Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 189
________________ सान्वय भाषान्तर का ॥१९३॥ सनत्कुमार। । ततः संध्यारुणं रेजे लोहगोलनिभं नभः । कुमारविरहज्वालामालाभिरिव तापितम् ॥ ४९॥ चरित्रं अन्वयः-ततः कुमार विरह ज्वाला मालाभिः तापितं इव, संध्या अरुण नभः लोह गोल निभ रेजे. ॥ ४२ ॥ अर्थः-पछी ते कुमारना विरहानलनी ज्वालाओनी श्रेणिोथी जाणे तपेलं होय नही ! तेम संध्याथी लाल थयेलं आकाश लोखंडना गोळा सरग्बु शोभवा लाग्यु. ॥ ४२ ॥ उभ्रान्त इव शोकाब्धिः कुमारस्य हृदस्तदा । तमःस्तोममिषाव्योमकुक्षिम्भरिरलक्ष्यत ॥ ५० ॥ अन्वयः-तदा कुमारस्य हृदः उद्भ्रांतः शोक अन्धिः इव तमः स्तोम मिषात् व्योम कुक्षिभरिः अलक्ष्यत. ॥ ५० ॥ अर्थः-ते समये ते सनत्कुमारना हृदयमांथी उछळेलो जाणे शोकनो महासागर होय नहो ! तेम अंधकारना समृहना मिषथी ते आकाशमा व्यापेलो जोवामां आव्यो. ॥ ५० ॥ कुमारस्फारनिःश्वासज्वालावलिवशादभूत् । ताराकुलच्छलादृव्योम्नः स्फुटं पिटकपेटकम् ॥ ५१ ॥ ___अन्धयः--कुमार हार निःश्वास ज्याला आवलि वशात् तारा कुल छलात् व्योम्नः स्फुट पिटक पेटकं अभूत् . ।। ५१ ॥ अर्थ:-ते कुमारना विस्तीर्ण निःश्वासोनी ज्यालाओनी श्रेणिने लीधे ताराओना समूहना विषयी आकाशमा प्रगटपणे फोल्लाओनो समूह थइ गयो ।। ५१ ॥ RECTRICKECANCHATAR Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228