Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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सनत्कुमार
चरित्रं
॥ १८२ ॥
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वनीरंगावनीरंगाः कुहूकण्ठीकुहूरवाः । कन्दर्पकेलिनाट्यस्य नान्दीनादा इवाभवन् ॥ १३ ॥
अन्वयः - कंदर्प केलि नाटयस्य नांदीनादाः इव बनी रंगावनी रंगाः कुहूकंठी कुहूरवाः अभवन् ॥ १३ ॥ अर्थ :- कामदेवना क्रीडानाटकना नांदीपाठोनीपेठे वनरूपी रंगभूमि पर विस्तार पामता, एवा कोयलना टहुकारो थवा लाग्या. गायति स्मृतिभृकीर्ति भृंगशृंगारिणीगणे । रतिर्ननर्त सिआनमञ्जीरहंसकूजितैः ॥ १४ ॥
अन्वयः - भृंज शृंगारिणी गणे स्मृतिभ्र कीर्ति गायति, सिंजान मंजीर हंस कूजितैः रतिः ननर्त ॥ १४ ॥
अर्थः- भमरीओनो समूह कामदेवनी कीर्तिनुं गायन करते छते झमकता झांझरो सरखा हंसोना अबाजो सहित रतिरूपी (नटी) नृत्य करवा लागी ॥ १४ ॥
दहविरहिणीर्विश्वव्यापी पुष्पकलापतः । परागः पुष्पचापस्य प्रताप इव निर्ययौ ॥ १५ ॥
अन्वयः - विरहिणीः दहन् विश्वव्यापी, पुष्प चापस्य प्रतापः इव पुष्प कलापतः परागः निर्ययौ ।। १५ ।। अर्थ :- (पतिना) विरहवाळी स्त्रीओने वाळतो, तथा जगतमां व्यापेलो, एवो जाणे कामदेवनो प्रताप होय नही ! तेम पुष्पोना समूहमांथी पराग निकळवा लाग्यो ।। १५ ।।
जगज्जययशांसीव कुसुमानि मनोभुवः । जितानां दुर्यशोजालैरिवालिंग्यन्त षट्पदैः ॥ १६ ॥
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सान्वय
भाषान्तर
।। १८२ ॥
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