Book Title: Samyag Darshan
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 273
________________ २६१ भगवान श्री कुन्दकुन्द-कहान जैन शास्त्रमाला तीन लोकका सार केवल एक आत्मा ही सम्यग्दर्शन है, इसके अतिरिक्त अन्य सब 'व्यवहार है, इसलिये हे योगी। एक आत्मा ही ध्यान करने योग्य है, वही तीन लोकमें सार भूत है। [परमात्मप्रकाशः-१-६६] सम्यक्त्वकी दुर्लभता काल अनादि है, जीव भी अनादि है और भवसमुद्र मी अनादि है; परन्तु अनादि कालसे भव समुद्र में गोते खाते हुए इस जीवने दो वस्तुएँ कभी प्राप्त नहीं की-एक तो श्री जिनवर स्वामी और दूसरा सम्यक्त्व।। [परमात्म प्रकाश-२-१४३ ] ज्ञान-चारित्रकी शोभा सम्यक्त्वसे ही है विशेष ज्ञान या चारित्र न हो, तथापि यदि अकेला सम्यग्दर्शन ही हो तो भी वह प्रशंसनीय है। परन्तु मिथ्यादर्शनरूपी विषसे दूषित हुए ज्ञान या चारित्र प्रशंसनीय नहीं है। [ज्ञानार्णव अ० ६ गा० ५५] भवक्लेश हलका करनेकी औषधि सूत्रज्ञ आचार्यदेवों ने कहा है कि अति अल्प यम-नियम-तपादि हों, तथापि यदि वे सम्यग्दर्शन सहित हों तो भव समुद्रके क्लेशका भार हलका करनेके लिये वह औषधि है। [ज्ञानार्णव अ०६ गा०५६ ] सम्यग्दृष्टि मुक्त है __ श्री आचार्य देव कहते हैं कि-जिसे दर्शनकी विशुद्धि होगई है वह पवित्र आत्मा मुक्त ही है-ऐसा हम मानते हैं, क्योंकि दर्शन शुद्धिको ही मोक्षका मुख्य कारण कहा गया है। [ज्ञानार्णव अ० ६ गा० ५७ ] सम्यग्दर्शनके बिना मुक्ति नहीं है जो ज्ञान और चारित्रके पालनमें प्रसिद्ध हुए हैं ऐसे जीव भी इस जगतमें सम्यग्दर्शनके बिना मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते। [ ज्ञानार्णव अ०६ गा० ५८ ]

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