Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 200
________________ सान्वय भाषान्तर ॥२०४॥ सनत्कुमार । अर्थः–ते पण एम विचारवा लागी के, अहो ! हजु मारां भाग्योनो समूह छे ! के जेथी आ पापनो प्रारंभ पण पुण्योना समूह माटे थयो ? ॥ ८५ ॥ चरित्रं अयं धर्मगुरुमेंऽभूत्तदस्मै गुरुदक्षिणाम् । दास्ये विद्यावली विद्याधरैश्वर्यपदप्रदाम् ॥८६॥ ॥२०४॥ ___ अन्वयः-अयं मे धर्म गुरुः अभूत, तत् अस्मै गुरु दक्षिणां विद्याधर ऐश्वर्यप्रदां विद्या आवली दास्ये. ॥ ८६ ।। अर्थः-आ सनत्कुमार मारा धर्मगुरु थया, माटे तेने गुरुदक्षिणातरिके विद्याधरनी समृद्धि आपनारी विद्याओनी श्रेणि हुं आपीश. | स्वभावबलिना विद्याबलोग्रेणाधुनामुना । प्रियाहृतिविरोधेन सक्रोधेन धृतो युधि ॥ ८७॥ सर्वथा वितथारम्भो मत्पतिनिरहंकृतिः । यदि श्रयति सन्मार्गमहो सोऽपि महो मम ॥ ८८ ॥युग्मम्॥ अन्वयः-स्वभाव बलिना, अधुना विद्या बल उग्रेण, प्रिया धृति विरोधेन सक्रोधेन अमुना युधि धृतः, ॥ ८७ ।। मत्पतिः यदि सर्वथा वितथ आरंभः निरहंकृतिः सन्मार्ग श्रयति, अहो : सः अपि मम महः ॥ ८८ ॥ युग्मं ॥ | अर्थः-स्वभावथीज बलवान, अने हवे विद्याओना बळथी उग्र बनेला, तथा पोतानी स्त्रीने उपाडी जवाना वैरथी क्रोधायमान थयेला एबा आ सनत्कुमारे युद्धमा पकडेलो, ।। ८७॥ एवो मारो स्वामी जो ( हवे कदाच ) सर्वथा प्रकारे निष्फल प्रयासबाळो, तथा अहंकाररहित थइने सारे मार्गे चडशे, तो अहो! ते पण मने लाभज (थयेलो हुं मानीश.) ।। ८८ ॥ युग्मं ॥ 181 इति निश्चित्य चित्ते साभ्यर्थ्य सप्रश्रयोक्तिभिः। कुमारायानवद्याय ददो विद्यां यथाविधि ॥ ८९ ॥ PACKAGACAGAKAR Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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