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भगवान श्री कुन्दकुन्द - कहान जैन शास्त्रमाला
अब यह बतलाते हैं कि अरिहन्त भगवानके स्वरूपमें द्रव्य गुण पर्याय किसप्रकार हैं । "वहाँ अन्वय द्रव्य है, अन्वयका विशेषरण गुण. है, अन्वयके व्यतिरेक ( भेद ) पर्याय है” [ गाथा ८० टीका ] शरीर अरिहन्त नही है किंतु द्रव्यगुण पर्याय स्वरूप आत्मा अरिहन्त है | अनन्त अरिहन्त और अनन्त आत्माओं का द्रव्यगुण पर्यायसे क्या स्वरूप है यह इसमें बताया है ।
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- द्रव्य
यहाॅ मुख्यता से अरिहन्त भगवानके द्रव्य गुण पर्यायकी बात है । अरिहन्त भगवानके स्वरूपमें जो अन्वय है सो द्रव्य है । 'जो अन्वय है सो द्रव्य है' इसका क्या अर्थ है ? जो अवस्था बदलती है वह कुछ स्थिर रहकर बदलती है । जैसे पानी में लहरें उठती हैं वे पानी और शीतलता को स्थिर रखकर उठती हैं, पानीके बिना यों ही लहरें नहीं उठने लगतीं, इसीप्रकार आत्मामें पर्यायरूपी लहरें (भाव ) बदलती रहती हैं उसके बदलने पर एक एक भावके बराबर आत्मा नहीं है किंतु सभी भावों मे लगातार स्थिर रहने वाला आत्मा है । त्रिकाल स्थिर रहनेवाले म द्रव्यके आधारसे पर्यायें परिणमित होती है । जो पहले और बादके सभी परिणामो में स्थिर बना रहता है वह द्रव्य है । परिणाम तो प्रतिसमय एक के बाद एक नये २ होते हैं। सभी परिणामों में लगातार एकसा रहने वाला द्रव्य है । पहिले भी वही था और बादमे भी वही है - इसप्रकार पहिले और वादका जो एकत्ल है सो अन्वय है, और जो अन्वय है सो द्रव्य है ।
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अरिहंत के सम्बन्ध में — पहिले अज्ञान दशा थी, फिर ज्ञानदशा प्रकट हुई, इस अज्ञान और ज्ञान दोनों दशाओं में स्थिररूपमें विद्यमान है वह आत्म द्रव्य है । जो आत्मा पहिले अज्ञान रूप था वही अब ज्ञान रूप है । इसप्रकार पहले और बादके जोड़रूप जो पदार्थ है वह द्रव्य है । पर्याय पहिले और पश्चात्की जोड़रूप नहीं होतीं, वह तो पहिले और बाद की अलग २ ( व्यतिरेकरूप ) होती है और द्रव्य पूर्व पश्चात्के सम्बन्धरूप
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