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परमात्मा के पास 'अनाहारी अवस्था' की प्रार्थना करना । अनाहारी बनने का पुरुषार्थ भी यथाशक्ति करना। यानी हो सके उतनी तपश्चर्या करना।
चेतन, तेरी मामी के विषय में तेरे मन में जो प्रश्न पैदा हुआ, उस प्रश्न का समाधान हो जाएगा । 'उपभोगांतराय' कर्म के विषय में आज नहीं लिखता हूँ।
खाने-पीने में अधिक राग-द्वेष नहीं करना है। खाने-पीने में रसवृत्ति का संयम करना है। इस विषय में भी लिखना है... आज बस । यहाँ ही पत्र समाप्त करता हूँ। स्वस्थ रहे, - यही मंगल कामना।
- भद्रगुप्तसूरि
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