Book Title: Samyag Darshan
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 251
________________ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला २३६ सत् श्रुत-शास्त्र है। जो इन सच्चे देव गुरु शास्त्रको यथार्थतया पहचानता है उसकी गृहीत मिथ्यात्वरूपी महा भूल दूर हो जाती है। यदि देव गुरु शास्त्रके स्वरूपको जानकर अपने आत्म स्वरूपका निर्णय करे तो अनन्त संसारका कारण सर्वाधिक महा पापरूप अगृहीत मिथ्यात्व दूर हो जाय और सम्यग्दर्शनरूपी अपूर्व आत्मधर्म प्रगट हो। सच्चे देवके स्वरूपमें मोक्ष तत्त्वका समावेश होता है.संत-मुनिके स्वरूपमें संवर और निर्जरा तत्वका समावेश होता है। जैसा सच्चे देवका स्वरूप है वैसा ही शुद्ध जीव तत्त्वका स्वरूप है। कुगुरु, कुदेव, कुधर्ममें अजीव, आश्रव, तथा वन्ध तत्त्वका समावेश होता है। अरिहन्त-सिद्धके समान शुद्ध स्वरूप ही जीवका स्वभाव है, और स्वभाव ही धर्म है । इसप्रकार सच्चे देव, गुरु, धर्मके स्वरूपको भलीभांति जान लेने पर उसमें सात तत्वोंके स्वरूपका ज्ञान भी आजाता है। -जिज्ञासुओं का कर्तव्यउपरोक्त तत्त्व स्वरूपको प्रथम जानकर गृहीत मिथ्यात्वका (व्यवहार मिथ्यापनका ) पाप दूर करे और अभूतपूर्व निश्चय आत्मज्ञानसे आत्माके लक्ष्यसे ज्ञान करके यह निर्णय करे तो अगृहीत मिथ्यात्वका सर्वोपरि पाप दूर हो जाय, यही अपूर्व सम्यग्दर्शनरूपी धर्म है, इसलिये जिज्ञासु जीवोंको प्रथम भूमिकासे ही यथार्थ समझके द्वारा गृहीत और अगृहीत मिथ्यात्वको नाश करनेका निरंतर प्रयत्न करना चाहिये और उसका नाश सच्चे ज्ञानके द्वारा ही होता है इसलिये निरंतर सच्चे ज्ञानका अभ्यास करना चाहिये। PAINார்மோன்ய யதிங்கன் atil பொயைப் போனோபோவை सवें दुःखोंकी परम-औषधि जो प्राणी कषायके आतापसे तप्त हैं, इन्द्रियविषयरूपी रोगसे मूञ्छित है, और इष्टवियोग तथा अनिष्टसंयोगसे खेदखिन्न है-उन सब के लिये सम्यक्त्व परम हितकारी औषधि [सारसमुच्चय-३८] सम्पy-sunaukriHPTHRSamsunguneeringaweTHATURanggrespers

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