Book Title: Samadhan
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 274
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org दुर्व्यवहार करता है, उनका अपमान करता है, उनके प्रति दुर्भाव धारण करता है, शक्ति होने पर भी उनका उद्धार नहीं करता है, ऐसे लोग नीचगोत्र बाँधते हैं। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन, वैसे अपने लोग साधर्मिक- वात्सल्य करते हैं, हजारों रुपये खर्च कर देते हैं, परंतु उनके पास यदि कोई दुःखी साधर्मिक सहायता प्राप्त करने जाता है, तो उसको बाहर निकाल देते हैं... उस पर गुस्सा करते हैं। इससे भी नीचगोत्र बँध जाता है । चेतन, साधर्मिकों की सहायता करना, उनकी दरिद्रता मिटाना और उनको सन्मार्ग पर लाना, बहुत बड़ा धर्म हैं। आज तो लाखों साधर्मिक दुर्व्यसनों में फँसे हैं, लाखों साधर्मिक दरिद्रता के शिकार बने हैं... उनका उद्धार करना अति आवश्यक है। शक्ति होने पर भी उद्धार नहीं करते हो तो नीचगोत्र कर्म बाँधते हो। नीचगोत्र कर्म का कैसा करुण विपाक होता है, तू जानता है न ? 'समरादित्यमहाकथा' का पहला भव पढ़ना। उसकी अवांतर कथा पढ़ना । तेरा हृदय काँप उठेगा । उच्च गोत्र ओर नीच गोत्र के बंधहेतुओं को पढ़ना, उस पर चिंतन करना । जीवन में जो कुछ परिवर्तन करना उचित लगे, अवश्य करना । नीचगोत्र के कारणों का सर्वथा त्याग करना । शेष कुशल । २६७ For Private And Personal Use Only भद्रगुप्तसूरि

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