Book Title: Samadhan
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 255
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्न: TILL 0 . प्रिय चेतन, धर्मलाभ, परमात्मा की परम कृपा से यहाँ कुशलता है। तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। चेतन, मूल आठ कर्म और उसके १५८ प्रकार के कर्मों का विवेचन पूर्ण हो गया । तेरे प्रश्नों के समाधान के रूप में यह विवेचन किया है। इससे जीवन के साथ इन कर्मों का कैसा प्रगाढ़ संबंध है, तू समझ गया होगा। अब जो तेरा नया प्रश्न आया है, उसका समाधान करता हूँ इस पत्र में। तेरा नया प्रश्न : 'ये आठ कर्म कैसे बँधते हैं? क्या क्या करने से बँधते है - यह समझाने की कृपा करें। वैसे कहीं-कहीं आपने लिखा है इस विषय में, परंतु क्रमशः आठों कर्म जीव क्या-क्या करने से बाँधता है - यह जानने की इच्छा है।' __ चेतन, तेरी बात अच्छी है। अब कुछ पत्रों में आठ कर्मों के बंधन के कारण बताऊँगा। कारणों के जानने से मनुष्य, जो करने से पाप कर्म बँधते हैं वैसे काम नहीं करेगा और जो करने से पुण्य कर्म बँधते हैं, वैसे काम करता रहेगा। ज्ञानी पुरुषों ने शास्त्रों में, धर्मग्रंथों में ये सारे कारण बताए हैं। हालाँकि कि मैं ज्यादा विस्तार नहीं करूँगा, ज्यादा संक्षेप भी नहीं करूँगा, परंतु तू समझ सके, उतना विस्तार करूँगा। आज इस पत्र में ज्ञानावरण कर्म और दर्शनावरण कर्म, जीव क्या-क्या करने से बाँधता है, यह बात लिखता हूँ। - इन दो कर्मों को बाँधने के मुख्य आठ कारण बताए हैं। - ज्ञान और ज्ञानी के प्रति, दर्शन और दर्शनी के प्रति, निम्न ८ प्रकार की आशातना करने से ये दो कर्म बँधते हैं। १. शत्रुता, (अनिष्ट-अयोग्य आचरण) २. गुरु को नहीं बताना, वास्तविक गुरु को नहीं बताना, ३. घात-उपघात करना। (गुरु आदि को मारना) २४८ For Private And Personal Use Only

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