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-* सम्यग्दर्शन होता। यदि ज्ञानस्वरूप चेतन वस्तु नाशको प्राप्त हो तो वह किसमें जाकर मिलेगी ? चेतनका नाश होकर क्या वह जड़में घुस जाता है ? ऐसा कदापि नहीं हो सकता । इसलिये यह स्पष्ट है कि चेतन सदा चेतनरूप परिणमित होता है, और जड़ सदा जड़ परिणमित होता है। किन्तु वस्तु का कभी नाश नहीं होता।
पर्यायके बदलने पर वस्तुका नाश मान लेना अज्ञान है। और यह मानना भी अज्ञान है कि वसुकी पर्यायको दूसरा बदलवाता है। वस्तु कभी भी विना पर्यायके नहीं होती, और पर्याय कभी भी वस्तुके विना नहीं होती।
जो अनेक प्रकारकी अवस्थायें होती है वे नित्य स्थिर रहनेवाली वस्तुके बिना नहीं हो सकती । यदि नित्य स्थिर रहने वाला पदार्थ न हो तो अवस्था कहाँसे आये १ दूध, दही, मक्खन, घी इत्यादि सव अवस्थायें हैं। उसमें नित्य स्थिर रहने वाली मूल वस्तु परमाणु है । दूध इत्यादि पर्याय है इसलिये वह बदल जाती है, किन्तु उस किसी भी अवस्थामें परमाणु अपने परमाणुपनको नहीं छोड़ता, क्योंकि वह वस्तु है-द्रव्य है।
-सामान्य-विशेषव्यका अर्थ है वस्तु और वस्तुकी वर्तमान अवस्थाको पर्याय कहते हैं । द्रव्य अंशी ( सम्पूर्ण वस्तु ) है और पर्याय उसका एक अश है। अंशीको सामान्य कहते हैं और अंशको विशेष कहते हैं। इस सामान्य विशेषको मिलाकर वस्तुका अस्तित्व है। सामान्य विशेपके बिना कोई सत् पदार्थ नहीं होता। सामान्य ध्रव है और विशेष उत्पाद व्यय है-उत्पाद व्यय प्रौव्य युक्तं सत्।।
___ जो वस्तु एक समयमे है वह वस्तु त्रिकाल है, क्योंकि वस्तुका नाश नहीं होता कितु रूपान्तर होता है। वस्तु अपनी शक्तिसे ( सत्तासे-अस्तित्व से ) स्थिर रहती है, उसे कोई पर वस्तु सहायक नहीं होती यदि इसी नियम को सरल भाषामें कहा जाये तो-एक द्रव्य दूसरे द्रव्यका कुछ भी नहीं कर सकता।
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