Book Title: Sangrahaniratna Prakaran Bruhat Sangrahani Sutra
Author(s): Chandrasuri, Yashodevsuri
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ महत्संग्रणीरत्न हिन्दी] गाथा-१ [15 उपाध्याय-महाराजको साथ ही स्त्रपरकल्याण साधक, पंच महाव्रत और छठे रात्रिभोजन-व्रतके पालक, छह कायजीवोंके रक्षक, अष्ट प्रवचन मातापालक, बाह्याभ्यन्तर ग्रन्थिरहित, इन्द्रियविषयोंके निग्रह करनेवाले, परिषह-उपसर्गोंको सहन करनेवाले, संयमयोगके साधक, जिनाज्ञाके अखण्डपालक, इत्यादि सत्ताईस गुणोंसे युक्त साधु महाराजोंके, इस तरह 10818 गुणोंसे युक्त पंचपरमेष्ठीको त्रिकरण शुद्धिपूर्वक नमस्कार करके श्री संग्रहणीरत्न अपरनाम बृहत्संग्रहणी, अथवा हैमकोशमां 11 अंग बताया है-आचारांगं सूत्रकृतं स्थानांगं समवाययुक / पञ्चमं भगवत्यंगं ज्ञाताधर्मकथाऽपि // 1 // उपासकान्तकृदनुत्तरोपयातिकाद् दशाः / प्रश्नध्याकरणं चैव विपाकश्रुतमेव च // 2 // बारह उपांग-औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति चंद्रप्रज्ञप्ति, निरियावलिका, (कल्पिका) कल्यावतंसिका, पुष्किका, पुष्कचूलिका और वृष्णिदशा / सिद्धान्तरूप शरीरके वर्तमानमें ग्यारह अंग और उसके हस्तपादरूप बारह उपांग-ऐसे सिद्धान्तरूप शरीर बना है। इस शरीरको अंगोपांगरूपी और भी ग्रंथ हैं / उसे पढे और पढायें / 11 अंग, 12 उपांग मिलकर 23 गुण हुए और 'चरण सित्तरी' 'करणसित्तरी' ऐसे 2 गुण पुनः जोडनेसे 25 गुण उपाध्याय भगवानके जानना / . 15. उपाध्यायके लक्षण निम्न लिखित हैं. बारसंगो जिणक्खाओ, सज्झाओ कहिओ बुहे / - तं उवइसति जम्हा, उवझाया तेण वुच्चंति // 1 / / 16. साधु महाराजके 27 गुणछन्वय 6 छकायरक्खा 6 पञ्चेदिय लोह 5 निग्गोह खन्ती, 1 भावविसुद्धो 1 पडिलेहणाइकरणे विसुद्धी अ॥ 1 // 1. संजम जोए जुत्तो 1 अकुसलमण- 1 वपण- 1 कायसंरोहो, .... 1 सीआइपीड सहणं च 1 मरणंतुवसग्गसहणं च // 2 // 17. साधु लक्षण.. निव्वाणसाहए जोए, जम्हा साहति साहुणो / . समा य सव्वभूएसु, तमहा ते भावसाहुणो // 1 // असहाए सहायत्तं, करेति मे संयमं करेंतस्स / एएण कारणेणं णमामि हं सव्वसाहूणं // 2 // 18. पंच परमेष्ठीके 108 गुणबारसगुण अरिहंता, सिद्धा अट्ठव सूरिछत्तीस, उवज्झाया-पणवीसं, साहु सगवीस अट्ठसयं // 1 //

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