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पत्र : 90
प्रिय चेतन,
धर्मलाभ,
तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ।
त्रस और स्थावर जीवों के विषय में पत्र पढ़कर तुझे बहुत आनंद हुआ और स्थावर जीवों के प्रति तेरे हृदय में विशेष अनुकंपा पैदा हुई - जानकर आनंद हुआ ।
तेरा नया प्रश्न :
संसार में कुछ जीवों को मनुष्य अपनी आँखों से देख सकता है, किसी उपकरण के माध्यम से देख सकता है, जब कि कुछ जीवों को न आँखों से देख सकते हैं, न किसी यंत्र के माध्यम 'देख सकते हैं, ऐसा क्यों ?
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चेतन, तेरा प्रश्न उचित है। संसार में दोनों प्रकार के जीवों का अस्तित्व है । वैसे आत्मा अपने मूल-शुद्ध स्वरूप में अरूपी ही है। अरूपी आत्मा, न आँखों से देखा जा सकता है, न किसी उपकरण से । परंतु 'कर्म' की वजह से अरूपी आत्मा रूपी बनी हुई है । अनादि कालीन कर्म-जीव संबंध है, इसलिए अनादिकाल से जीव रूपी है।
रूपी जीव भी दो प्रकार के होते हैं
• आँखों से दिखनेवाले,
आँखों से नहीं दिखनेवाले ।
जिन जीवों का ‘बादर नामकर्म' का उदय होता है, वे जीव आँखों से दिखते हैं। यह कर्म जीवों को दृष्टिगम्य बनाता है। हाँ, कभी ऐसा होता है कि एक जीव दृष्टिपथ में नहीं आता है, अनेक जीव इकट्ठे होते हैं तभी दृष्टिपथ में आते हैं।
यह ‘बादर नामकर्म' उन जीवों के शरीरों को ऐसी स्थूलता प्रदान करता है कि जो जीवों की दृष्टि का विषय बन सकता है ।
वैसे कुछ जीव रूपी होते हुए भी, यानी जीवों के शरीर होते हुए भी संसारी जीव उनको देख नहीं सकते हैं । आँखों से नहीं या कोई यंत्र से भी नहीं। क्यों
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