडो, ठाणं, समवाओ, विवाहपन्नत्ति, नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अन्तगडदसाओ, अणुत्तरोववाइअदसाओ, पहावागरणं, विवागसुअं / दृष्टिवाद नष्ट हो जानेसे आन 11 अंग विद्यमान है। और 27 गुणमें 11 अंगको लेते है /

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