Book Title: Sambodhi 1993 Vol 18
Author(s): J B Shah, N M Kansara
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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SAMBODHI
Sanskrit Chāyā :
यस्य निमित्तम् हत-हृदय त्वया जलनिधिः तीर्णः तत् कलत्रम् एवंविध-दुर्णय-शात-भृतम् । एतद् अपूर्वम् यद् प्रेक्ष्य लज्जा अपि नैव करोति । हर्षोल्लसित-मुखम् मम अग्रे धारयति ॥ वरम् वै वल्लयः न नार्यः सत्यानि यासाम् पाल्यन्ते (९) ।
यम् एकवारम् वेष्टयन्ति तरुम् तम् मरणेन मुञ्चन्ति ॥ 5. p. 355, verses 195-197.
कुलकलंकणु सच्च-पडिवक्ख गुरुलज्जासोयकरु धम्मविग्घु अत्थपणासणु, जं दाणभोगेहिं रहिओ ॥ गालियघायघुम्मंतलोयणु तणु संतवणि कुगइ पडितहि पिय जूइयमरज्जू ।
जूई अत्थु जु विढवियइ तिं अथिहिं नवि कज्जू ॥ Actually this is a single stanza. The metre is of the Dvibhangī type called Raddā. It is made up of two units : 5 caranas of Mātrā plus four caranas of Dohā. The Restored Text :
कुल-कलंकणु सच्च-पडिवक्खु गुरु-लज्जा-सोय-करु, धम्म-विग्घु अत्थ-प्यणासणु । जं (2) दाण-भोगेहिं रहिउ, गालिय-घाय (2 गत्त) घुम्मंत-लोयणु ॥ तणु-संतावणि कुगइ-पहि, तहिं पिय जुइ म रज्जु ।
जूई अत्थु जु विढवियइ, तिं अथिहिं नवि कज्जु ॥ Sanskrit Chāyā :
कुल-कलङ्कनम् सत्य-प्रतिपक्षः गुरु-लज्जा-शोककरम्, धर्म-विघ्नम् अर्थ-प्रणाशनम् । यद् (?) दान-भोगाभ्याम् रहितम्, गलित-गात्र-घूर्णायमान-लोचनम् ॥ तनु-संतापने कुगइ-पथे, तस्मिन् प्रिय द्यूते मा रज्यस्व ।
द्यूते अर्थः यः अय॑ते, तेन अथैन नैव कार्यम् ॥ 6. p. 359, v. 284.
भमरा सुरतरुमंजरिहिं, परिमलु लेवि हयास ।
हियडु फुट्टिवि कह नहि, अह ढंढोलिडं पलास ॥ The metre is Dohā. The Restored Text :
भमरा सुरतरु-मंजरिहि, परिमलु लेवि हयास । हियडउं फुट्टिवि कह न मुउ, ढुंढुल्लंतु पलास ॥

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