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पत्र :6
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ।
आठ करणों के विषय में मैं प्रत्यक्ष ही विशेष रूप से समझाऊँगा । आठ करणों के विषय में अच्छा अध्ययन होना आवश्यक है। इस विषय में तेरी जिज्ञासा है, इसलिए तुझे समय मिलने पर यह विषय समझाऊँगा।
तेरा नया प्रश्नः 'ईश्वर को कर्ता अथवा प्रेरक माननेवाले, कर्मवाद पर निम्न प्रकार तीन आक्षेप करते हैं:
१. मकान, मोटर, घड़ी, पेन आदि छोटी-बड़ी वस्तु किसी मनुष्य के द्वारा ही निर्मित होती हैं, तो फिर संपूर्ण जगत, जो कार्य रूप दिखाई देता हैं, उसका भी उत्पादक कोई अवश्य होना चाहिए।
२. सभी प्राणी अच्छे या बुरे कर्म करते हैं, पर कोई बुरे कर्म का फल नहीं चाहता है और कर्म स्वयं जड़ होने से किसी चेतन की प्रेरणा के बिना फल देने में समर्थ नहीं है। इसलिए कर्मवादियों को मानना चाहिए कि ईश्वर ही प्राणियों को कर्मफल देता है।
३. ईश्वर एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए कि जो सदा से मुक्त हो और मुक्त जीवों की अपेक्षा भी उस ईश्वर में कुछ विशेषता हो। इसलिए कर्मवाद का यह मानना ठीक नहीं कि कर्म से छूट जाने पर सभी जीव मुक्त यानी ईश्वर हो जाते हैं।'
चेतन, कर्मवाद के सामने ईश्वरवादियों का ये तीन आक्षेप हैं। मैं एक-एक आक्षेप का समाधान करता हूँ।
१. पहली बात तो यह है कि यह जगत बना ही नहीं है! सदाकाल से ही है। यह जगत किसी समय नया नहीं बना। हाँ, इस में परिवर्तन हुआ करता है। कोई परिवर्तन मनुष्य अथवा देवकृत होता है, कोई परिवर्तन स्वयं होते हैं। किसी के प्रयत्न की अपेक्षा नहीं रहती है। वे परिवर्तन उष्णता, वेग, क्रिया आदि शक्तियों
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