Book Title: Samadhan
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 251
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्र : १६ . प्रिय चेतन, धर्मलाभ, परमात्मा की परम कृपा से यहाँ कुशलता है। तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। तेरा नया प्रश्न - 'दुनिया में ऐसा देखने में आता है कि एक मनुष्य छोटा सा भी अच्छा काम करता है तो भी उसका यश फैलता है, उसकी कीर्ति बढ़ती है। जब कि दूसरा मनुष्य ज्यादा अच्छा कार्य करता है, तो भी उसको यश नहीं मिलता है, कीर्ति नहीं फैलती है। ऐसा क्यों?' चेतन, जीवात्मा का 'यशःकीर्ति-नामकर्म' उदय में आता है, तब उसको यश मिलता है, उसकी कीर्ति फैलती है। यह थोड़ा भी अच्छा काम करेगा तो भी यशः कीर्ति प्राप्त होगी। वैसे जीवात्मा का 'अयशः कीर्ति-नामकर्म' उदय में आता है, तब उसको अपयश मिलता है। उसकी निंदा होती है। अच्छे काम करने पर भी यश नहीं मिलता है। दुनिया में कुछ लोग यश के कामी होते हैं। अपयश तो प्रायः कोई भी मनुष्य नहीं चाहता है। समस्या तब पैदा होती है, जब मनुष्य यशकीर्ति चाहता है और उसका यशः कीर्ति-कर्म उदय में नहीं होता है। जिस बात की इच्छा जगती है, और वह इच्छा सफल नहीं होती है, तब मनुष्य अशांत होता है, बेचैन होता है। एक बात समझना कि यह कर्म ऐसा ही है कि जब चाहे तब बाँधकर तत्काल उदय में ला सके । पूर्वजन्मों में यदि संचित कर्म होगा, तो ही इस जन्म में उदय आ सकता है। यानी यश-कीर्ति प्राप्त होना मनुष्य के संचित कर्म पर आधारित है। यदि संचित कर्म नहीं है आत्मा में, तो लाख उपाय करने पर भी यश-कीर्ति की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए प्राज्ञ पुरुष कहते हैं कि यश-अपयश की चिंता किए बिना, अपने कर्तव्य-पथ पर चलते रहो। हो सके उतने सुकृत करते रहो। जिस कर्म का २४४ For Private And Personal Use Only

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