Book Title: Samadhan
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 261
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - क्षमा से क्रोध पर विजय पाना, - नम्रता से मान पर विजय पाना, - निर्लोभता से लोभ पर विजय पाना । ये क्षमा-नम्रता-सरलता और निर्लोभता के भाव, श्रेष्ठ शुभभाव हैं। इन शुभ भावों से शातावेदनीय भी श्रेष्ठ कोटि का बँधता हैं। ७. सातवाँ उपाय हैं धर्म दृढ़ता। स्वीकार किए हुए धर्म का दृढ़ता के साथ पालन करना । कष्ट अथवा लालच से विचलित नहीं होना। ८. आठवाँ प्रकार है मन-वचन-काया के योगों को शुभ रखना। - मन जितना पवित्र रहेगा, शातावेदनीय बँधेगा, - वचन जितने सत्य-पथ्य और हितकारी होंगे, शाता बँधेगी, - काया की प्रवृत्ति जितनी प्रशस्त होगी, शाता बँधेगी। शातावेदनीय बाँधने के ये प्रमुख आठ कारण बताए गए हैं। इनके अलावा एक विशिष्ट कारण है - दूसरे जीवों को शाता देने का। हो सके उतना सुख दूसरे जीवों को देते रहो। हो सके उतनी शांति दूसरे जीवों को देते रहो। चेतन, अब अशातावेदनीय कर्म जिन-जिन कारणों से बँधता है, वे कारण बताता हूँ। १. गुरुजनों को दुःख देना, अशांति पैदा करना, २. अपराधी को क्षमा नहीं करना, दंड करना, कष्ट देना, ३. जीवों को मारना, वध करना, पीड़ा देना... ४. व्रत लेना नहीं, लेकर भंग करना, व्रतों को दोष लगाना, ५. दान नहीं देना, अतिथि का तिरस्कार करना, ६. कषायों को बढ़ावा देना । क्रोध, मान, माया और लोभ के ऊपर नियंत्रण नहीं रखना। ७. धर्म में दृढ़ नहीं रहना | भय अथवा लालच से धर्म का त्याग कर देना। ८. मन में अशुभ विचार करना, अप्रिय और अहितकारी वचन बोलना, एवं काया से पाप-कार्य करना । अशातावेदनीय कर्म बाँधने के ये प्रमुख आठ कारण हैं। विशेष रूप से २५४ For Private And Personal Use Only

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