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भगवान श्री कुन्दकुन्द-फहान जैन शाखमाला और आत्म कल्याण को प्रगट करने वाला एक सम्यक्त्व ही है, इसलिये उसे प्रगट करने का ही पुरुषार्थ करो। समयसार-नाटकमें कहा है कि
"प्रगट हो कि मिथ्यात्व ही आस्रव-बन्ध है और मिथ्यात्व का अभाव अर्थात् सम्यक्त्व ही संवर, निर्जरा तथा मोक्ष है।"
"समयसार-नाटक पृष्ठ ३१० जगत के जीव अनन्त प्रकार के दुःख भोग रहे हैं, उन दुःखों से सदैव के लिये मुक्त होने अर्थात् अविनाशी सुख प्राप्त करने के लिये वे श्रहिर्निशि उपाय कर रहे हैं परन्तु उनके वे उपाय मिथ्या होने से नीवोंका दुःख दूर नहीं होता; एक या दूसरे प्रकार से दुःख बना ही रहता है। यदि मूलभूत भूल न हो तो दुःख नहीं हो सकता, और वह भूल दूर होनेसे सुख हुए विना नहीं रह सकता-ऐसा अबाधित सिद्धान्त है। इससे दुःख दूर करनेके लिए सर्वप्रथम भूलको दूर करना चाहिये, इस मूलभूत भूलको दूर करनेके लिए वस्तुके यथार्थ स्वरूपको समझना चाहिए।
___यदि जीवको वस्तुके सच्चे स्वरूप सम्बन्धी मिथ्यामान्यता न हो तो ज्ञानमें भूल नहीं हो सकती । जहाँ मान्यता सच्ची हो वहाँ ज्ञान भी सच्चा ही होता है। सच्ची मान्यता और सच्चे ज्ञानपूर्वक ही यथार्थ वर्तन होता है, इससे सच्ची मन्यता और सच्चे बानपूर्वक होनेवाले सच्चे वर्तन द्वारा ही जीव दुःखोंस मुक्त हो सकते है ।
___ "स्वयं कौन है ?" इस सम्बन्धी जगतके जीवोंकी महान भूल अनादिसे चली आरही है। अनेक जीव शरीर को अपना स्वरूप मानते हैं, अथवा तो शरीर अपने अधिकारकी वस्तु है-ऐसा मानते हैं, इससे शरीर की संभाल रखनेके लिये वे अनेक प्रकार से सतत् प्रयत्न करते रहते हैं। शरीरको अपना मानता है इससे, जिन जड़ या चेतन पदार्थोंकी ओरसे शारीरिक अनुकूलता मिलती है, ऐसा जीव माने उनके प्रति राग होगा ही; और जिस जड़ या चेतनकी ओरसे प्रतिकूलता मिलती है-ऐसा