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पत्र : 00
प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला,
इसलिए विशेष आनंद हुआ कि तू अब सूक्ष्म पदार्थों का भी चिंतन करने लगा है। इस प्रकार का चिंतन तेरे मनोयोग को विशुद्ध करता रहेगा और अनंत-अनंत कर्मों की निर्जरा होती रहेगी।
तेरा नया प्रश्नः 'पाँच शरीरों के निर्माण के लिए भिन्न-भिन्न पुद्गल जीव ग्रहण करता है। क्या जीवात्मा पुद्गल-परमाणुओं को वैसे ही ग्रहण करता है जिस स्थिति में वे होते हैं, अथवा परमाणुओं में कोई परिवर्तन होता है?'
चेतन, परमाणु जब तक अलग-अलग होते हैं तब तक ये परमाणु शरीर रचना में काम नहीं आते । परमाणुओं का जब समूह बनता है तब परमाणुओं की 'वर्गणा' बनती है। उन अनंत परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाओं में से कुछ वर्गणायें ही शरीर बनाने में काम आती हैं।
परमाणुओं में जत्था होने का गुण होता हैं, परंतु जीव को जो शरीर बनाना होता है, उसके लिए योग्य परमाणु-वर्गणाओं में रहे हुए परमाणु परस्पर किस प्रकार मिलते हैं और वे वर्गणाएं निश्चित जीवात्मा को ही मिलती है, यह निर्णय "संघातन नामकर्म' करता है।
- अलग अलग परमाणुओं का समूह बनता है, तब अनंत परमाणु समूह रूप बनते हैं, समूह रूप होने का गुण (संघात रूप होने का गुण) परमाणुओं में होता ही है, परंतु किस प्रकार परमाणु समूह रूप यानी संघात रूप होते हैं, वह कार्य "संघातन-नामकर्म' करता है।
- सभी जीव का ‘संघातन नामकर्म' अपना-अपना होता है। उस कर्म के अनुसार पुद्गल-वर्गणा के परमाणु परस्पर संघटित होते हैं, परस्पर एकरूप होते हैं, वैसी पुद्गल-वर्गणा ही जीव ग्रहण कर, अपना शरीर बनाता है। चेतन, पुद्गल परमाणुओं में इस प्रकार परिवर्तन होता है। जब अनंत परमाणु
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