Book Title: Samyag Darshan
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 242
________________ २३० - सम्यग्दर्शन यथार्थ स्वरूप कहा है, इसलिये सर्वज्ञके सत्य मार्गके अतिरिक्त अन्य कहीं भी छह द्रव्योंका स्वरूप नहीं पाया जा सकता, क्योंकि अन्य अपूर्ण जीव उन द्रव्योंको परिपूर्ण नहीं जान सकते इसलिये छह द्रव्योंके स्वरूपको यथार्थतया समझना चाहिये। -टोपी के उदाहरण से छह द्रव्यों की सिद्धि देखिये, यह वस्त्र निर्मित टोपी अनंत परमाणु एकत्रित होकर बनी है और उसके कट जाने पर-छिन्न भिन्न हो नाने पर परमाणु पृथक् हो जाते हैं। इस प्रकार एकत्रित होना और पृथक होना पुद्गलका स्वभाव है। यह टोपी सफेद है, कोई काली, पीली और लाल रंगकी भी होती है, रंग पुद्गल द्रव्यका चिह्न है इसलिये जो दृष्टिगोचर होता है वह पुद्गल द्रव्य है। यह टोपी है, पुस्तक नहीं' ऐसा जाननेवाला ज्ञान है और ज्ञान जीवका चिह्न है, इससे जीव भी सिद्ध होगया। अब यह विचार है कि टोपी कहाँ है ? यद्यपि निश्चयसे तो टोपी टोपीमें ही है परन्तु टोपी टोपीमें ही है ऐसा कहनेसे टोपीका घरावर ख्याल नहीं आ सकता, इसलिये निमित्तके रूपमें यह कहा जाता है कि अमुक जगह पर टोपी स्थित है । जो जगह है वह आकाश द्रव्यका अमुक भाग है, इसप्रकार आकाश द्रव्य सिद्ध हुआ। ध्यान रहे, अव इस टोपीकी घड़ी की जाती है। जब टोपी सीधी थी तव आकाशमें थी और उसकी घड़ी हो जाने पर भी यह आसाराम ही है, इसलिये आकाशके निमित्तसे टोपीकी घड़ी का होना नहीं पहचाना जा सकता। तब फिर टोपीकी घड़ी होनेकी नो क्रिया हुई है इमे किस निमित्तसे पहचानोगे ? टोपीकी घड़ी होगई इसका अर्थ यह है कि पदको उसका क्षेत्र लम्बा था और वह अब अल्प क्षेत्रमें समा गई है। इसमगर टोपी क्षेत्रान्तरित हुई है और उस क्षेत्रान्तरके होने में मो यरतु निगि वह धर्म द्रव्य है। memaraman Dr

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