Book Title: Sambodhi 2010 Vol 33
Author(s): J B Shah, K M patel
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 133
________________ Vol. XXXIII, 2010 जयपुर नरेशों का संगीत प्रेम 127 जयपुर के शासकों के कला संरक्षण तथा कला प्रेम ने जयपुर में कला व संगीत की ऐसी सुपरम्परा की स्थापना की जिसने भारतीय संस्कृति के कलात्मक स्वरूप को उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर स्थापित कर दिया । इतिहास के द्वार खुलने पर कला की इसी परम्परा का पुष्ट परिचय आमेर के राजा मानसिंह के काल से मिलता है । १६वीं शती के पूर्वाद्ध मे यद्यपि आमेर नरेशों के कला संगीत विषयक अधिक विस्तृत प्रमाण उपलब्ध नहीं है किन्तु १६वीं शती का उत्तरार्द्ध इसका साक्ष्य देता है । कछवाहा राजपुत राजाओं के मुगलों से संबन्ध बना कर राजनैतिक दृष्टि से सुदृढ़ तथा महत्त्वपूर्ण होने से पूर्व कलात्मक प्रवृत्ति का प्रमाण नहीं प्राप्त होता है । १६वीं शताब्दी में भारत वर्ष में मुगल साम्राज्य स्थापित हो चुका था । १६ वीं शती के मध्य काल में मुगल सम्राट अकबर से आमेर के राजा भारमल ने मित्रता की । यहीं से कछवाहा नरेशों और मुगल सबन्धों का गठबंधन हो गया । मुगल कला प्रेमी थे । उनकी अधीनता स्वीकारने के कारण उनकी परम्पराओं का भी प्रभाव राजपूतों पर आया । मुगलों के दरबार में विशेष कर सम्राट अकबर के दरबार में 'नवरत्न' थे । जिनमें मूर्धन्य विद्वान, संगीतज्ञ, चित्रकार आदि भी थे । संभवतया इसी से प्रेरणा लेकर आमेर नरेशों ने कला, संगीत व साहित्य को अपने राजदरबारों में आश्रय प्रदान करना प्रारम्भ किया । इस परम्परा के श्रीगणेश का कारण कछवाहा राजाओं की निज स्वभावगत रुचि भी हो सकती है जिसको निरन्तर मुगल सम्पर्क में आते रहने से परिष्कृति और विकास का प्रशस्त मार्ग मिल गया । राजा मानसिंह प्रतिभावान, कलाप्रिय तथा भारतीय धर्म व संस्कृति के पोषक थे । इनके दरबार में कवि, गुणी कलावंत तथा विद्वान आश्रय प्राप्त थे और सम्मान पाते थे । महाकवि दादू दयाल इन्हीं के समय में हुए जिन्होंने 'दादू पंथ' चलाया । मानसिंह कवि थे, अत: कवियों का सम्मान करना जानते थे । उनकी अकबर के 'नवरत्नों' में गणना होती थी। राजा मानसिंह के पिता भगवान दास के दरबार में भी कवियों को आश्रय प्राप्त था । राजा मानसिंह के भाई माधवसिंह भी संगीतप्रेमी राजा थे और गणी जनों का सम्मान करते थे। तत्कालीन मुगल बादशाह की राजधानी आगरा में राजा माधवसिंह की हवेली माधव भवन में मुगल दरबार के गायक तानसेन और अन्य प्रमुख गायक एवं संगीतज्ञ आते ही रहते थे । राजा भावसिंह साहित्य प्रेमी थे। उन्हें संस्कृत भाषा से अधिक लगाव था । मिर्जा राजा जयसिंह मध्यकालीन भारतीय इतिहास की एक अद्वितीय विभूति थे । वें विद्वान एवं बहुभाषाविज्ञ होने के साथ-साथ कला प्रिय हृदय भी रखते थे। राजा रामसिंह संस्कृत के विद्वान थे । जयपुर नरेशों में सवाई जयसिंह का नाम महत्त्वपूर्ण है। इन्होंने कछवाहा के इतिहास को नवीन उत्थान दिया । धर्म संस्कृति के पक्षधर राजा जयसिंह सर्वगुणसम्पन्न, बहुमुखी प्रतिभायुक्त व्यक्तित्व थे । तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने प्रथम भेंट में ही १३ वर्षीय राजा जयसिंह को 'सवाई' उपाधि प्रदान कर दी थी। ये बड़े ही बुद्धिमान, कलाप्रेमी, गणितज्ञ तथा ज्योतिषविद् थे। अठ्ठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में आंबेर के महाराजा सवाई जयसिंह की देश के सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रभावशाली व्यक्तियों में गणना की जाती थी ।११ अपने शासनकाल में उन्होंने जयपुर को संस्कृति, साहित्य, कला तथा सिद्धन्त ज्योतिष का सबसे बड़ा केन्द्र बना दिया था ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212